टीवी में एक महिला बता रही थी आसमान में एक किताब है जिसमें मनुष्यों के कर्मों का लेखा जोखा लिखा जाता है. हो सकता है यह उस महिला के मन की सोच हो या फिर उसने कहीं पड़ा हो. ऐसे बहुत से भ्रम अथवा अंधविश्वास हम सभी किसी न किसी रूप में पाले होते हैं. हिन्दुओं में पौराणिक मान्यता है कि मनुष्य के कर्मों का लेखा जोखा चित्रगुप्त रखते हैं.
इस में केवल एक ही बात महत्वपूर्ण है कर्म फल. संसार के सभी धर्म इस विषय में एक राय रखते हैं कि कर्मों के आधार पर उनके साथ न्याय किया जायेगा. शुभ कर्मों का शुभ परिणाम अशुभ कर्मों का अशुभ परिणाम. तो फिर क्या कर्मों का हिसाब किताब रक्खा जाता है या फिर क्या कोई और तरीका है जिससे जीव के कर्मों का ज्ञान हो सके.
इस में केवल एक ही बात महत्वपूर्ण है कर्म फल. संसार के सभी धर्म इस विषय में एक राय रखते हैं कि कर्मों के आधार पर उनके साथ न्याय किया जायेगा. शुभ कर्मों का शुभ परिणाम अशुभ कर्मों का अशुभ परिणाम. तो फिर क्या कर्मों का हिसाब किताब रक्खा जाता है या फिर क्या कोई और तरीका है जिससे जीव के कर्मों का ज्ञान हो सके.
हम जो भी कार्य जिस भावना से करते हैं उस समय हमारी प्रकृति वैसी होती है. अच्छा, बुरा, सामान्य कार्य करते समय हमारी प्रकृति तदनुरूप हो जाती है. जो लगातार श्रेष्ठ कार्य करता है उसकी प्रकृति श्रेष्ठ हो जाती है. इसी प्रकार अधम कार्य करने पर प्रकृति अधम हो जाती है. जीवन में जेसी सोच वैसे कर्म वैसी प्रकृति. जीवन की इसी सोच और कर्म का प्रभाव हमारे जीवन के अंतिम दिनों में भी रहता है. व्यापारी व्यापार की सोचता है तो कलाकार कला की. कोई दुश्मन के बारे में सोचता हे तो कोई बेटी बेटे के बारे में. सोच के अनुसार हमारी प्रकृति बन जाती है अब जैसी प्रकृति वैसी अगली यात्रा. बाहरी दिखावे से यहाँ काम नहीं चलता है, इससे भी काम नहीं चलता कि लोग तुम्हें अच्छा कहते हैं या बुरा. यह तो तुम स्वयं जानते हो तुम कैसे हो उसके आधार पर तुम्हारा निर्णय होगा.