चैतन्य और चेतना के लिए अंग्रेजी में consciousness एक ही शब्द प्रयुक्त होता है. जिससे बड़ी भ्रान्ति उत्त्पन्न हो गयी है.
चैतन्य सम्पूर्ण नित्य होश है जो किसी शरीर के रहने अथवा न रहने पर सदा एक सा रहता है.
चेतना एक प्राकृत होश है. प्रकृति का एक विकार है जो शरीर में उत्पन्न होती है. इसके दो भाग हैं
1-
मस्तिष्क की चेतना जिससे हम चिंतन मनन आदि सभी कार्य करते है.जो नींद
में समाप्त हो जाती है.
2-
शरीर के आतंरिक अंगों की चेतना जो नींद में बनी रहती है पर मृत्यु के
बाद समाप्त हो जाती है. कुछ अंगों की चेतना मृत्यु के बाद कुछ समय तक बनी रहती है.
यदि उनको किसी शरीर में नित्य चेतना का संसर्ग या किसी अन्य प्राकृत ढंग से अनुकूल
स्थिति मिल जाती है तो वह चेतन रहते हैं.
तात्पर्य है चेतना स्थायी नित्य तत्त्व नहीं है जबकि चैतन्य स्थायी नित्य तत्त्व है. इसे अहम् या स्वयॅ ( Self ) कहना उचित होगा. यह हर अवस्था में जीव के साथ नित्य है. यह सामान चैतन्य रूप में एक और सर्वत्र है और विशेष चैतन्य रूप में प्रत्येक जीव के साथ हर अवस्था में है. कहना उचित होगा यह हर अवस्था में जीव के साथ नित्य है.
आइये इसे सरल रूप से समझते हैं. मनुष्य या किसी भी जीव के पास, चाहे उसे पता हो या पता न हो तीन प्रकार का होश होता है.
1- होश जो सदा हर अवस्था में बना रहता है
2- होश जिससे हमारा मस्तिष्क - मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ कार्य करती है जो नींद, बेहोशी और मृत्यु में समाप्त हो जाता है.
3- होश जो हमारे शरीर के आतंरिक अंगों का है जो जाग्रत, नींद और बेहोशी में बना रहता है पर मृत्यु में समाप्त हो जाता है.
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