माया की आवरण और विक्षेप शक्ति
माया(अज्ञान) की दो शक्तियां हैं.
१.आवरण
२. विक्षेप
आवरण का अर्थ है पर्दा , जो दृष्टि में अवरोधक बन जाय. जिसके कारण वास्तविकता नहीं दिखायी दे. जैसे बादल का एक टुकड़ा पृथ्वी से कई गुने बड़े सूर्य को ढक लेता है उसी प्रकार माया की आवरण शक्ति सीमित होते हुए भी परम आत्मा के ज्ञान हेतु अवरोधक बन जाती है. परमात्म को जानने वाली बुद्धि है, अज्ञान का आवरण बुद्धि और आत्मतत्त्व के बीच आ जाता है.
विक्षेप शक्ति - माया की यह शक्ति भ्रम पैदा करती है. यह विज्ञानमय कोश में स्थित रहती है. आत्मा की अति निकटता के कारण यह अति प्रकाशमय है. इससे ही संसार के सारे व्यवहार होते हैं. जीवन की सभी अवस्थाएं, संवेदनाएं इसी विज्ञानमय कोश अथवा विक्षेप शक्ति के कारण हैं. यह चैतन्य की प्रतिविम्बित शक्ति चेतना है. यह विक्षेप शक्ति सूक्ष्म शरीर से लेकर ब्रह्मांड तक संसार की रचना करती है.
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आकाश वायु अग्नि जल पृथ्वी पंच महाभूत से संसार बनी है। निष्क्रिय प्रकृति जब क्रियाशील होती है तो माया प्रकट होती है। पंचमहाभूत से बना संसार , माया नहीं तो क्या है? पंचमहाभूत का शरीर जीवित होता है तो इसे माया कहते हैं। सूक्ष्मता से विचार करने से महसूस होता है कि पुरुष के हाजिरी में पंचमहाभूत से जीव जन्तु प्राणी वनस्पति बना हुआ है और मन बुद्धि चित्त अहंकार का गुलाम बना हुआ है। मन में त्री गुणात्मक माया बसी हुई है। परिणामस्वरूप इंसान संसार में ठोकरें खाते हुए जी रहा है क्योंकि माया प्रति क्षण रूप बदल रही है। सुख-दुख राग-द्वेष मोह-माया एक-दूसरे के साथ साथ चल रहे हैं। संसार से मोहभंग हुए बगैर मोक्ष प्राप्ति आकाश कुसुम समान है।
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