सुसुप्ति का रहस्य
सुषुप्ति काले सकले विलीने
तमोऽभिभूतः सुखरूपमेति – केवल्य
प्रत्येक प्राणी के लिए नीद आवश्यक है नीद की दो अवस्थाएँ है.स्वप्नावास्था और सुषुप्ति. सुषुप्ति वह अवस्था है जब कोई स्वप्न भी नहीं रहता. प्रश्नोपनिषद बताता है जब उदान वायु द्वारा CNS (स्नायुतंत्र पर) पूर्ण रूप से अधिकार कर लिया जाता है तब सुषुप्ति अवस्था होती है.
वेदान्त बताता है सुषुप्ति काल में इन्द्रियों और उनके विषय नहीं रहते. इस अवस्था में कोई आसक्ति न होने से यहाँ जीव आनन्द का अनुभव करता है.
सुषुप्ति काल में स्थूल और सूक्ष्म दोनों विलीन हो जाते हैं.व्यावहारिकसत्ता और स्वप्न प्रपंच अपने कारण अज्ञान में लीन हो जाते हैं. केवल शुद्ध चेतन्य अंश उपस्थित रहता है. इस अवस्था में ईश्वर और जीव आनन्द का अनुभव करते हैं परन्तु इस समय वृत्ति अज्ञानमय होती है
मांडूक्योपनिषद् सुषुप्ति को स्पष्ट करता है.
नहीं स्वप्न नहिं दृश्य
सुप्त सम है ज्ञान घन
मुख चैतन्य परब्रह्म
आनन्द भोग का भोक्ता
तीसर पाद पर ब्रह्म.
मकार तीसरी मात्रा
माप जान विलीन
सुसुप्ति स्थान सम देह है
प्रज्ञा तीसर पाद
जान माप सर्वस्व को
सब लय होत स्वभाव.
चैतन्य से दीप्त अज्ञान वृत्ति से मुक्त होकर आनन्द को भोगता है. इसी कारण सोकर उठा हुआ मनुष्य कहता है मैं सुख पूर्वक सोया ,बढ़े चैन से सोया, इन शब्दों से सुषुप्ति में आनन्द के अस्तित्व का पता चलता है. मुझे कुछ याद नहीं है,इससे अज्ञान के अस्तित्व का भी पता चलता है.
वृहदारण्यक उपनिषद् कहता है मनुष्य के शरीर में हिता नामक 72000 नाडियों हृदय (CNS) से निकल कर समस्त शरीर में व्याप्त हैं, उनमें फैलकर शरीर में व्याप्त हुआ शयन करता है. छान्दग्योपनिषद में कहा है शरीर में व्याप्त हुआ जब शयन करता है तो कोई स्वप्न नहीं देखता है सब प्रकार से सुखी होकर नाडियों में व्याप्त हो सोता है.इस अवस्था में कोई पाप इसे स्पर्श नहीं करते. श्रुति कहती हैं, यह जीव सोते हुए सत् युक्त होता है. वृहदारण्यक उपनिषद् बताता है सोते हुए जीवात्मा न बाहर की किसी वस्तु को जानता है न भीतर की किसी वस्तु को जानता है.
सोते हुए जीव अपने उदगम स्थान में पहुँचता है और वहीँ से वापस होत है परन्तु अज्ञानमय होने के कारण सुसुप्ति में बोध नहीं होता.
वृहदारण्यक उपनिषद् बताता है जो जीवात्मा सोता है वही जागता है. प्राज्ञ ब्रह्म की ऊपर से नीचे दूसरी अवस्था है जिसे जीवात्मा सुसुप्ति में उपलब्ध होता है. यहाँ आनन्द है पर यहाँ बोध नहीं है.
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