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BHAGAVAD-GITA FOR KIDS
Bhagavad Gita 1. The Bhagavad Gita is an ancient Hindu scripture that is over 5,000 years old. 2. It is a dialogue between Lord ...
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माया ऐसा शब्द है जिसे बच्चा-बूढ़ा, छोटा-बड़ा, गरीब-अमीर सब कोई जानते हैं और जानने के बाद भी माया को कोई नहीं जानता है. कबीर भी कह गए '...
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प्रश्न- भगवद्गीता में ईश्वर के तीन नाम आये है ऊँ तत् सत्, इनका गूड रहस्य क्या है? ॐ शब्द का तो स्वास के साथ जप किया जा सकता है पर तत्, सत्...
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सूक्ष्म शरीर -लिंग शरीर ब्रह्म सूत्र के चौथे अध्याय के पहले पाद का दूसरा सूत्र है- लिंग...
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आज मैं आपको एक कहानी सुनाता हूं. आप सभी ने राजा जनक का नाम सुन होगा. एक बार उनके राज्यके ऊपर दुश्मन ने आक्रमण कर दिया है. उनकी सेना हार ग...
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माया की आवरण और विक्षेप शक्ति माया ( अज्ञान ) की दो शक्तियां हैं . १ . आवरण २ . विक्षेप आवरण का अर्थ है पर्दा , ज...
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ईश्वर का संकल्प छान्दग्योपनिषद में जगत रचना के विषय में कहा गया है कि उस सत् ने संकल्प किया कि मैं बहुत हो ज...
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आत्मा, परमात्मा, धर्म चर्चा पर उनका विशवास नहीं था. वह धर्म पालन पर जोर देते थे. साधना करते करते स्वयं सत्य अनुभूत करना उनका मार्ग था. प...
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प्रश्न -आत्मज्ञान क्या है? उत्तर- अपने वास्तविक स्वरुप का ज्ञान आत्मज्ञान है.सरल शब्दों में इसे बोध कहते हैं.यही ब्रह्म ज्ञान भी कहा जात...
A great modern day vedantic work presented as a dialogue between teacher and disciple. The author has beautifully explained subtle vedantic concepts in an easy to understand way. The language is simple almost harsh at times, reminding me of Kabir's work. Author's original take on words such as veda and guru etc. shows that he has deep understanding of Hindu philosophy and has been practicing it for a while.
ReplyDeleteWhether you have been a seeker for years or just starting your journey this text would definitely help.
May everybody see things as they are.
🙏
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ReplyDeleteब्रह्म सत्य जगत मिथ्या। ब्रह्म से ही विद्या अविद्या प्रकट होता है। ब्रह्माण्ड की सृष्टि पालन प्रलय ब्रह्म की वृत्ति है। प्रकृति पुरुष ब्रह्म की दो शक्ति हैं जो संसार का कारण हैं। अविद्या में जीव ही जीवात्मा है आत्मस्वरुप का ज्ञान होता है तो जीव अविद्या से मुक्त हो जाता है और शुद्ध आत्मा का अनुभव करता है। आत्मा परमात्मा ब्रह्म एक ही बात है। जीवात्मा अपने शरीर में प्रारब्ध कर्म को भोगने हेतु जींदा रहता है वह जीते जी जीवन मुक्त रहता है सुख-दुख से परे आनंदमय जीवन जीता है सुख-दुख शरीर का समझता है उसे पता है कि वह अजर-अमर अविनाशी सत् चित् आनंद है मृत्यु का भय से मुक्त रहता है। उसके राग-द्वेष मोह-माया सुख-दुख खत्म होने लगता है स्वयं को सदा से निराकार निर्विकार निर्गुण अजर-अमर अविनाशी सत् चित् आनंद महसूस करता है हृदय में उल्लास महसूस करता है।
ReplyDeleteशरीर इंद्रियां अंतःकरण सभी आठ अपरा प्रकृति से बना है आठ अपरा प्रकृति आकाश वायु अग्नि जल पृथ्वी मन बुद्धि अहंकार हैं चेतना परा प्रकृति से बना है। शरीर इंद्रियां अंतःकरण चेतना सभी ईश्वरीय शक्ति हैं तो प्रश्न है कि मैं क्या हूं? मैं मिथ्या अहंकार का स्वामी बन गया है मैं भ्रमित हो गया है अंतःकरण मैं को संसार से भिन्न दिखाता है जबकि वास्तविकता यह है कि सब कुछ ईश्वरीय सृष्टि है मैं भी ईश्वरीय शक्ति है मैं ईश्वर का अभिन्न अंश है। अंतःकरण के भ्रम में नहीं फंसना चाहिए जो कुछ करना है ईश्वर का प्रायोजन समझना है निस्वार्थ करना चाहिए,यहां अपना कुछ भी नहीं है। संसार को ईश्वर का शतरंज का खेल समझना है हम ईश्वर का प्यादा मात्र हैं कोई फन्ने खान नहीं हैं।
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