प्राण
प्राण वह जीवन शक्ति जिससे कोई मनुष्य, जंतु अथवा वनस्पति जिन्दा रहती है. वह
जो साँस लेता है उससे वृद्धि होती है, प्रजनन आदि क्रिया होती हैं उसे प्राण कहते
हैं.
हिन्दू योग एवम
दर्शन ग्रंथों में मुख्य प्राण पांच बताए गए हैं इसके आलावा उपप्राण भी पाँच बताये
गए है पाँच प्राणों के नाम
इस प्रकार हैं
१. प्राण
२. अपान
३. समान
४. उदान
५. व्यान
१. प्राण
२. अपान
३. समान
४. उदान
५. व्यान
प्राण का जन्म
यह प्राण क्या है यह कहाँ से आया, यह
कैसे पैदा हुआ? जब जल और पृथ्वी तत्त्व, गंध और रस साथ मिलकर एक आकार ले लेते हैं
तो बीज बन जाता है. इस अवस्था में ज्ञान निष्क्रिय अवस्था में रहता है. अग्नि और वायु तत्त्व
सुप्तावस्था में रहते हैं.
बीज में जब ज्ञान क्रियाशील हो जाता है तो ज्ञान के क्रियाशील होते ही biochemical
(रसायनिक) क्रिया प्रारंभ हो जाती है बीज में ऊर्जा (गर्मी) पैदा हो जाती है और बीज
फूलने लगता है अथवा उसकी वृद्धि होने लगती है. इस गर्मी को बनाये रखने के लिए बीज
में वायु का संचरण और फैलाव होने लगता है. इस वायु का संचरण और फैलाव को प्राण
कहते हैं. इस प्रकार बीज शरीर का आकार लेता है जिसके लिए प्राण आवश्यक है.
जब शरीर में ज्ञान अक्रिय हो जाता है तो प्राण रुक जाते हैं क्योंकि शरीर
का विकास समाप्त हो जाता है इसलिए गर्मी की आवश्यकता नहीं रहती, शरीर की गर्मी
खत्म (70Fन्यूनतम तक हो जाती) है. शरीर की गर्मी खत्म होने से अंग कार्य करना बंद
कार देते हैं. इसे ORGANS DROPS DOWN कहा जाता है.
कभी कभी ताप १०८ फ़ के कारण ज्ञान को धारण करने
वाला ज्ञान शरीर छोड़ देता है और शरीर में प्राण क्रिया रुक जाती है.
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