प्रश्न- आपने कहा कि केवल कहना कि मैं आत्मा हूँ अपने को धोबी का कुत्ता बनाना है जो न घर का रहता है न घाट का. इससे आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर- मैं आत्मा हूँ, मैं परमात्मा हूँ यह ब्राह्मी स्थिति है अतः उपलब्धि का विषय है. क्या कोइ डॉक्टर डॉक्टर कहने से डॉक्टर हो सकता है. कोई भी शिक्षा क्रिया द्वारा ही प्राप्त हो सकती है केवल कहने से कुछ भी सिद्ध नहीं होता. विचार, क्रिया और अनुभूति से ही इस ओर बड़ा जा सकता है. अक्रिय होने के लिए भी क्रिया करनी होगी. अनासक्त होने अथवा संसार से उदासीन होने के लिए भी क्रिया आवश्यक है. बुद्धि से आत्मा में रमण करने के लिए भी क्रिया आवश्यक है. उच्च स्तर में पहुँचने तक यह नियम आवश्यक है.
प्रश्न- गुरु का क्या प्रयोजन है?
उत्तर- शिष्य के प्रतिबोध धरातल को पुष्ट करना ही गुरु का कार्य है.
प्रश्न- क्या गुरु का कार्य बोध कराना नहीं है?
उत्तर- इससे ईश्वर के कर्म सिद्धांत का विरोध होता है. श्री भगवन भगवद गीता में कहते हैं कि इस संसार में कर्म से बड़ा कोई भी देने वाला नहीं है.
प्रश्न- शिष्य के कर्म क्षय होने पर भी क्या यही नियम लागू होगा.
उत्तर- कर्म क्षय होते ही शिष्य स्वयं अथवा गुरु कृपा से बोध को प्राप्त हो जाएगा. तुम स्वयं जान जावोगे की तुम, तुम्हारी आत्मा, तुम्हारे गुरु तीनों एक हैं.
प्रश्न- फिर कई लोगों को बाल्यावस्था में बोध बिना कुछ किये केसे हुआ.
उत्तर- यह पूर्व जन्म की साधना का परिणाम होता है.
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