प्रश्न -क्या मैं शरीर हूँ ?
उत्तर- यह समझना कि मैं शरीर हूँ जीवन की महानतम भूल है. मृत्यु के बाद यह शरीर संसार में रह जाता है पर क्या वह तुम होते हो.
प्रश्न -क्या मैं आत्मा हूँ ?
उत्तर- केवल यह कहना कि मैं आत्मा हूँ अपने को धोबी का कुत्ता बनाना है जो न घर का रहता है न घाट का.
कहने से कुछ नहीं बनेगा उसे समझना होगा, जानना होगा, व्यवहार में लाना होगा. विचार को निरंतर अभ्यास और वैराग्य से पुष्ट करना होगा.
प्रश्न -फिर मैं कोन हूँ ?
उत्तर- निरंतर इस प्रश्न की खोज करते रहो तब उत्तर अपने आप मिल जायेगा.
प्रश्न - क्या कोई अन्दर से आवाज आएगी.
उत्तर- अन्दर की आवाज से केवल तुम्हारी खोज को बल मिलेगा.
प्रश्न - क्या कोई प्रकाश दिखाई देगा?
उत्तर- कोई भी दृश्य अथवा प्रकाश वास्तविकता नहीं होगी.
प्रश्न - फिर क्या होगा?
उत्तर - तुम्हारा वास्तविक स्वरूप प्रगट होगा. कोई प्रश्न कोई विचार शेष नहीं रहेगा.तुम पूर्ण ज्ञानमय हो जावोगे.
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