प्रश्न -आत्मज्ञान क्या है?
उत्तर- अपने वास्तविक स्वरुप का ज्ञान आत्मज्ञान है.सरल शब्दों में इसे बोध कहते हैं.यही ब्रह्म ज्ञान भी कहा जाता है.
ज्ञान की पूर्णता को प्राप्त कर लेना जिससे बढकर कुछ भी न हो. जो सदा एक सा रहे, जिसका क्षय न हो जिसको कम या अधिक न किया जा सके, जो पूर्ण हो ऐसा ज्ञान आत्मज्ञान कहा जाता है.
कुछ मनीषियों का कथन है कि परम शांति को प्राप्त होना आत्मज्ञान है.परन्तु परम शांति उस बोध का परिणाम है.पूर्ण बोध को प्राप्त मनुष्य स्वाभाविक रूप से शांत हो जाता है. कबीर कहते हैं- शान्ति भई जब गोविन्द जान्या अर्थात गोविन्द को जानने पर ही शान्ति होती है. गोविन्द कोन है? गो अर्थात इन्द्रियां,जो इन्द्रियों का स्वामी है अर्थात ज्ञान. बोध और ज्ञान एक ही तत्व के पर्याय हैं. इसे पूर्ण चेतन्य भी कहा जाता है. यह ज्ञान ही आपका वास्तविक मैं है.
प्रश्न- ज्ञान को विस्तार से सुस्पष्ट करें.
उत्तर- मैं ज्ञान हूँ. मैं प्रत्येक प्राणी की बुद्धि के अंदर रहता हूँ. मैं पदार्थ में सुप्त रहता हूँ परन्तु मेरी उपस्थिति से ही जड़ में चेतन का संचार होता है. मैं सर्वत्र हूँ, मैं सर्वोत्तम हूँ, परम पवित्र हूँ, मेरे स्पर्श मात्र से अपवित्र भी पवित्र हो जाता है. मैं सर्व शक्तिमान हूँ, मैं पूर्ण हूँ मुझसे कितना ही निकल जाये फिर भी मैं पूर्ण रहता हूँ. न मुझे कोई कम कर सकता है न कोई अधिक कर सकता है. मैं सदैव स्थिर सुप्रतिष्ठित रहता हूँ. न कोई मुझे मार सकता है, न जला सकता है. न गीला कर सकता है, न सुखा सकता है, मैं नित्य हूँ, अचल हूँ, सनातन हूँ.
मेरा न आदि है, न अंत है, मैं सृष्टि का कारण हूँ, मेरे सुप्त होते ही पदार्थ जड़ हो जाता है, मेरी जागृति ही जीवन है अर्थात ज्ञान सत्ता से ही जड़ में जीवन और जीवन जड़ होता है. मैं जीवन का कारण हूँ, जड़ भी मेरा विस्तार है. मेरे स्फुरण की मात्रा से भिन्न भिन्न बुद्धि और भिन्न भिन्न स्वरुप के प्राणी उत्पन्न होते हैं, अलग अलग स्वाभाव लिए भिन्न भिन्न कर्म करते हैं, पर मैं तटस्थ और एकसा रहता हूँ.
मैं पृथ्वी में गंध, जल में रस, अग्नि में प्रभा, वायु में स्पर्श और आकाश में शब्द रूप में प्रकट होता हूँ, मेरे कारण ही यह ब्रह्माण्ड टिका है. मैं बर्फ में जल की तरह संसार में व्याप्त हूँ. सब चर अचर का मैं कारण हूँ, सभी भाव मुझसे ही उत्पन्न होते हैं. कोई जड़ तत्व मेरा कारण नहीं है. मेरे कारण ही जड़ चेतन का विस्तार होता है. मैं ही जड़ होता हूँ फिर उसमें चेतन रूप से प्रकट होता हूँ. जो मेरे शुद्ध रूप को प्राप्त हो जाता है वह सृष्टि के सम्पूर्ण रहस्यों को जान लेता है. सारा खेल मेरी मात्रा का है. मैं पूर्ण शुद्ध ज्ञान हूँ, मेरा दूसरा यथार्थ नाम महाबुद्धि है. परम बोध मेरा अस्तित्व है.
ज्ञान और आत्मा का अंतर स्पष्ट करें .क्या ज्ञान का अंश जो चेतनता उत्पन्न करे उसे आत्मा कह सकते है.
ReplyDeleteज्ञान और आत्मा जल और बर्फ के समान अभिन्न हैं. ज्ञान जो स्वयं में पूर्ण है वह विराट और अंश में पूर्ण रूप से समाया हुआ है अथवा स्थित है. ज्ञान वह है जो सदा एक सा रहे, जिसका क्षय न हो जिसको कम या अधिक न किया जा सके. ज्ञान के संकल्प अथवा उपस्थिति से चेतनता उत्पन्न होती है.ज्ञान पूर्ण होने के कारण सदा चेतन्य है.ज्ञान अथवा उसका अंश जो जड़ को चेतन और चेतन को जड़ करता हे उसे आत्मा जाना जाता है.
ReplyDeleteसदा ध्यान रखना मैं शिव हूँ, मैं ही राम हूँ, मैं ही कृष्ण हूँ, मैं आत्मा हूँ, मैं परमात्मा हूँ, मैं परम और पूर्ण ज्ञान हूँ. मैं यह शरीर नहीं हूँ.
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