प्रश्न- गुरु के विषय में विस्तार से बताने का कष्ट करें.
उत्तर- गुरु के विषय में जानना है तो अर्जुन बनना होगा, जो श्री कृष्ण से साफ साफ कह देता है की मैं तुम्हारी बात पर कैसे विशवास करूँ? राम कृष्ण परमहंस बनना होगा जो तोतापुरी महाराज से कहते हैं तुम मेरे गुरु नहीं हो. मैं कैसे तुम पर विशवास करूँ. विवेकानंद होना होगा जिनके लिए रामकृष्ण परमहंस सनकी थे. वह भिन्न भिन्न तरीके से रामकृष्ण की परिक्षा लेते थे.
दूसरे के प्रति संशयात्मक ज्ञान नष्ट होने पर ही श्रद्धा और समर्पण का जन्म होता है. इसलिए गुरु को खूब ठोक बजा कर जांच लो तब गुरु बनाओ जिससे तुम्हारी श्रद्धा न डिगे.
सही में गुरु बनाने की कोई जरूरत नहीं है. जिसको तुम गुरु बनाओगे वह तुम्हारी बुद्धि का परिणाम होगा और जीवन की वास्तविकता को जानने के लिए वह व्यक्ति चाहिए जो जिसने जीवन का तत्त्व पा लिया हो.
वास्तव में गुरु तुम्हारी आत्मा है और जब तुम्हें उसकी आवश्यकता होगी वह किसी न किसी रूप में तुम्हारे पास आयेगा क्योकि तुम्हारी आत्मा सृष्टि का नियंता है. वह जानता है तुम्हें कब किस वस्तु की जरूरत है.
अब बोर्ड लगा है जगत गुरु, विश्व गुरु, H.H Guru. भगवान् ...आदि. तुम सब दुकानों में घूमने जरूर जाओ पर खरीदने से पहले मोल भाव अवश्य कर लेना. इस गुरुडम को रोकने के लिए गुरु गोविन्द सिंह ने आगे गुरु होने पर रोक लगा दी थी. ग्रन्थ साहिब को ही गुरु का स्थान दिया.पर उसके बाद भी सिक्खों में अनेक गुरु हो गए.
मनुष्य सुविधा भोगी है इसलिए हर व्यक्ति को कुछ पैसा या फूल फल चडाकर स्वर्ग में जगह चाहिए. इसी भय को सब जगत गुरु भुना रहे हैं. एक शिष्य को अपने गुरु से यह कहते सुना कि तुम्हारी पूंछ हमने पकड़ ली है अब आप के साथ हमारी भी मुक्ति हो जायेगी. देखा देखी से जिस प्रकार एक मनुष्य का सोने का कलश बालू के अनेक शिवलिंग बनने से गुम हो गया था उसी प्रकार छले मत जाना.
गुरु शब्द का प्रयोग आत्मा और परमात्मा के लिए किया जाता है. बोध प्राप्त व्यक्ति अपनी आत्मा में सम्पूर्ण सृष्टि को देखता है, वह अपने में ही दूसरे बोध प्राप्त व्यक्ति को देखता है. वह देखता है मेरे अलावा दूसरा कोई नहीं है. इस अवस्था में वह गुरु कहलाता है.
तुम स्वयं अपने मित्र हो स्वयं अपने शत्रु हो. किसी से कुछ सीखने में कोई बुराई नहीं है, शिक्षक कोई भी हो सकता है पर गुरु जो सबसे भारी है सबसे बड़ा है सबसे श्रेठ है वह तुम्हारी आत्मा है, परमात्मा है वह तुम हो, बस अस्मिता की प्रतीति से मुक्त हो जाओ.
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