प्रश्न- कई महात्मा सोऽहं के जप को बड़ा महत्व देते हैं. आपका इस विषय में क्या अभिमत है?
उत्तर- पहले आप सोऽहं को समझिये. सोऽहं का अर्थ है मैं वही हूँ. वही अर्थात परमात्मा. वैदिक एवं उत्तर वैदिक मंत्र अहम् ब्रह्मास्मि, अयमात्मा ब्रह्म, शिवोहम, नारायणोहम को ही ध्वनित करने वाला शब्द सोऽहं है. यह ॐ (ओंकार) ही है. सोऽहं का तात्पर्य है जो ॐ स्वरुप परमात्मा है वह मैं हूँ.
प्रश्न- यह ॐ (ओंकार) ही सोऽहं कैसे है.
उत्तर- ॐ समस्त सृष्टि और सृष्टि से परे का सूचक है. यह शब्द ब्रह्म भी कहा गया है. अध्यात्म में शब्द का वास्तविक अर्थ है यथार्थ पूर्ण ज्ञान अर्थात पूर्ण वास्तविकता. ॐ परमात्मा का नाम है. यह परमात्मा का अहंकार है. ॐ कोई ध्वनि नहीं है. ॐ शब्द पूर्ण विशुद्ध ज्ञान में हलचल की अवस्था को दिया गया नाम है. इस पूर्ण विशुद्ध ज्ञान में हलचल होते ही अव्यक्त अवस्था जन्म, स्थिति और लय में रूपांतरित हो गयी साथ ही अपने मूल स्वरुप में भी स्थित रही. हिन्दुओं में जन्म, स्थिति और लय ही त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और शिव शंकर की द्योतक ॐ को ही प्रतिध्वनित करती है. बाइबिल भी कहती है की जब सृष्टि नहीं थी तब शब्द था. यहाँ शब्द का अर्थ ध्वनि से न होकर ज्ञान (यथार्थता) है.
प्रश्न- ज्ञान में हलचल की अवस्था को ॐ ही नाम क्यों दिया गया?
ॐ अ, उ, म तीन अक्षरों से बना है. अ की ध्वनि करते हुए मुंह खुलता है, उ की ध्वनि करते हुए ध्वनि का विस्तार होता है और मुंह खुला रहता है म की ध्वनि के साथ मुंह बंद हो जाता है. यह तीन अवस्था सृष्टि का जन्म, विस्तार जिसे स्थिति कहा है और अंत है. इसके अलावा ॐ में बिन्द्दु भी लगा होता है जो सृष्टि से परे परम सत्य का परमात्मा का द्योतक है.
ॐ शब्द परम ज्ञान जिसे परमात्मा कहते हैं के वास्तविक स्वरुप और विशेषताओं को पूर्ण रूप से स्पष्ट करता है इसलिए यह परमात्मा का वास्तविक नाम है. श्री भगवन भगवद गीता में कहते हैं -ओम इति एकाक्षरं ब्रह्म. ओम ही ब्रह्म है और इसे व्यवहार में स्वीकारते हुए सदा परमात्मा का चिंतन करना चाहिए.
प्रश्न- क्या सोऽहं बोध की अवस्था है?
उत्तर- हाँ सोऽहं बोधावस्था है. ॐ तत्त्व जब अनुभूत हो जाता है तो साधक स्वयं जानता है कि वह, प्रकृति और पुरुष सब एक ही हैं. कहीं भी द्वैत नहीं है. जो परमात्मा है वह स्वयं है तब वह स्वतः ही कहता है सोऽहं, अहम् ब्रह्मास्मि, शिवोहम, नारायणोहम. इसलिए बिना ॐकार को अनुभूत किये सोऽहं से कोइ लाभ नहीं होता क्योकि जब तक मिथ्यात्मा है तब तक सोऽहं जो बोध स्वरुप है कैसे और किस प्रकार कोई जान सकता है. इसलिए 'एक ॐकार सत नाम' जानकार ॐ का ही जप, व्यवहार में स्मरण करना चाहिए. सोऽहं खुद प्रगट होगा.
Hahahaha aham brahmasmi kah kah kar naa jane kitne log dub gaye ishvar ansh jiv avinashi ...paras se sona banata hai paras guru hai shisy lohe ko sona banta Hai lohe se sona ban sakta hai shisy khud paras nahi
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