प्रश्न- गुरु दक्षिणा के विषय में आपके क्या विचार हैं.
उत्तर- गुरु दक्षिणा शास्त्र सम्मत नहीं है यह प्रथा कथा सम्मत है. वेद, उपनिषद, भगवद्गीता, अष्टावक्रगीता, पातंजलि योगसूत्र, ब्रह्मसूत्र, संख्या दर्शन, विवेक चूडामणि आदि प्रामाणिक एवं शास्त्रों में गुरु दक्षिणा का कोई उल्लेख नहीं है. ब्रह्म ज्ञानी गुरु को शिष्य की केवल श्रद्धा की दक्षिणा चाहिए पर आजकल न ब्रह्मज्ञानी गुरु हैं न शिष्य में श्रद्धा है.
प्रश्न- तो फिर गुरु पूजन किस प्रकार करें?
उत्तर- गुरु पूजन में शिष्य को गुरु की श्रद्धा पूर्वक जल, गंध, पुष्प, फल, अन्न और वस्त्र से पूजन करना चाहिए. अपने घर से श्रद्धा और प्रेम से बनाया भोजन लाकर प्रेम से खिलाना चाहिए. यह भी अपनी सामर्थ के अनुसार करना चाहिए. एक तुलसी का पत्ता अतवा एक बूँद जल पर्याप्त है. गुरु को धन देना न अपना भला करना है न गुरु का भला होना है. गुरु को धन देने से तो अच्छा है किसी जरूरतमंद की चुपचाप मदद कर दो. गुरु को मात्र तुम्हारा प्रेम चाहए तुम्हारी श्रद्धा चाहिए. यदि तुम्हारा गुरु सच्चा है तो वह शरीर नहीं है वह आत्म रूप में आपके अन्दर और अपनी देह और सर्वत्र विराजमान है.एक बात सच्ची सच्ची सुन लो तुम जो धन अपने गुरु को देते हो वह अपने भय, लालच, लोक परलोक के टिकट के लिए दे रहे हो और तुम्हारे गुरु इस भय का फायदा उठा रहे हैं. सच्चा गुरु तुमसे कोइ अपेक्षा नहीं करता. भूख, बीमारी, प्राकृतिक आपदा से बिलखती मानवता की सेवा करो यह सबसे बड़ी गुरु सेवा होगी. गुरु पूजा पावन दिवस तो तुम्हारी लिए गुरु के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए बनाया है और तुम लिफफा या चेक भेंट कर इस दिन का अपमान करते हो.
उत्तर- गुरु दक्षिणा शास्त्र सम्मत नहीं है यह प्रथा कथा सम्मत है. वेद, उपनिषद, भगवद्गीता, अष्टावक्रगीता, पातंजलि योगसूत्र, ब्रह्मसूत्र, संख्या दर्शन, विवेक चूडामणि आदि प्रामाणिक एवं शास्त्रों में गुरु दक्षिणा का कोई उल्लेख नहीं है. ब्रह्म ज्ञानी गुरु को शिष्य की केवल श्रद्धा की दक्षिणा चाहिए पर आजकल न ब्रह्मज्ञानी गुरु हैं न शिष्य में श्रद्धा है.
प्रश्न- तो फिर गुरु पूजन किस प्रकार करें?
उत्तर- गुरु पूजन में शिष्य को गुरु की श्रद्धा पूर्वक जल, गंध, पुष्प, फल, अन्न और वस्त्र से पूजन करना चाहिए. अपने घर से श्रद्धा और प्रेम से बनाया भोजन लाकर प्रेम से खिलाना चाहिए. यह भी अपनी सामर्थ के अनुसार करना चाहिए. एक तुलसी का पत्ता अतवा एक बूँद जल पर्याप्त है. गुरु को धन देना न अपना भला करना है न गुरु का भला होना है. गुरु को धन देने से तो अच्छा है किसी जरूरतमंद की चुपचाप मदद कर दो. गुरु को मात्र तुम्हारा प्रेम चाहए तुम्हारी श्रद्धा चाहिए. यदि तुम्हारा गुरु सच्चा है तो वह शरीर नहीं है वह आत्म रूप में आपके अन्दर और अपनी देह और सर्वत्र विराजमान है.एक बात सच्ची सच्ची सुन लो तुम जो धन अपने गुरु को देते हो वह अपने भय, लालच, लोक परलोक के टिकट के लिए दे रहे हो और तुम्हारे गुरु इस भय का फायदा उठा रहे हैं. सच्चा गुरु तुमसे कोइ अपेक्षा नहीं करता. भूख, बीमारी, प्राकृतिक आपदा से बिलखती मानवता की सेवा करो यह सबसे बड़ी गुरु सेवा होगी. गुरु पूजा पावन दिवस तो तुम्हारी लिए गुरु के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए बनाया है और तुम लिफफा या चेक भेंट कर इस दिन का अपमान करते हो.
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