प्रश्न- समाधि क्या है ? क्या यह प्राप्त की जा सकती है? इसके लक्षण क्या हैं?
उत्तर- समाधि दो शब्दों से मिलकर बना है सम और धी अर्थात बुद्धि का सम हो जाना. किसी भी जीव की बुद्धि तीन अवस्थाओं में रहती है १- क्रियाशील अवस्था २-सम अथवा स्थिर अवस्था ३- मृत अवस्था. सामान्यतः जीव में गर्भावस्था से ही बुद्धि क्रियाशील होती है और जीवन पर्यन्त रहती है. मृत्यु होते ही यह मृत हो जाती है.
इन दोनों के बीच की अवस्था है सम अथवा स्थिर बुद्धि. यह सतत साधना से प्राप्त की जा सकती है. पूर्ण स्थिर बुद्धि पूर्ण समाधि है . यदि बुद्धि स्थिर कम है तो बुद्धि की स्थिरता के आधार पर समाधि. यह समाधि भिन्न भिन्न साधकों में अलग अलग स्थिति की होती है. इसे मात्रात्मक समाधि कह सकते हैं. लगभग 50% बुद्धि स्थिर हो जाने पर साधक की स्वास गहरी और मंद हो जाती है. साधक आनंद में मगन रहता है. कोई दूसरा व्यक्ति साधक को हिलाकर, उसके कान में उसका नाम लेकर अथवा ॐ का उच्चारण कर उसे सामान्य स्थिति में ला सकता है. इसके बाद बुद्धि जितनी अधिक स्थिर होने लगती है स्वास उतना मंद हो जाता है और साधक उतना अधिक स्थिर और निश्चल हो जाता है.
पूर्ण समाधि में बुद्धि पूर्ण रूपेण रुक जाती है. साधक पूर्ण स्थिर और निश्चल हो जाता है. स्वास बंद हो जाती है. नाड़ी और ह्रदय की गति बंद हो जाती है. इस स्थिति में शरीर के सभी हिस्से जीवित और स्थिर रहते हैं. केवल वह अपना कार्य बंद कर देते हैं. शरीर के अंगों का क्षय नहीं होता. वह समाधि से पूर्व स्थिति की तरह स्थिर हालत में रहते हैं.
इसे हम गहरी नीद जिसे सुसुप्ति कहते हैं से समझ सकते हैं. सुसुप्ति में मस्तिष्क न क्रियाशील होता है न मृत होता है. इसी प्रकार पूर्ण समाधि में शरीर के सभी अंग न क्रियाशील होते हैं न मृत होते हैं. सभी अंग स्थिर दशा में रहते हैं.
पूर्ण समाधि दो प्रकार की होती है.संकल्प समाधि और निर्विकल्प समाधि. संकल्प समाधि में साधक अपने संकल्प के साथ पुनः चेतन और सक्रिय हो जाता है. निर्विकल्प समाधि.में साधक दूसरे के शास्त्र सम्मत प्रयासों द्वारा पुनः चेतन और सक्रिय होता है. इसमें मुख्यतः समाधिस्थ पुरुष को प्रार्थना द्वारा जगाने का प्रयास किया जाता है.
प्रश्न- समाधि से क्या लाभ हैं ?
उत्तर- समाधि की स्थिति के अनुसार साधक दिव्यता प्राप्त कर लेता है, उसका रूपांतरण हो जाता है, वह बोध स्वरुप हो जाता है. यदि समाधि के पश्चात उक्त स्थिति न दिखाई दे तो समझना चाहिए कि वह मात्र कोई शारीरिक क्रिया कर रहा था. इसे जड़ समाधि कहते हैं. यह एक प्रकार से नीद अथवा मूर्छा के सामान स्थिति है.
प्रश्न- नींद और समाधि में क्या अंतर है?
उत्तर- नीद, मूर्छा अथवा जड़ समाधि के बाद व्यक्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता है. वह जैसा कल था वैसा ही रहता है. क्रोधी व्यक्ति क्रोधी,लालची व्यक्ति लालची, कामी व्यक्ति कामी, सज्जन व्यक्ति सज्जन रहता है. उसकी बुद्धि में कोई परिवर्तन नहीं आता. वास्तविक समाधिस्थ पुरुष का समाधि की स्थिति के अनुसार रूपांतरण हो जाता है. पूर्ण समाधि प्राप्त व्यक्ति सृष्टि के सभी रहस्यों को जान लेता है. सभी तत्त्वों पर उसका अधिकार हो जाता है. उसका मस्तिष्क 100% क्रियाशील हो जाता है.
उत्तर- समाधि दो शब्दों से मिलकर बना है सम और धी अर्थात बुद्धि का सम हो जाना. किसी भी जीव की बुद्धि तीन अवस्थाओं में रहती है १- क्रियाशील अवस्था २-सम अथवा स्थिर अवस्था ३- मृत अवस्था. सामान्यतः जीव में गर्भावस्था से ही बुद्धि क्रियाशील होती है और जीवन पर्यन्त रहती है. मृत्यु होते ही यह मृत हो जाती है.
इन दोनों के बीच की अवस्था है सम अथवा स्थिर बुद्धि. यह सतत साधना से प्राप्त की जा सकती है. पूर्ण स्थिर बुद्धि पूर्ण समाधि है . यदि बुद्धि स्थिर कम है तो बुद्धि की स्थिरता के आधार पर समाधि. यह समाधि भिन्न भिन्न साधकों में अलग अलग स्थिति की होती है. इसे मात्रात्मक समाधि कह सकते हैं. लगभग 50% बुद्धि स्थिर हो जाने पर साधक की स्वास गहरी और मंद हो जाती है. साधक आनंद में मगन रहता है. कोई दूसरा व्यक्ति साधक को हिलाकर, उसके कान में उसका नाम लेकर अथवा ॐ का उच्चारण कर उसे सामान्य स्थिति में ला सकता है. इसके बाद बुद्धि जितनी अधिक स्थिर होने लगती है स्वास उतना मंद हो जाता है और साधक उतना अधिक स्थिर और निश्चल हो जाता है.
पूर्ण समाधि में बुद्धि पूर्ण रूपेण रुक जाती है. साधक पूर्ण स्थिर और निश्चल हो जाता है. स्वास बंद हो जाती है. नाड़ी और ह्रदय की गति बंद हो जाती है. इस स्थिति में शरीर के सभी हिस्से जीवित और स्थिर रहते हैं. केवल वह अपना कार्य बंद कर देते हैं. शरीर के अंगों का क्षय नहीं होता. वह समाधि से पूर्व स्थिति की तरह स्थिर हालत में रहते हैं.
इसे हम गहरी नीद जिसे सुसुप्ति कहते हैं से समझ सकते हैं. सुसुप्ति में मस्तिष्क न क्रियाशील होता है न मृत होता है. इसी प्रकार पूर्ण समाधि में शरीर के सभी अंग न क्रियाशील होते हैं न मृत होते हैं. सभी अंग स्थिर दशा में रहते हैं.
पूर्ण समाधि दो प्रकार की होती है.संकल्प समाधि और निर्विकल्प समाधि. संकल्प समाधि में साधक अपने संकल्प के साथ पुनः चेतन और सक्रिय हो जाता है. निर्विकल्प समाधि.में साधक दूसरे के शास्त्र सम्मत प्रयासों द्वारा पुनः चेतन और सक्रिय होता है. इसमें मुख्यतः समाधिस्थ पुरुष को प्रार्थना द्वारा जगाने का प्रयास किया जाता है.
प्रश्न- समाधि से क्या लाभ हैं ?
उत्तर- समाधि की स्थिति के अनुसार साधक दिव्यता प्राप्त कर लेता है, उसका रूपांतरण हो जाता है, वह बोध स्वरुप हो जाता है. यदि समाधि के पश्चात उक्त स्थिति न दिखाई दे तो समझना चाहिए कि वह मात्र कोई शारीरिक क्रिया कर रहा था. इसे जड़ समाधि कहते हैं. यह एक प्रकार से नीद अथवा मूर्छा के सामान स्थिति है.
प्रश्न- नींद और समाधि में क्या अंतर है?
उत्तर- नीद, मूर्छा अथवा जड़ समाधि के बाद व्यक्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता है. वह जैसा कल था वैसा ही रहता है. क्रोधी व्यक्ति क्रोधी,लालची व्यक्ति लालची, कामी व्यक्ति कामी, सज्जन व्यक्ति सज्जन रहता है. उसकी बुद्धि में कोई परिवर्तन नहीं आता. वास्तविक समाधिस्थ पुरुष का समाधि की स्थिति के अनुसार रूपांतरण हो जाता है. पूर्ण समाधि प्राप्त व्यक्ति सृष्टि के सभी रहस्यों को जान लेता है. सभी तत्त्वों पर उसका अधिकार हो जाता है. उसका मस्तिष्क 100% क्रियाशील हो जाता है.
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