परमात्मा
का अर्थ है पूर्णता अर्थात जो सब कुछ है और उन सब से अलग है. उस पूर्ण परमात्मा को जाना नहीं जा सकता है. उसकी प्राप्ति असम्भव है.
उसे आज तक कोई प्राप्त नहीं कर सका.
उस
परमात्मा की की शक्ति दो रूपों में प्रकट है. 1- चेतन प्रकृति जो आपका होश है. 2- जड़ प्रकृति
जिसे आप देखते हैं. यही पदार्थ है, यही आपका शरीर है. यही आपकी बेहोशी है. यही
मृत्यु है.
3-
इन दोनों प्रकृतियों का संयोग सृष्टि का, आपका और सबका जीवन है. जिसे आप अनुभव करते
हैं.
4-
परमात्मा आपके होश में, बेहोशी या मृत्यु में और जीवन में सदा एक सा निरपेक्ष अहम्
अर्थात मैं हूँ, मैं हूँ इस प्रकार प्रत्येक कण कण में, प्रत्येक जीवन में और हर अवस्था
में अपना आभास कराता है.
5-
यह अहम् परमात्मा का अहंकार है. यह जो जैसा है यह स्वयं है. यही श्री भगवान् ने भगवद्गीता में समझाया
है. यही वेदांत दर्शन है. यह मनुष्य में मनुष्य, कीड़े में कीड़ा, पशु में पशु , देवता
में देवता, भगवान में भगवान् है. यही स्त्री में स्त्री पुरुष में पुरुष है. इस अहम् को ही शब्द ब्रह्म कहा है. यही ॐ है.
6-
सारा खेल परमात्मा की प्रकृति का है या कहें होश और बेहोशी का है. जिसमे जितना होश वह उतना श्रेष्ठ.
यही होश की मात्रा मनुष्य को श्रेष्ठ मानव , देवता, सिद्ध, ईश्वर बनाती है और बेहोशी की मात्रा उसे निम्न से निम्न
स्तर की और ले जाती है. यही होश और बेहोशी देवत्त्व और असुरत्व (राक्षस वृत्ति )की
और ले जाती है. बेहोशी विनाश और मृत्यु का कारण है और होश जीवन और उन्नति का कारण है.
होश विद्वता देती है और बेहोशी मूर्खता. होश
श्रेष्ठ वैज्ञानिक बनाती है और बेहोशी कुंद बुद्धि. यही बेहोशी जड़ता का कारण
है.
7-
यदि आपने अपने में देवत्त्व अथवा ईशत्व जाग्रत करना है तो आपको अपनी बेहोशी तोड़नी होगी
और होश को बढ़ाना होगा इसे cultivate करना होगा. यही धर्म है.
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