श्वेताश्वतरोपनिषद्
Author of Hindi verse –Prof Basant
पाँचवां अध्याय
ब्रह्मा से भी अति परे
अक्षर गूढ़ अनन्त
विद्याविद्य द्वे हैं निहित
विद्याविद्य का ईश
क्षर तू जान अविद्या को
अक्षर विद्या जान
क्षर अक्षर से भिन्न जो
अति विलक्षण जान.१.
योनी योनी का एक अधिष्ठा
विश्वरूप का है जो कारण
जिसके कारण ज्ञान कपिल को
जिसने देखा जन्म कपिल का.२.
आदि सृष्टि एक देव जो
बहु विधि बांटे जाल
नष्ट करे संहार काल में
पुनः रचे पहले के जैसे
लोकपाल पर शासन करता
परम ईश वह महामहिम है.३.
एक भानु सब ओर प्रकाशित
दायें बायें ऊपर नीचे
वरण्यदेव अस ईश सदा वह
योनी योनी पर शासन करता.४.
कारण सबका परम है
स्वभाव प्रकट रचना विविध
योग सर्वगुण जो करे
एक जगत का ईश.५.
गूढ़ ज्ञान है अति समीप
ब्रह्मा जाने ब्रह्म योनी उस
पुरा देव और ऋषि भी जाने
जान अमृत हो गए सभी वह.६.
सकल गुणों से बंधा हुआ जो
कर्म करे फल के लिये
भोगी भी वह अपने फल का
विविध रूप में प्रकट
तीन गुणों से युक्त जो
अधिपति जो है प्राण
नाना कर्म प्रेरित हुआ
विविध योनी को प्राप्त.७.
अंगुष्ठ सम रवि तुल्य जो
संकल्प अहं से युक्त
बुद्धि आत्म गुण अराग्र सम
जीव दृष्ट है विज्ञ.८.
दसहजारवां अग्र बाल का
एक भाग सम जीव है
पार अद्भुत इतना ही वह है
एक भाग प्रकटे अनन्त.९.
ना स्त्री ना पुरुष है
ना नपुंसक जान
जिस जिस धारे देह को
उस उस सा हो जात.१०.
संकल्प दृष्टि स्पर्श मोह
वृष्टि भोज जलपान
जन्म वृद्धि हो प्राणी की
कर्मगति से रूप
देही जाता लोक विविध में
विविध देह को प्राप्त.११.
निज कर्मों के गुण बंधा
आत्म गुणों स्व साथ
स्थूल सूक्ष्म बहु रूप में
कारण अपर संयोग.१२.
संसार मध्य में व्याप्त जो
आदि अन्त से हीन
सब जग की रचना करे
रूप विविध जग पूर्ण
एक देव को जानकर
सर्व पाश नर मुक्त.१३.
श्रद्धा भक्ति से जानकर
भावाभाव कारणम्
अवलम्ब हीन शिव रूप जो
सोलह सर्ग कारकम्
परम देव को जानकर
काल पाश भय मुक्त.१४.
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