श्वेताश्वतरोपनिषद्
दूसरा अध्याय
लोक जन्म जिस ईश से
मन धी स्थापय तत्त्व
जिन देवों की दिव्य इन्द्रियाँ
सिमटे पार्थिव दृश्य
स्थापित दृढ सभी इन्द्रियाँ
मन दृढ कर निज तेज.१.
लोक जन्म जिस ईश से
मन स्थापित भक्ति
प्राप्त ईश आनन्द को
पूर्ण शक्ति उद्योग.२.
लोक जन्म जिस ईश से
ज्ञान स्वर्ग आकाश
मन इन्द्रिय धी जोड़कर
प्रेरित हम उस ध्यान.३.
ब्राह्मण निज मन जोड़ते
धिय को करते निष्ठ
अग्नि होम जेहि उपजये
कारण सकल विचार
जान वृहत सर्वज्ञ सवि
स्तुति बहु विभु देव.४.
स्वामी ब्रह्म सब और दोउ
बारम्बार नमामि
मम स्तुति विस्तार हो
कीर्ति श्रेष्ठ जस जान
सकल पुत्र उस अमृत के
वास दिव्य श्रुण लोक.५.
मथ कर पता अग्नि को
वायु रोक सब द्वार
आनन्द सोम जँह फैलता
मन तंह होत विशुद्ध .६.
लोक जन्म जेहि देव से
प्राप्त प्रेरणा पूर्व
कर सेवा उस ब्रह्म की
कृपा प्राप्त परब्रह्म
पूर्व कर्म नहिं विघ्न तब
कृपा प्राप्त परब्रह्म.७.
त्रय को उन्नत विज्ञ कर
अचल धार निज देह
इन्द्रियाँ हृदि मेंलीन कर
करे योग स्थाय
नाव चढ़े ॐकार की
भय संसार प्रवाह.८.
विज्ञ युक्त कर चेष्टा
प्राणा प्राण नियम्य
प्राण क्षीण निकास दे
सावधान मन साध
दुष्ट अश्व रथ साधकर
लक्ष प्राप्त दृढ ध्यान.९.
कंकण बालू अग्नि ना
शुचि सम स्थल देख
शब्द आश्रय जल अनुकूल जँह
नेत्र कष्ट नहिं वायु
स्थिर गुहा में बैठकर
कर मन को स्थाय.१०.
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