सात प्रकार के अन्न
परमात्मा ने परा अपरा प्रकृति द्वारा सृष्टि रचना के साथ प्रजापति (जीवात्मा) द्वारा 7 प्रकार के अन्नों का स्वाभाविक रूप से निर्माण किया गया.
१. पशु अन्न
२. मनुष्य हेतु अन्न
३. देव अन्न – देवों को २ अन्न दिए गए.
४. स्वयं हेतु अन्न – स्वयं के लिए ३ अन्न रक्खे .
यह ७ अन्न क्या हैं?
पशु अन्न जो सरलता से उत्पन्न हो जाय और जिस से पशु कीट आदि तृप्त हों.
मनुष्य अन्न जो सभी जीवों को तृप्ति दे. इन दोनों अन्नों में दूध अर्थात रस भरा होता है. अन्न का रस जीव को तृप्ति देता है.
देव अन्न – देवताओं के लिए गंध और ज्योति के रूप में अन्न दिया गया. इसे हुत और प्रहुत कहा. हवन द्वारा गंध देवताओं को प्राप्त होता है. वह अन्न जो अग्नि द्वारा देवताओं को अर्पित किया जाता है. प्रहुत का अर्थ है offered. यह बलि का भाग है अर्थात जो भी आपने अन्न अथवा दूध अर्जित किया है उसका हिस्सा. यह सीधा देवताओं को अर्पित किया जाता है.
इसलिए हिन्दुओं में आज भी देवताओं को फसल आने पर अथवा प्रतिदिन भोजन से पहले बलि का भाग दिया जाता है.
इसके साथ ही गंध और ज्योति देवताओं को अर्पित होती है. यह हुत के अंतर्गत आती है.
स्वयं के लिए ३अन्न रक्खे. यह अन्न हैं १.प्राण २.शब्द अथवा वाणी ३. मन
प्राण इस देह् में व्याप्त आत्मा का प्रमुख अन्न है.
श्री भगवान भगवद्गीता में कहते हैं-
अहं वैश्वानरोभूत्वा देहिनाम प्राणम् आश्रिता.
मैं मनुष्य के शरीर में वैश्वानर हुआ प्राणों के आश्रित रहता हूँ.
शब्द अथवा वाणी से ही उसको पुकारते हैं. शब्द अथवा वाणी से परमात्मा तृप्त होते हैं.
मन अर्थात मन बुद्धि चित्त अहँकार ही उसका भोजन हैं.
मन के भक्ष्य होने पर ही आत्मतत्त्व प्रकट होता है.
..........................................................
No comments:
Post a Comment