प्रश्न -आप कहते हैं आत्मा और ज्ञान एक है. क्या आप इसे सिद्ध कर सकते है?
उत्तर - आपके सम्मुख कुछ उदहारण प्रस्तुत हैं आप स्वयं परीक्षण कर लीजिये.
जिस प्रकार एक आत्मा सम्पूर्ण क्षेत्र (शरीर) को जीवन देता है, ज्ञानवान बना देता है क्रियाशील बना देता है।
उसी प्रकार ज्ञान सम्पूर्ण क्षेत्र (शरीर) को जीवन देता है, ज्ञानवान बना देता है क्रियाशील बना देता है।
आत्मतत्व और ज्ञान सत् है, नित्य है और सदा है।
आत्मा की तरह यह ज्ञान सदा नाश रहित है ।
आत्मा की तरह ज्ञान ने सम्पूर्ण सृष्टि को व्याप्त किया है।
सृष्टि में कोई भी स्थान ऐसा नहीं है जहाँ आत्मतत्व अथवा ज्ञान न हो।
इस अविनाशी आत्मा और ज्ञान का नाश करने में कोई भी समर्थ नहीं है।
जीवात्मा अथवा ज्ञान इस देह में आत्मा अथवा विशुद्ध ज्ञान का स्वरूप होने के कारण सदा नित्य है।
इस जीवात्मा अथवा ज्ञान के देह मरते रहते हैं।
जब देह मरता है तो समझा जाता है सब कुछ नष्ट हो गया परन्तु ऐसा नहीं होता है। इसलिए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, जो इसे मारने वाला और मरणधर्मा मानता है, वह दोनों नहीं जानते हैं।
यह आत्मा और ज्ञान दोनों न किसी को मारते हैं, न मरते हैं ।
आत्मा और ज्ञान दोनों अक्रिय अर्थात क्रिया रहित हैं अतः किसी को नहीं मारते ।
आत्मा और ज्ञान दोनों नित्य अविनाशी है.
आत्मा और ज्ञान दोनों किसी भी काल में नहीं मरते हैं।
इस आत्मा और ज्ञान दोनों का न जन्म है न मरण है।
यह आत्मा और ज्ञान दोनों न जन्म लेता है न किसी को जन्म देता है।
आत्मा और ज्ञान दोनों हर समय नित्य रूप से स्थित है, सनातन है ।
आत्मा और ज्ञान दोनों को कोई नहीं मार सकता ।
केवल इसके देह नष्ट होते हैं ।
आत्मा और ज्ञान दोनों को जो पुरुष नित्य, अजन्मा, अव्यय जानता है, उसे बोध हो जाता है.
जीवात्मा और ज्ञान दोनों के शरीर उसके वस्त्र हैं, जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है उसी प्रकार यह आत्मा और ज्ञान दोनों पुराने शरीर त्याग कर नया शरीर धारण करता है.
आत्मा और ज्ञान दोनों को शस्त्र नहीं काट सकते हैं.
आत्मा और ज्ञान दोनों को आग में जलाया नहीं जा सकता.
आत्मा और ज्ञान दोनों को जल गीला नहीं कर सकता.
आत्मा और ज्ञान दोनों को वायु सुखा नहीं सकती।
आत्मा और ज्ञान दोनों निर्लेप हैं, नित्य हैं, शाश्वत हैं ।
आत्मा और ज्ञान दोनों को छेदा नहीं जा सकता.
आत्मा और ज्ञान दोनों को जलाया नहीं जा सकता.
आत्मा और ज्ञान दोनों को गीला नहीं किया जा सकता.
आत्मा और ज्ञान दोनों को सुखाया नहीं जा सकता.
यह आत्मा और ज्ञान दोनों अचल हैं, स्थिर हैं, सनातन हैं।
यह आत्मा और ज्ञान दोनों को व्यक्त नहीं किया जा सकता है.
आत्मा और ज्ञान दोनों अनुभूति का विषय हैं।
आत्मा और ज्ञान दोनों बुद्धि से परे हैं। बुद्धि ज्ञान द्वारा संचालित होती है.
आत्मा और ज्ञान विकार रहित हैं.
आत्मा और ज्ञान सदा अक्रिय हैं।
देह में आत्मा और ज्ञान क्रियाशील और मरता जन्म लेता दिखायी देता है
आत्मतत्त्व और ज्ञान एक आश्चर्य है, आश्चर्य इसे इसलिए कहा है कि अक्रिय होते हुए भी यह कुछ करता दिखायी देता है।
आत्मा और ज्ञान दोनों निराकार हैं.
आत्मा और ज्ञान दोनों अजन्मा है, फिर भी जन्म लेते हुए, मरते हुए दिखायी देता है।
आत्मा और ज्ञान दोनों इस देह में अवध्य है.
आत्मा और ज्ञान दोनों को कैसे ही, किसी भी प्रकार, किसी के द्वारा नहीं मारा जा सकता.
आत्मा और ज्ञान दोनों मरण धर्मा प्राणी अथवा पदार्थ नहीं है।
आत्मा ही और ज्ञान दोनों विश्वात्मा है. इस शरीर में आत्मा और ज्ञान दोनों ही अधिदैव और अधियज्ञ दोनों रूप से प्रतिष्ठित हैं। अधिदैव के रूप में वह कर्ता भोक्ता है तो अधियज्ञ के रूप में दृष्टा है ।
आत्मा और ज्ञान दोनों ही सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति का कारण है
आत्म अथवा ज्ञान शक्ति से ही यह सम्पूर्ण जगत चेष्टा करता है श्री ब्रह्मा और श्री हरि विष्णु आत्म शक्ति से ही उत्पत्ति एवं जगत पालन का कार्य करते हैं।
आत्मा और ज्ञान दोनों ही इस सृष्टि का आदि अन्त और मध्य है अर्थात सम्पूर्ण सृष्टि आत्मा अथवा ज्ञान से ही जन्मती है, आत्मा अथवा ज्ञान में ही स्थित रहती है और आत्मा अथवा ज्ञान में ही ही लय हो जाती है। आत्मा और ज्ञान दोनों ही सृष्टि का बीज हैं और सृष्टि का विस्तार भी आत्मा और ज्ञान दोनों ही हैं और यह जगत आत्मा अथवा ज्ञान का ही रूप है।
आत्मा अथवा ज्ञान की शक्ति ही क्रियाशक्ति उत्पन्न करती है। उससे सभी प्रकृति के तत्व बुद्धि मन इन्द्रियाँ अनेकानेक कार्य करने लगती हैं। आत्मा और ज्ञान दोनों सदा अकर्ता अक्रिय हैं।
सृष्टि का मूल तत्व आत्मतत्व अथवा ज्ञान है वही सत् है, वही नित्य है, सदा है। असत् जिसे जड़ या माया कहते हैं, यह वास्तव में है ही नहीं। जब तक पूर्ण ज्ञान नहीं हो जाता तब तक सत् और असत् अलग अलग दिखायी देते हैं। ज्ञान होने पर असत् का लोप हो जाता है वह सृष्टि का मूल तत्व ज्ञान है वही सत् है, वही नित्य है, सदा है। असत् जिसे जड़ या माया कहते हैं, यह वास्तव में है ही नहीं। जब तक पूर्ण ज्ञान नहीं हो जाता तब तक सत् और असत् अलग अलग दिखायी देते हैं। ज्ञान होने पर असत् का लोप हो जाता है वह ब्रह्म में तिरोहित हो जाता है। उस समय न दृष्टा रहता है न दृश्य। केवल आत्मतत्व जो नित्य है, सत्य है, सदा है, वही रहता है।
आत्मा परम बोध है.
आत्मा महा बुद्धि है.
साधक जब ब्रह्म में तिरोहित हो जाता है। उस समय न दृष्टा रहता है न दृश्य। केवल ज्ञान जो नित्य है, सत्य है, सदा है, वही रहता है।
ज्ञान को प्राप्त होना ही परम बोध है.
ज्ञान महा बुद्धि है.
आत्मा अथवा ज्ञान ही ईश्वर है, वही ब्रह्म, परब्रह्म है परम बोध है, अस्मिता है.
सृष्टि का मूल तत्व आत्मतत्व अथवा ज्ञान दोनों एक हैं.
मैं कौन हूं इसका खोज करने के दौरान एक समय आता है जब उसे ज्ञात होता है कि वह चेतन है चैतन्य का अंश है,शरीर इंद्रियां अंतःकरण नहीं है अब वह नाम रूप का संसार देखता है तो दृश्य के पृष्ठभूमि में अदृश्य चैतन्य ब्रह्म को देखता है। इस क्षण ज्ञाता ज्ञेय ज्ञान एक हो जाएंगे। दर्शन दृश्य दर्शक एकाकार हो जाएंगे। दृष्टा दृश्य दर्शन एक ही हैं।
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