अर्चि मार्ग
ब्रह्मसूत्र बताता है-
अर्चिरादिना तत्प्रथिते .४.३.१.
वेदान्त, ब्रह्मसूत्र भगवद्गीता आदि में अर्चि मार्ग का वर्णन हुआ है. इस
अर्चि मार्ग को लेकर ज्यादातर भाष्यकार भ्रमित हैं और इस कारण अवैज्ञानिक अतार्किक
बातें लिख डाली हैं. अर्चि का अर्थ होता है ज्योति, अग्नि अथवा सूर्य किरण. वेद वेदान्त आदि में प्रकाश शब्द
का प्रयोग ज्ञान के लिए किया गया है
तमसो मा ज्योतिर्गमयः
अज्ञान से ज्ञान की और ले जा.
अज्ञान तिमिरान्धस्यः
अज्ञान रूपी अँधेरे से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाने की प्रार्थना.
बात हो रही थी अर्चि मार्ग की तो सीधी बात है अर्चि मार्ग का अर्थ है प्रकाश अर्थात
ज्ञान का रास्ता और इसके विपरीत है
अंधकार अर्थात अज्ञान का रास्ता. मुक्त आत्मा के लिए ज्ञान का रास्ता है और बद्ध आत्मा के लिए अज्ञान का
रास्ता है. इसे उत्तरायण- प्रकाश- ज्ञान और दक्षिणायन –अंधकार- अज्ञान का रास्ता कहा है. यह देवयान अर्थात
ज्ञान मार्ग और पितृयान अर्थात मोह्बंधन–अज्ञान मार्ग के नाम से भी जाना जाता है. वेदान्त कहता है जो ब्रह्म विद्या के रहस्य
को जानते हैं, श्रद्धा पूर्वक सत्य की उपासना करते हैं वह अर्चि को प्राप्त होते
हैं.
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