Monday, June 24, 2013

तेरी गीता मेरी गीता - जीवात्मा का क्या स्वरुप है?- 87- बसंत

प्रश्न- जीवात्मा का क्या स्वरुप है?
उत्तर- जीवात्मा जब जहाँ होता है वैसा स्वरुप धारण कर लेता है.

प्रश्न- कृपया इसे स्पष्ट करें.
उत्तर - यह कुत्ते में है तो कुत्ता, तितली में है तो तितली, बिल्ली में है तो बिल्ली, मोहन नाम के आदमी में है तो मोहन, सविता नाम की स्त्री में  है तो सविता, बच्चे में है तो बच्चा, बूड़े में है तो बूड़ा. यही नहीं यह पेड़ में है तो पेड़, पत्थर में है तो पत्थर, मिट्टी में है तो मिट्टी के कण  का आकार ले लेता है. इसी प्रकार सूर्य में यह सूर्य है तो पृथ्वी में पृथ्वी के आकर का है, वायु में यह वायु हो जाता है तो आकाश में आकाश. यह जब जिस पदार्थ की कल्पना करता है तत्क्षण उस स्वरुप को धारण कर लेता है. इसका कोई आकार नहीं है यह सूक्ष्म से भी सूक्ष्म और विराट से भी अधिक विराट है. यह स्वयं ब्रह्म है. 

प्रश्न- एक व्यक्ति मोहन है तो यह मोहन है पर यदि वह कल्पना करे तो वह सविता कैसे हो सकता है?
उत्तर- जितनी देर मोहन अपने अस्तित्व प्रतीति को सवितामय करेगा वह उतनी देर सविता हो जाएगा. जैसे एक  व्यक्ति पुत्री के सामने पिता, माता के सामने पुत्र और पत्नी के सामने पति हो जाता है.शरीर  नहीं बदला पर जीव स्वरुप बदल गया. शरीर की भावना, क्रिया, सोच सब बदल गयी.यह भावना जितने समय स्थिर होगी यह भी वैसा ही होने लगेगा, चूँकि हम अपनी अस्मिता प्रतीति से इतने अटूट रूप से बंधे होते हैं की देह रूपांतरण नहीं हो पाता और यदि अस्मिता प्रतीति नष्ट हो जाय तो यह तत्क्षण दूसरा हो जाता है.
    

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