प्रश्न- आत्म जिज्ञासु शिष्य कैसा होना चाहिए?
उत्तर- 1- जो तीक्ष्ण बुद्धि वाला हो.
2- जो बुद्धिमान हो और जिसकी स्मृति अच्छी हो.
3- जो वेदान्त, भगवद्गीता और अष्टावक्र गीता के वाक्यों के अर्थ पर निरंतर विचार करता हो.
4- जो तर्क वितर्क कर सकता हो. शिष्य और गुरु के बीच तब तक तर्क वितर्क शांत नहीं होने चाहिए जब तक संशय नष्ट होकर प्रतिबोध का धरातल पुष्ट न हो जाय. केवल एक प्रश्न पूछ लिया गुरु जी ने उत्तर दे दिया, तालियाँ बज गयी फिर बगल झाकने लगे, यह आत्मघाती स्वभाव और स्थिति है.
गुरु शिष्य के बीच संशय नष्ट होने तक निरंतर सत्संग, स्वाध्याय, चिंतन, तर्क वितर्क होने अनिवार्य हैं. आत्मज्ञान की अमूल्य निधि उपनिषद, भगवद्गीता और विवेक चूडामणि यही सन्देश देते है.
इसके साथ अथवा इसके पश्चात ही सही साधना हो सकती है, बाकी तो टाइम पास है.
देखादेखी गुरु बनाने वाले शिष्य का कल्याण कठिन है. जब तक संशय नष्ट नहीं होगा तब तक श्रद्धा नहीं होगी और विश्वास सदा डगमगाते रहेगा.
प्रश्न- किस संदेह को नष्ट होना है?
उत्तर- आत्मा और मिथ्यात्मा का भली भाँती विवेक हो जाना है. इसी का विवेचन करना है. इसी से अस्मिता प्रतीति के संशय मिट जाते है.
उत्तर- 1- जो तीक्ष्ण बुद्धि वाला हो.
2- जो बुद्धिमान हो और जिसकी स्मृति अच्छी हो.
3- जो वेदान्त, भगवद्गीता और अष्टावक्र गीता के वाक्यों के अर्थ पर निरंतर विचार करता हो.
4- जो तर्क वितर्क कर सकता हो. शिष्य और गुरु के बीच तब तक तर्क वितर्क शांत नहीं होने चाहिए जब तक संशय नष्ट होकर प्रतिबोध का धरातल पुष्ट न हो जाय. केवल एक प्रश्न पूछ लिया गुरु जी ने उत्तर दे दिया, तालियाँ बज गयी फिर बगल झाकने लगे, यह आत्मघाती स्वभाव और स्थिति है.
गुरु शिष्य के बीच संशय नष्ट होने तक निरंतर सत्संग, स्वाध्याय, चिंतन, तर्क वितर्क होने अनिवार्य हैं. आत्मज्ञान की अमूल्य निधि उपनिषद, भगवद्गीता और विवेक चूडामणि यही सन्देश देते है.
इसके साथ अथवा इसके पश्चात ही सही साधना हो सकती है, बाकी तो टाइम पास है.
देखादेखी गुरु बनाने वाले शिष्य का कल्याण कठिन है. जब तक संशय नष्ट नहीं होगा तब तक श्रद्धा नहीं होगी और विश्वास सदा डगमगाते रहेगा.
प्रश्न- किस संदेह को नष्ट होना है?
उत्तर- आत्मा और मिथ्यात्मा का भली भाँती विवेक हो जाना है. इसी का विवेचन करना है. इसी से अस्मिता प्रतीति के संशय मिट जाते है.
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