दृष्टा द्वारा दृष्टा को देखा जाना इस विषय को समझने के लिए आपको सृष्टि के सत्य का आभास जितना भी शब्दों से प्रकट किया जा सकता है जानना आवश्यक है. सृष्टि में या उससे परे एक चैतन्य पूर्ण तत्त्व है वह चेतन और अचेतन में बदलता रहता है. वह दृष्टा भी है और दृश्य भी है. कोई भी मनुष्य, प्राणी, पदार्थ, वस्तु, कर्ता, क्रिया आदि या तो दृष्टा हो सकता है या दृश्य. यदि आप सत्य जानना चाहते हैं तो आपको इन दोनों में जो कॉमन फैक्टर है उसे समझना होगा. इस कॉमन फैक्टर में स्थित होने से पहले विचार कभी एक नहीं हो सकता. विचार सदा विभाजित रहता है. इसी को मन का धरातल कहते हैं.
यह कॉमन फैक्टर क्या है? सृष्टि का प्रत्येक परमाणु, मनुष्य, प्राणी, पदार्थ, वस्तु, कर्ता, क्रिया में एक कॉमन फैक्टर है वह है अहम्. इसे मैं, "I" कहते हैं. यह कॉमन फैक्टर आपके अहम् का भी अहम् है. आपके मैं का भी मैं है. आपके I का भी I है.
हमारा विषय दृष्टा द्वारा दृष्टा को देखा जाना है. यह तभी हो सकता है जब दृष्टा और दृश्य का भेद समाप्त हो जाय. जब केवल दृष्टा ही रहे. दृश्य भी दृष्टा और दृष्टा भी दृष्टा. आप एक मूर्ती को देख रहे हैं. जब आप मूर्ती से तदाकार हो जाते हैं तो दृष्टा और दृश्य समाप्त हो जाते हैं. आप में और मूर्ती में कोई अंतर नहीं रहता जैसा रामकृष्ण परमहंस और काली माँ की प्रतिमा के बीच अभिन्नता थी. इसी को तर्कानुगत समाधि कहते हैं. दृश्य भी दृष्टा हो जाता है. दृष्टा और दृश्य दोनों दृष्टा अर्थात एक हो जाते हैं.
नींद में इसके विपरीत होता है दृष्टा और दृश्य दोनों दृश्य हो जाते हैं. दोनों अवस्था सत्य की हैं परन्तु नींद में दृष्टा के लोप हो जाने से सत्य बोध नहीं होता. अपनी अनुभूति नहीं होती. दृष्टा जब देखा जाता है और अपने को देखा जाते हुए अनुभव कर आनंदित होता है और वही अनुभव सत्य बोध कहलाता है. यह तभी अनुभूत होता है जब आप दृश्य और दृष्टा के कॉमन फैक्टर में होश में स्थित हो जाते हैं अर्थात दृश्य भी दृष्टा और दृष्टा भी दृष्टा. तभी परम सत अनुभव होता है. सरल शब्दों में जब होश में आप सुसुप्ति जैसी अवस्था क़ो प्राप्त हों तभी दृष्टा देखा जाता है यही स्वरुप अनुभूति है.
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