आत्मा दो नहीं, बहुत नहीं केवल अवस्था अद्वैत अवस्था है निराकारऔर सर्वत्र है.
वह आत्मा भिन्न भिन्न रूपों में दिखाई देती है.
दृष्टा भी वही है दृश्य भी वही है.
चेतन भी वही है जड़ भी वही है.
एक आत्मा भिन्न भिन्न रूपों में प्रतिभासित होती है.
इस प्रतिभासित आत्मा को जीव कहते हैं.
प्रश्न कर्ता -आत्मा एक है इसका क्या प्रमाण?
उत्तर-आप आत्मा को निराकार मानते हैं ?
प्रश्न कर्ता -हाँ
उत्तर- जो भी तत्त्व निराकार होगा वह सर्वत्र और अनंत होगा. आप दो आत्मा कहैं या अनेक आत्मा कहैं, यदि आप उन आत्माओं को निराकार मानते हैं तो वह अनेक नहीं हो सकती हैं. क्योकि हर आत्मा सर्वत्र होगी अनंत होगी. इसलिए सब आपस में मिल जायँगी. इसलिए आत्मा अद्वैत अवस्था है.
प्रश्न-प्रतिभासित आत्मा क्या है
उत्तर- आपका दर्पण में स्वरुप प्रतिभास है. असलियत नहीं. आप अपने चारों और भिन्न भिन्न प्रकार के शीशे रख लें जिन्हें गोलगप्पे कहते हैं अब आप कहीं पतले, कहीं लम्बे, कहीं मोटे, कहीं छोटे आदि रूपों में दिखाई देंगे.
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