प्रश्न- चित्त किसे कहते हैं ?
उत्तर- अभिमानात्मिका, संशयात्मिका और विवेकात्मिका यथार्थ बुद्धि का समूह चित्त है.
प्रश्न- मनुष्य के चित्त की कितनी स्थिति हो सकती हैं?
उत्तर- मनुष्य के चित्त की असंख्य स्थिति हो सकती हैं परन्तु जानने की दृष्टि से पांच अवस्थाओं में विभक्त कर सकते है. इसके बाद चित्त नष्ट हो जाता है.
1-तम प्रधान- इस अवस्था में तमोगुण की प्रधानता होती है. रजोगुण और सतोगुण गौण होते हैं. इस अवस्था में मनुष्य नीद, भ्रम, आलस्य, भय, मोह, ऊँघना, क्लेव्यता(दिमागी नपुंसकता) की स्थिति में रहता है.
2-रज प्रधान- इस अवस्था में रजोगुण की प्रधानता होती है. तमोगुण और सतोगुण गौण होते हैं.इस अवस्था में मनुष्य अज्ञान ज्ञान, अधर्म धर्म, राग वैराग्य, अनेश्वर्य ऐश्वर्य की मिली जुली अवस्था में रहता है.
3-सत्व प्रधान- इस अवस्था में सतोगुण की प्रधानता होती है. तमोगुण और रजोगुण गौण होते हैं. इस अवस्था में मनुष्य ज्ञान, धर्म, वैराग्य, ऐश्वर्य की स्थिति में रहता है.
4-तटस्थ अवस्था- इस अवस्था में सतोगुण की प्रधानता होती है. तमोगुण और रजोगुण मात्र बीज रूप में होते हैं. मनुष्य एकाग्र स्थिति में रहता है इस अवस्था में वस्तु का यथार्थ ज्ञान होता है.
5-स्वरूप स्थिति- गुणों के परिणाम बंद हो जाते हैं. पूर्ण शुद्ध ज्ञान हो जाता है. केवल कर्म संस्कार शेष रह जाते हैं.
6-अव्यक्त - चित्त नष्ट हो जाता है. गुणों और कर्म संस्कार से परे अपने कारण का कारण हो जाता है.
7-अव्यक्त- गुणों और कर्म संस्कार से परे सब जड़ चेतन के कारण का कारण हो जाता है.
उक्त आधार पर प्रत्येक मनुष्य अपना मूल्यांकन कर सकता है.
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