प्रश्न- आप कहते हैं प्रत्येक प्राणी अथवा पदार्थ की प्रकृति उसका स्वभाव है फिर मुक्ति कैसे संभव है?
यह प्रकृति, पुरुष की निस्वार्थ सेवा और भोग के लिए सदा तत्पर रहती है. इसके पुरुष के साथ सम्बन्ध को उस सांसारिक स्त्री के आचरण से समझाया जा सकता है जो अपने पति अथवा प्रेमी को तन मन धन से चाहती है. जो अपने पति अथवा प्रेमी के गुण दोष नहीं देखती. वह अच्छा हो या बुरा उसे अपना ईश्वर अथवा स्वामी मानकर सदा उसकी सेवा और उसके भोग के लिए तत्पर रहती है. सदा उसका कल्याण चाहती है. इसी कारण प्रकृति पुरुष के भोग के लिए भिन्न भिन्न गुण के पदार्थ और साधन नित जुटाती है. वह पुरुष के गुण दोष पर विचार नहीं करती. वह उसके संकल्प और इच्छा के अनुसार पदार्थ और परिस्थिति जुटाती है जैसे प्रेम के लिए प्रेमी, वासना के लिए नारी अथवा नर, शराबी के लियए शराब, जुआरी के लिए जुआ, किसान के लिए खेत और बीज, लोभी के लिए धन, सन्यासी के लिए वैराग्य, योगी के लिए योग, बच्चे के लिए माता, पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति आदि.यह त्रिगुणात्मक प्रकृति ही पंच भूत होते हुए पुरुष के लिए लिंग (सूक्ष्म शरीर ) और देह का पदार्थ बनती है.
इसी प्रकार पुरुष का कल्याण चाहते हुए उसके मोक्ष के लिए उसे दुःख-सुख, कष्ट, हानि-लाभ महसूस कराती है और रोग, शोक, यश, अपयश, जीवन मरण का खेल रचती है. संसार के दुःख निवृत्ति के लिए बार बार इन परिस्थितियों को पैदा करती है जिससे पुरुष खिन्न होकर संसार से वैराग्य को प्राप्त हो और आत्मज्ञान प्राप्त कर सके.
प्रश्न - प्रकृति पुरुष का कल्याण क्यों चाहती है और क्यों उसके भोग के लिए भिन्न भिन्न गुण के पदार्थ और साधन नित जुटाती है?
उत्तर-पूर्ण विशुद्ध ज्ञान की शांत अवस्था को अव्यक्त कहा गया है. इस अव्यक्त अवस्था में शब्द (विचार ) पैदा हुआ . इस शब्द - अस्मिता बोध जो बिना किसी आधार के स्वयं पैदा हुआ था ने अनंत निराकार आकार ग्रहण किया. यह विराट पुरुष कहलाया. अस्मिता बोध के समय उत्पन्न क्रिया शक्ति भिन्न भिन्न ज्ञान की मात्रा के कारण तीन गुणों में बदल गयी. यह तीन गुण सत्व, रज, तम कहलाते है. सम्पूर्ण सृष्टि त्रिगुणात्मक है. किसी भी प्राणी अथवा पदार्थ में ज्ञान सत्व, क्रिया रज, जड़ता अथवा अज्ञान तम जाने जाते हैं.
अव्यक्त अवस्था में शब्द (विचार - अस्मिता बोध) होते ही चेतन्य का जन्म हुआ. विराट चेतन्य के परमाणुओं में बंट जाने से जीव (विराट पुरुष का अंश होने से यह भी पुरुष कहलाता है) सृष्टि हुई और त्रिगुणात्मक प्रकृति के मिलने से भिन्न भिन्न गुण विचार के अनुसार प्राणी और पदार्थ उत्पन्न हुए.
अतः स्पष्ट है कि पुरुष की प्रकृति पुरुष का कल्याण इसलिए चाहती है कि विशुद्ध ज्ञानमय पुरुष की क्रिया शक्ति पुरुष का अनादि और स्वाभाविक उत्पन्न गुण हैं जो सदा पुरुष के लिए ही है.
इसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि ज्ञान अज्ञान एक ही तत्त्व के दो रूप हैं इस कारण प्राणी और पदार्थ में यह एक दूसरे की पूर्ती करते हैं एक दूसरेका साधन बनते है जैसे अज्ञान ज्ञान का ही एक रूप है और अज्ञान ज्ञान के लिए साधन बनता है.
यह प्रकृति, पुरुष की निस्वार्थ सेवा और भोग के लिए सदा तत्पर रहती है. इसके पुरुष के साथ सम्बन्ध को उस सांसारिक स्त्री के आचरण से समझाया जा सकता है जो अपने पति अथवा प्रेमी को तन मन धन से चाहती है. जो अपने पति अथवा प्रेमी के गुण दोष नहीं देखती. वह अच्छा हो या बुरा उसे अपना ईश्वर अथवा स्वामी मानकर सदा उसकी सेवा और उसके भोग के लिए तत्पर रहती है. सदा उसका कल्याण चाहती है. इसी कारण प्रकृति पुरुष के भोग के लिए भिन्न भिन्न गुण के पदार्थ और साधन नित जुटाती है. वह पुरुष के गुण दोष पर विचार नहीं करती. वह उसके संकल्प और इच्छा के अनुसार पदार्थ और परिस्थिति जुटाती है जैसे प्रेम के लिए प्रेमी, वासना के लिए नारी अथवा नर, शराबी के लियए शराब, जुआरी के लिए जुआ, किसान के लिए खेत और बीज, लोभी के लिए धन, सन्यासी के लिए वैराग्य, योगी के लिए योग, बच्चे के लिए माता, पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति आदि.यह त्रिगुणात्मक प्रकृति ही पंच भूत होते हुए पुरुष के लिए लिंग (सूक्ष्म शरीर ) और देह का पदार्थ बनती है.
इसी प्रकार पुरुष का कल्याण चाहते हुए उसके मोक्ष के लिए उसे दुःख-सुख, कष्ट, हानि-लाभ महसूस कराती है और रोग, शोक, यश, अपयश, जीवन मरण का खेल रचती है. संसार के दुःख निवृत्ति के लिए बार बार इन परिस्थितियों को पैदा करती है जिससे पुरुष खिन्न होकर संसार से वैराग्य को प्राप्त हो और आत्मज्ञान प्राप्त कर सके.
प्रश्न - प्रकृति पुरुष का कल्याण क्यों चाहती है और क्यों उसके भोग के लिए भिन्न भिन्न गुण के पदार्थ और साधन नित जुटाती है?
उत्तर-पूर्ण विशुद्ध ज्ञान की शांत अवस्था को अव्यक्त कहा गया है. इस अव्यक्त अवस्था में शब्द (विचार ) पैदा हुआ . इस शब्द - अस्मिता बोध जो बिना किसी आधार के स्वयं पैदा हुआ था ने अनंत निराकार आकार ग्रहण किया. यह विराट पुरुष कहलाया. अस्मिता बोध के समय उत्पन्न क्रिया शक्ति भिन्न भिन्न ज्ञान की मात्रा के कारण तीन गुणों में बदल गयी. यह तीन गुण सत्व, रज, तम कहलाते है. सम्पूर्ण सृष्टि त्रिगुणात्मक है. किसी भी प्राणी अथवा पदार्थ में ज्ञान सत्व, क्रिया रज, जड़ता अथवा अज्ञान तम जाने जाते हैं.
अव्यक्त अवस्था में शब्द (विचार - अस्मिता बोध) होते ही चेतन्य का जन्म हुआ. विराट चेतन्य के परमाणुओं में बंट जाने से जीव (विराट पुरुष का अंश होने से यह भी पुरुष कहलाता है) सृष्टि हुई और त्रिगुणात्मक प्रकृति के मिलने से भिन्न भिन्न गुण विचार के अनुसार प्राणी और पदार्थ उत्पन्न हुए.
अतः स्पष्ट है कि पुरुष की प्रकृति पुरुष का कल्याण इसलिए चाहती है कि विशुद्ध ज्ञानमय पुरुष की क्रिया शक्ति पुरुष का अनादि और स्वाभाविक उत्पन्न गुण हैं जो सदा पुरुष के लिए ही है.
इसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि ज्ञान अज्ञान एक ही तत्त्व के दो रूप हैं इस कारण प्राणी और पदार्थ में यह एक दूसरे की पूर्ती करते हैं एक दूसरेका साधन बनते है जैसे अज्ञान ज्ञान का ही एक रूप है और अज्ञान ज्ञान के लिए साधन बनता है.
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