प्रश्न - आप किस आधार पर ब्रह्माजी को पूर्ण ज्ञानमय पुरुष परमात्मा का 6.25 % कहते हैं.
उत्तर -श्रीमद भगवद्गीता का अध्याय दस का अंतिम श्लोक देखें. अपनी विभूतियों को बताते हुए श्री भगवान् कहते है-
अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन ।
विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत् ।42-10।
है अर्जुन मेरी विभूतियों का अन्त नहीं है, मुझ अव्यक्त परमात्मा के एक अंश ने सम्पूर्ण जगत को धारण किया है। विश्व के कण कण में मैं आत्म रूप में स्थित हूँ, सभी विभूति मेरा ही विस्तार हैं। चर अचर में मैं ही व्याप्त हूँ। सबका कारण भी मैं ही परमात्मा हूँ।।42-10।
यहाँ एकांशेन शब्द विशेष महत्व का है.
एकांशेन स्थितो जगत्
मेरे एक अंश ने सम्पूर्ण जगत को धारण किया है। परम पूर्ण विशुद्ध ज्ञानमय परमात्मा को 16 कलाओं का मान गया है और उसके एक अंश ने सम्पूर्ण जगत अर्थात सृष्टि को को धारण किया है। 16 का एक अंश 6.25 % होता है.
अब इसी सन्दर्भ में श्रीमद भगवद्गीता का आठवाँ अध्याय देखें. यहाँ श्री भगवान् कहते है-
अव्यक्ताद्व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे ।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके ।18-8।
भूतग्रामः स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते ।
रात्र्यागमेऽवशः पार्थ प्रभवत्यहरागमे ।19-8।
ब्रह्मा जी के दिन के प्रारम्भ होते ही अव्यक्त अर्थात निराकार सूत्रात्मा से चराचर भूत गण उत्पन्न होते हैं और जब रात्रि होती है तब उसी अव्यक्त सूत्रात्मा में सभी भूत लीन हो जाते हैं, पुनः माया (प्रकृति) के वश हुए रात्रि में प्रवेश तथा दिन के आगमन पर पुनः उत्पन्न होते हैं अर्थात परमात्मा की जीव शक्ति ही जन्म और लय का कारण है।
परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः ।
यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ।20-8।
परन्तु जो उस अव्यक्त जीवात्मा से भी अव्यक्त परब्रह्म परमात्मा है, वह समस्त भूतों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता अर्थात सभी जीवात्मा सहित ब्रह्मा जी भी उसी अव्यक्त परमात्मा में समा जाते हैं।
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