प्रश्न-ज्ञान क्या है
उत्तर-जिससे सत्य को बोध हो. जिससे यथार्थ (वास्तविकता) दिखाई दे.
प्रश्न- अज्ञान क्या है
उत्तर-जिससे अवास्तविकता सत्य भासित हो.
अज्ञान का अर्थ मूर्खता नहीं होता. अ + ज्ञान जो ज्ञान नहीं है. जो सत्य नहीं है. जिसकी सत्ता शास्वत नहीं है.
प्रश्न-हम अज्ञानी क्यों हैं.
उत्तर-क्योकि हमारा जन्म अज्ञानं के गर्भ से होता है. जड़ता से होता है. जड़ में प्रस्फुरण जीवन है.
प्रश्न- मनुष्य के अंदर अविद्या (अज्ञान ) की शक्तियां कौन कौन सी है.
उत्तर- मन, बुद्धि, अहंकार, और पांच भूत आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी.
प्रश्न - मन, बुद्धि, अहंकार और पांच भूत आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी से बना देह जड़ है. इसमें चैतन्यता कहाँ से आयी.
उत्तर- परा प्रकृति जो चैतन्य है जिसे जीव कहते हैं इस जड़ त्रिगुणात्मक प्रकृति के साथ सदा संयुक्त रहता है. उसी के कारण इस जड़ प्रकृति में चेतना दिखाई देती है.
यहाँ यह जानना भी आवश्यक है कि मन, बुद्धि, अहंकार और पांच भूत आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी त्रिगुणात्मक प्रकृति के सूक्ष्म और स्थूल अंग है. त्रिगुणात्मक प्रकृति की तमोगुणी अज्ञान शक्ति मनुष्य या किसी भी जीव में एक पर्दा दाल देती है जिससे वह अपना स्वरुप भूल जाता है. इसी प्रकार रजोगुणी शक्ति उसे अधिक से अधिक जड़ता में रस प्रदान करती है. यह एक विक्षेप शक्ति उसे सदा विक्षिप्त रखती है. इन दोनों का नाश अस्त्तिव बोध होने पर ही होता है. जब तक मनुष्य को जन्म जन्मान्तरों की याद नहीं आती तब तक अज्ञान नष्ट नहीं होता .
उत्तर-जिससे सत्य को बोध हो. जिससे यथार्थ (वास्तविकता) दिखाई दे.
प्रश्न- अज्ञान क्या है
उत्तर-जिससे अवास्तविकता सत्य भासित हो.
अज्ञान का अर्थ मूर्खता नहीं होता. अ + ज्ञान जो ज्ञान नहीं है. जो सत्य नहीं है. जिसकी सत्ता शास्वत नहीं है.
प्रश्न-हम अज्ञानी क्यों हैं.
उत्तर-क्योकि हमारा जन्म अज्ञानं के गर्भ से होता है. जड़ता से होता है. जड़ में प्रस्फुरण जीवन है.
प्रश्न- मनुष्य के अंदर अविद्या (अज्ञान ) की शक्तियां कौन कौन सी है.
उत्तर- मन, बुद्धि, अहंकार, और पांच भूत आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी.
प्रश्न - मन, बुद्धि, अहंकार और पांच भूत आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी से बना देह जड़ है. इसमें चैतन्यता कहाँ से आयी.
उत्तर- परा प्रकृति जो चैतन्य है जिसे जीव कहते हैं इस जड़ त्रिगुणात्मक प्रकृति के साथ सदा संयुक्त रहता है. उसी के कारण इस जड़ प्रकृति में चेतना दिखाई देती है.
यहाँ यह जानना भी आवश्यक है कि मन, बुद्धि, अहंकार और पांच भूत आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी त्रिगुणात्मक प्रकृति के सूक्ष्म और स्थूल अंग है. त्रिगुणात्मक प्रकृति की तमोगुणी अज्ञान शक्ति मनुष्य या किसी भी जीव में एक पर्दा दाल देती है जिससे वह अपना स्वरुप भूल जाता है. इसी प्रकार रजोगुणी शक्ति उसे अधिक से अधिक जड़ता में रस प्रदान करती है. यह एक विक्षेप शक्ति उसे सदा विक्षिप्त रखती है. इन दोनों का नाश अस्त्तिव बोध होने पर ही होता है. जब तक मनुष्य को जन्म जन्मान्तरों की याद नहीं आती तब तक अज्ञान नष्ट नहीं होता .
No comments:
Post a Comment