प्रश्न-क्या ध्यान का लक्ष आनंद या शांति को उपलब्ध होना है.
उत्तर- ध्यान द्वारा यदि तुम्हारा लक्ष आनंद को उपलब्ध होना है तो तुम मूर्खता कर रहे हो. तुम तो रोज नींद में आनंद और शांति को उपलब्ध होते है. क्या उससे कुछ उपलब्ध हुआ? पहले समझो. जीव में आनंद तीन प्रकार का होता है.
१-होश का आनंद
२-बेहोशी का आनंद
३-कम होश और बेहोशी का आनंद
बेहोशी का आनंद तुम नींद में, जड़ समाधी में और बेहोशी में अनुभव करते हो.
कम होश और बेहोशी का आनंद - यह आंनद आता और जाता रहता है. मनुष्य और प्रत्येक जीव इस आंनद को प्रति दिन स्वप्न और जागृति में क्षणिक रूप से अनुभव करते हैं.
पहले यह समझें की आनंद क्यों होता है.
आंनद चित्त या मस्तिष्क की तमोगुणी अवस्था है. यह किसी भी तरह अधिक सघन होने पर जीव को आंनद देती है. तमस जितना अधिक गहराता है जीव उतना आनंदित होता है.
आप किसी एक इंद्री के विषय में जब केंद्रित होते हैं तो मस्तिष्क उसमें मगन होने लगता है और संकल्प विकल्प कम हो जाते हैं. इसलिए आप आंनद अनुभव करते हैं. आप मन पसंद कोई पुस्तक पड़ते हैं और उसमें डूबने लगते हैं. आप पुस्तक में डूबते डूबते नींद में चले जाते है. इसी प्रकार कोई मन पसंद गाना, भजन सुनते हुए, खेलते हुए, सेक्स आदि अवस्थाओं में आप होश बेहोशी मिश्रित आंनद अनुभव करते हैं और बार बार ऐसा प्रयास अलग अलग तरीकों से करते हैं क्योंकि एक क्रिया से आप कुछ समय बाद ऊब जाते हैं. फिर आनंद को कुछ अन्य तरीके से ढूँढ़ते हैं
ध्यान में भी यही होता है. जब आप किसी भी विधि से ध्यान करते हैं तो ध्यान के गहराने पर आप आंनद में मग्न होने लगते हैं और इसको उपलब्धि मान बैठते हैं. सारा जीवन निष्फल हो जाता है.
प्रश्न - फिर ध्यान का क्या प्रयोजन है.
उत्तर- ध्यान का प्रयोजन है होश में आना, न कि आनंद में खोना. होश में आने पर ही यथार्थ सत्य को जाना जाता है.
प्रश्न-ध्यान में करना क्या चाहिए?
उत्तर- ध्यान में जब और जैसे आनंद आना , एक रस आना शरू होता है आप तत्काल सावधान हो जाएँ. आनद आपको बेहोशी की ओर, शान्ति की ओर, अज्ञान की ओर, नींद की ओर ले जाता है. आपको अपना ध्यान होश पूर्वक आनंद को अनुभव करते हुए अपने में स्थित करना है.
आनद एक पड़ाव है जो अवश्य आएगा. इस आनंद के साथ आप मगन होकर बेहोशी की ओर चल दिए तो सब बेकार हो गया. हाँ यदि आप ने अपना होश नहीं खोया और आप आंनद अनभूत करते हुए अपने में स्थित रहने में सफल रहे, आनंद द्वारा बहाये नहीं गए तो अमृत का द्वार आपके लिए खुल जाएगा.
स्पष्ट है आपको अपने यथार्थ की अनुभूति होनी है, बोध होना है, बुद्धि सत्य को जानने वाली होनी है. तब आनंद और शान्ति आपके पीछे पीछे दौड़ी चली आयेंगी. यह आनंद शाश्वत होगा . यह शान्ति शाश्वत होगी.
प्रश्न-पहले आंनद और दूसर आंनद में क्या फर्क है.
उत्तर-पहला आनंद तमोगुण से उत्त्पन्न होता है और बोध की बाद आनंद सत् से उत्त्पन्न होता है इसलिए सदा रहता है. यही पूर्ण होश का आंनद है.
प्रश्न- कम होश और अधिक बेहोशी से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर- आप का मस्तिष्क केवल 5% क्रिया शील है और 95% अवचेतन है. यह 5%आपका होश है और 95% हिस्सा बेहोश है. यदि कोई मनुष्य 15% भी अपने मस्तिष्क को क्रियाशील बना ले या कहें 15% होश में आ जाए तो एक अद्धभुत क्रान्ति घटित हो जायेगी. वह दिव्य हो जाएगा. उसमें ईशत्व आ जाएगा. ध्यान का यही प्रयोजन है. परन्तु आपको होश पूर्वक ध्यान करना होगा और बेहोशी से बचना होगा.
उत्तर- ध्यान द्वारा यदि तुम्हारा लक्ष आनंद को उपलब्ध होना है तो तुम मूर्खता कर रहे हो. तुम तो रोज नींद में आनंद और शांति को उपलब्ध होते है. क्या उससे कुछ उपलब्ध हुआ? पहले समझो. जीव में आनंद तीन प्रकार का होता है.
१-होश का आनंद
२-बेहोशी का आनंद
३-कम होश और बेहोशी का आनंद
बेहोशी का आनंद तुम नींद में, जड़ समाधी में और बेहोशी में अनुभव करते हो.
कम होश और बेहोशी का आनंद - यह आंनद आता और जाता रहता है. मनुष्य और प्रत्येक जीव इस आंनद को प्रति दिन स्वप्न और जागृति में क्षणिक रूप से अनुभव करते हैं.
पहले यह समझें की आनंद क्यों होता है.
आंनद चित्त या मस्तिष्क की तमोगुणी अवस्था है. यह किसी भी तरह अधिक सघन होने पर जीव को आंनद देती है. तमस जितना अधिक गहराता है जीव उतना आनंदित होता है.
आप किसी एक इंद्री के विषय में जब केंद्रित होते हैं तो मस्तिष्क उसमें मगन होने लगता है और संकल्प विकल्प कम हो जाते हैं. इसलिए आप आंनद अनुभव करते हैं. आप मन पसंद कोई पुस्तक पड़ते हैं और उसमें डूबने लगते हैं. आप पुस्तक में डूबते डूबते नींद में चले जाते है. इसी प्रकार कोई मन पसंद गाना, भजन सुनते हुए, खेलते हुए, सेक्स आदि अवस्थाओं में आप होश बेहोशी मिश्रित आंनद अनुभव करते हैं और बार बार ऐसा प्रयास अलग अलग तरीकों से करते हैं क्योंकि एक क्रिया से आप कुछ समय बाद ऊब जाते हैं. फिर आनंद को कुछ अन्य तरीके से ढूँढ़ते हैं
ध्यान में भी यही होता है. जब आप किसी भी विधि से ध्यान करते हैं तो ध्यान के गहराने पर आप आंनद में मग्न होने लगते हैं और इसको उपलब्धि मान बैठते हैं. सारा जीवन निष्फल हो जाता है.
प्रश्न - फिर ध्यान का क्या प्रयोजन है.
उत्तर- ध्यान का प्रयोजन है होश में आना, न कि आनंद में खोना. होश में आने पर ही यथार्थ सत्य को जाना जाता है.
प्रश्न-ध्यान में करना क्या चाहिए?
उत्तर- ध्यान में जब और जैसे आनंद आना , एक रस आना शरू होता है आप तत्काल सावधान हो जाएँ. आनद आपको बेहोशी की ओर, शान्ति की ओर, अज्ञान की ओर, नींद की ओर ले जाता है. आपको अपना ध्यान होश पूर्वक आनंद को अनुभव करते हुए अपने में स्थित करना है.
आनद एक पड़ाव है जो अवश्य आएगा. इस आनंद के साथ आप मगन होकर बेहोशी की ओर चल दिए तो सब बेकार हो गया. हाँ यदि आप ने अपना होश नहीं खोया और आप आंनद अनभूत करते हुए अपने में स्थित रहने में सफल रहे, आनंद द्वारा बहाये नहीं गए तो अमृत का द्वार आपके लिए खुल जाएगा.
स्पष्ट है आपको अपने यथार्थ की अनुभूति होनी है, बोध होना है, बुद्धि सत्य को जानने वाली होनी है. तब आनंद और शान्ति आपके पीछे पीछे दौड़ी चली आयेंगी. यह आनंद शाश्वत होगा . यह शान्ति शाश्वत होगी.
प्रश्न-पहले आंनद और दूसर आंनद में क्या फर्क है.
उत्तर-पहला आनंद तमोगुण से उत्त्पन्न होता है और बोध की बाद आनंद सत् से उत्त्पन्न होता है इसलिए सदा रहता है. यही पूर्ण होश का आंनद है.
प्रश्न- कम होश और अधिक बेहोशी से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर- आप का मस्तिष्क केवल 5% क्रिया शील है और 95% अवचेतन है. यह 5%आपका होश है और 95% हिस्सा बेहोश है. यदि कोई मनुष्य 15% भी अपने मस्तिष्क को क्रियाशील बना ले या कहें 15% होश में आ जाए तो एक अद्धभुत क्रान्ति घटित हो जायेगी. वह दिव्य हो जाएगा. उसमें ईशत्व आ जाएगा. ध्यान का यही प्रयोजन है. परन्तु आपको होश पूर्वक ध्यान करना होगा और बेहोशी से बचना होगा.
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