प्रश्न - बुद्धि के सूक्ष्म होने पर क्या होगा?
उत्तर- बुद्धि जितनी सूक्षम होती जायेगी उसी मात्रा में प्रकृति नष्ट होती जायेगी और बुद्धि के पूर्ण रूप से से निश्चयात्मक होने, दूसरे शब्दों में एक होने पर तुम्हारा काम समाप्त हो जाता है.
अब प्रकृति के स्थिर होते ही परमात्मा जो पूर्ण शुद्ध ज्ञान हैं वह तुम्हारे अन्दर अवतरित होते हैं.इसे परमात्मा का अवतरण कहा गया है. यही पूर्ण बोध है.
प्रकृति स्थिर होते ही स्वाभाविक समाधि लग जाती है. यहाँ यह बात भी महत्वपूर्ण है कि जितनी मात्रा में प्रकृति स्थिर होती जाती है उतनी मात्रा में साधक बोध को प्राप्त होता जाता है. पूर्णावस्था कोई विरला ही प्राप्त करता है.
प्रश्न - पूर्णावस्था प्राप्त कर क्या उपलब्धि होती है.
उत्तर- पूर्णावस्था प्राप्त कर मनुष्य जन्म और मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेता है. वह अपनी इच्छा से जन्म लेता है और अपनी इच्छा से शरीर छोड़ता है.वह जब तक चाहे अपने धारण किये शरीर में रह सकता है. उसे रोग, शोक, बुढ़ापा व्याप्त नहीं होता. उसकी मर्जी से उसकी आयु वृद्धि होती है.सभी जड़ चेतन पर उसका अधिकार हो जाता है. सम्पूर्ण दिव्यता उसके अन्दर आ जाती हैं. वह जड़ को चेतन और चेतन को जड़ कर सकता है. वह सम्पूर्ण सृष्टि का नियंता हो जाता है.वह देखता है की सम्पूर्ण सृष्टि उससे ही निकल रही है और उसी में समा रही है.सब ज्ञान विज्ञान उसमें समाहित होते हैं. वह अणु से भी सूक्ष्म और ब्रह्माण्ड से भी विराट हो सकता है. श्री राम और श्री कृष्ण ऐसे ही अवतारी पुरुष थे. आज एक रहस्य यह भी जान लें की जो मनुष्य ज्ञान यात्रा के विकास की 50% यात्रा पूरी कर लेता है वह भी अनेक दिव्यताओं का स्वामी हो जाता है पर उसकी सीमा उसके दिव्य ज्ञान के आधार पर निश्चित हैं.
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