प्रश्न - क्या पूर्ण ज्ञान बिना किसी प्रयास के स्वाभाविक विकास क्रम में प्राप्त किया जा सकता है.
उत्तर- हाँ पूर्ण ज्ञान बिना किसी प्रयास के स्वाभाविक विकास क्रम में प्राप्त किया जा सकता है परन्तु इसमें उतना ही समय लग जाएगा जितनी ब्रह्मांडीय सृष्टि की आयु होगी. इसे स्पष्ट समझने के लिए सृष्टि की संरचना को समझना होगा. सम्पूर्ण सृष्टि जड़ और चेतन से बनी है.दोनों तत्त्व एक दूसरे के विरोधी हैं और प्रत्येक परमाणु को अपनी अपनी ओर खींचते हैं. जड़ परमाणु चेतन की ओर खिंचता है और चेतन जड़ की ओर खिंचता है. इसमें एक बात महत्वपूर्ण और जानने योग्य है कि जड़ और चेतन का मूल श्रोत ज्ञान है जो चैतन्य है. इसलिए अंत में हम सबको चैतन्य ही होना है. चूंकि ज्ञान मूल है इसलिए अपने को बराबर जड़ चेतन में बाँट कर भी वह परिणाम में वह सदा शुद्ध व पूर्ण रूप से बना रहता है. इस सूत्र के अनुसार जड़ को चेतन्य में विलीन होना ही है.यही आदि अवस्था है.
इसलिए सृष्टि के अंत का इन्तजार न करके अपनी बुद्धि के प्रभाव को समझते हुए अभ्यास और वैराग्य से बुद्धि को सूक्ष्म कर पूर्ण ज्ञान जिसे बोध कहा जाता है प्राप्त करना चाहिए.
प्रश्न-हमारा मन इतना चंचल है कि यह हमें सदा भटकाता है, भ्रम में डाले रखता है, क्या इस मन को रोका जा सकता है.
उत्तर- हाँ मन को रोका जा सकता है परन्तु इसका 100 % अवरोध पूर्ण ज्ञान होने पर ही होता है. इसलिए इसके भटकने से अथवा संशयात्मक होने से घबडाए नहीं. मन को परमात्मा ने भटकने और भटकाने के लिए ही बनाया है. आप अपना काम कीजिये इसे भटकने दीजिये. जो कोई आपसे कहता हे कि उसने परमात्मा के साक्षात्कार से पहले मन पर पूर्ण विजय पाली है वह मिथ्याचारी है. क्योंकि वासना इतनी प्रबल है वह हठ पूर्वक रोकी गयी इन्द्रियों और मन को एक झटके मैं बहा ले जाती है.
प्रश्न- हमारा काम क्या है.
उत्तर -अपनी बुद्धि को सूक्ष्म करना .इसके लिए साक्षी भाव से अपने कार्यों को देखना,परमात्मा का चिंतन करना,श्वास में निरंतर ॐ को प्रवाहित करना आदि जो शास्त्रानुकूल हो और तत्व ज्ञानियों द्वारा निर्देशित हो.
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