प्रश्न- कृपया एक सूत्र बताएं जिससे ज्ञात हो सके हमारी अथवा किसी अन्य की आध्यात्मिक स्थिति क्या है?
उत्तर- जिस व्यक्ति को सुख और दुःख जितना व्यापे वह उतना संसारी, जिसको जितना कम व्यापे वह उतना आध्यात्मिक. जिसे सुख और दुःख बिलकुल न व्यापे वह आत्मज्ञानी है, बुद्ध पुरुष है..
प्रश्न- न चाहते हुए भी हमारी बुद्धि भिन्न भिन्न विषयों का क्यों चिंतन करती है.
उत्तर - हमारी प्रकृति सत्व, रज और तम से युक्त है इसलिए तीनो प्रकार के पदार्थों की ओर उसका आकर्षण होता है. आत्म के संयोग से प्रकृति क्रियाशील हो जाती है और अपने स्वभाववश भिन्न भिन्न विषयों के प्रति आकर्षित होत्ती है यही बुद्धि का भिन्न भिन्न विषयों में प्रकाशित होना है. .
प्रश्न- आत्मा सर्व शक्तिमान है, अहंकार का जन्म भी आत्मा से होता है फिर अहंकार कैसे प्रभावशाली हो जाता है और आत्म तत्त्व को ढक देता है?
उत्तर- आत्मा सूर्य की तरह है. सूर्य के कारण बादल उत्पन्न होते हैं और वह इतने घने हो जाते हैं की सूर्य बिलकुल नहीं दिखाई देता है यहाँ तक कि सूर्य का आभास करना भी मुश्किल हो जाता है उसी प्रकार आत्मा से उत्पन्न अहंकार हमारी आत्मा को इस प्रकार पूर्ण रूप से ढक देता है और हमें यह भी आभास नहीं रहता कि हमारी वास्तविकता अहंकार के कारण छिपी हुई है. हम तो अपने अहंकार को ही अपना सर्वस्व मानते हैं. हम सदा उसी में रहते हैं, उसी में खाते हैं उसी में सोते हैं, उसी में जागते हैं.
प्रश्न- आत्मा के होते हुए सुख दुःख क्यों होता है?
उत्तर- आप ने तो अस्मिता प्रतीति से अपनी आत्मा को ढक लिया है. आप जीवन या विनोद या सदानंद होते हैं. आप किसी के पुत्र, किसी के पति, किसी पद में आसीन आदि आदि कई अस्मिताओं में विभक्त रहते हैं. उसी को अपना अस्तित्व मानते हैं. यह अस्मिता (अहंकार) बंधन ही आपका अज्ञान है. यह अहंकार आवरण रुपी अज्ञान इतना फैल जाता है कि बुद्धि विक्षिप्त हो जाती है, इसी विक्षिप्त बुद्धि से जब आपका अहंकार तुष्ट होता है तो सुख और जब असंतुष्ट होता है तो दुःख होता है.
प्रश्न- सुख दुःख का अंत कैसे होगा ?
उत्तर- आत्म बोध से.
प्रश्न- आत्म बोध कैसे होगा?
उत्तर- आत्मा से आत्मा का बोध होता है. ज्ञान से ही ज्ञान होता है. चैतन्य से ही चैतन्य होता है. आत्मा से ही ब्रह्मलाभ होता है. तेरा बोध तेरे अन्दर है.
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