प्रश्न- कृपया सरल रूप से बतायें की भक्ति क्या है?
उत्तर- अपनी वास्तविकता की खोज करना भक्ति है. इसे अपनी आत्मा की खोज भी कह सकते है. अपने वास्तविक मैं को जानने की आतुरता और प्रयास भक्ति साधना है. पूर्णता की और चलने की साधना भक्ति है. इस भक्ति की अंतिम परिणिति अनन्यता है.
प्रश्न - साधना क्या है?
उत्तर- जिस किसी अनुभव व् कार्य से अपूर्णता दूर हो वह साधना है. हम हर समय कुछ न कुछ अनुभव करते हैं, सीखते हैं यह अनुभव जिस किसी घटना और प्रभाव से हमें प्राप्त होता है वह क्रिया और अनुभूति साधना है.
प्रश्न- ईश्वरी साधना क्या है?
उत्तर- सभी कार्य ईश्वर का अनुभव कराते हैं अतः सभी कार्य साधना हैं.
प्रश्न - क्या बुरे कार्य भी साधना है?
उत्तर- हाँ. बुरे से बुरे कार्य और उसके परिणाम से भी सम्बंधित कर्ता कुछ न कुछ सीखता है. उस कार्य और परिणाम से हम सभी कुछ न कुछ सीखते हैं. विकास का यही सिद्धांत है परन्तु यह श्रेय नहीं है क्योंकि यह कर्ता के चित्त को सदा जलाते रहते है.
प्रश्न- सबसे उपयुक्त साधना क्या है?
उत्तर नित्य प्रति दृष्टा भाव में रहने का प्रयास करो, स्वयं अपने साक्षी हो जाओ. आप जब अपनी चेष्टाओं को देखते हैं तो वह धीमी होने लगती हैं, धीमी होने के साथ वह ठहरने लगती हैं. आप हर समय अपने प्रत्येक कार्य के दृष्टा हो जाते हो और इसकी अंतिम परिणिति है आप अपनी मृत्यु के भी दृष्टा हो जाते हो. जो मृत्यु का दृष्टा हो गया वह अमरत्व को पा लेता है.
प्रश्न- तीर्थ यात्रा और कथा सुनने का क्या लाभ होता है?
उत्तर- तीर्थ यात्रा और कथा सुनने से अनुभव वृद्धि होती है. कथा से अपने मन के अनुकूल श्रृद्धा का विकास होता है.
प्रश्न- गंगा नहाने से क्या होता है?
उत्तर- अनुभव के साथ शरीर को ठण्ड लगती है.
प्रश्न- सदग्रंथ किस प्रकार सहायक होते है?
उत्तर- आपकी श्रृद्धा के अनुसार प्रतिबोध का धरातल विकसित करते हैं.
प्रश्न- माता,पिता. गुरु, मनुष्य, पशु, पक्षी की सेवा से क्या लाभ होता है.
उत्तर- यदि आप बिना किसी अपेक्षा के सेवा करते है तो आप की अपूर्णता कम होने लगती है.
प्रश्न- प्रवचन सुनने से क्या होता है?
उत्तर- आपका मन संतुष्ट अथवा असंतुष्ट होता है.
प्रश्न- मंदिर जाने से क्या होता है?
उत्तर- आपकी अपनी श्रृद्धा के अनुसार अपूर्णता कम होती है.
प्रश्न- देव पूजन, मंत्र जप, कर्मकाण्ड, वैदिक पूजा, अग्नि प्रज्वलित कर द्रव्य यज्ञ का क्या लाभ होता है?
उत्तर- यह आपकी बुद्धि को निर्मल करने में सहायक होते हैं. मनुष्य को पवित्र करते है, अपूर्णता कम होती है.
प्रश्न-संस्कारों का क्या महत्व है?
उत्तर- संस्कार आपको समाज और परिवार से जोड़ते हैं केवल उपनयन और अंतेष्टि संस्कार आपकी अपूर्णता कम करने में सहायक होते हैं.
संक्षेप में जीवन के सभी शुभ अशुभ कार्य अपूर्णता को भरने या बढाने की चेष्टा करते है, इसलिए दृष्टा होक्रर अथवा साक्षी होकर इन शुभ अशुभ कार्य को होने दो.
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