प्रश्न- हमारे कितने शरीर हैं? क्या हमारे माध्यम से परमात्मा अपने का व्यक्त करते हैं?
उत्तर- परमात्मा सृष्टि के जड़ चेतन सभी जीवों में विभिन्न रूपों में अपने को व्यक्त करते हैं. यह शरीर हमारा या उस अव्यक्त परमात्मा का व्यक्त रूप है. इस शरीर माध्यम से ही आत्मा व परमात्मा का कुछ अनुभव होता है अन्यथा वह अव्यक्त है. उसे जाना नहीं जा सकता. शरीर एक आवरण है जो हमने धारण किया है.
हमारे एक साथ अनेक शरीर हैं जो एक साथ एक दूसरे से जुड़े और अलग हैं.
1-मूल प्राकृत शरीर - इस शरीर को नहीं जाना जा सकता है. यह प्रकृति की मूलावस्था है.
2-सतोमय शरीर- इसे बोधमय शरीर भी कह सकते हैं.
3-राजस शरीर -सृष्टा
4-तामस शरीर- आनंदमय
5-त्रिगुणात्मक शरीर (मनोमय और विज्ञानमय)- इस शरीर को सत, रज, तम और शब्द, स्पर्श, रूप, रस एवं गंध के साथ कालान्तर में कर्म अपने गुण, दोष तथा फल के साथ बनाते हैं.
6-स्थूल शरीर - प्राणमय और अन्नमय शरीर - यह शरीर दिखाई देता है. यही जन्म लेता हुआ और मृत्यु को प्राप्त होता है.
सामान्य मनुष्य तामस शरीर, त्रिगुणात्मक शरीर औरस्थूल शरीर (प्राणमय और अन्नमय शरीर) का ही अनुभव करता है. परममात्मा मूल प्राकृत शरीर के साथ सदा रहता है. परमात्मा का ईश्वरीय रूप सतोमय शरीर राजस शरीर और तामस शरीर में से किसी एक शरीर के साथ रहता है.
सामान्य मनुष्य या किसी भी जीव की गति तामस शरीर तक ही होती है, जिसे वह कुछ समय तक गहरी नींद में अनुभव करता है परन्तु अज्ञान के कारण उसे कुछ भी याद नहीं रहता.मृत्यु के बाद भी वह इस तामस शरीर को ही प्राप्त होता है और नींद जैसा अनुभव करता है.
प्रश्न- मृत्यु किस शरीर की होती है.
उत्तर- मृत्यु केवल अन्नमय और प्राणमय जिसे हम स्थूल शरीर कहते हैं की होती है.
प्रश्न-क्या मनुष्य को सतोमय या राजस शरीर प्राप्त नहीं होता है.
उत्तर- सामान्य मनुष्य को सतोमय या राजस शरीर प्राप्त नहीं होता है. उच्चस्तर के योगी अपनी तप से इन शरीरो में स्थित होते हैं उन्हीं को हम सिद्ध या ईश्वर कहते हैं. मृत्यु से पहले आप जिस अवस्था में होते हैं मृत्यु के बाद भी उसी अवस्था को प्राप्त होते हैं. उसी अवस्था को प्राप्त कर अगले जन्म का प्रारम्भ होता है.
उत्तर- परमात्मा सृष्टि के जड़ चेतन सभी जीवों में विभिन्न रूपों में अपने को व्यक्त करते हैं. यह शरीर हमारा या उस अव्यक्त परमात्मा का व्यक्त रूप है. इस शरीर माध्यम से ही आत्मा व परमात्मा का कुछ अनुभव होता है अन्यथा वह अव्यक्त है. उसे जाना नहीं जा सकता. शरीर एक आवरण है जो हमने धारण किया है.
हमारे एक साथ अनेक शरीर हैं जो एक साथ एक दूसरे से जुड़े और अलग हैं.
1-मूल प्राकृत शरीर - इस शरीर को नहीं जाना जा सकता है. यह प्रकृति की मूलावस्था है.
2-सतोमय शरीर- इसे बोधमय शरीर भी कह सकते हैं.
3-राजस शरीर -सृष्टा
4-तामस शरीर- आनंदमय
5-त्रिगुणात्मक शरीर (मनोमय और विज्ञानमय)- इस शरीर को सत, रज, तम और शब्द, स्पर्श, रूप, रस एवं गंध के साथ कालान्तर में कर्म अपने गुण, दोष तथा फल के साथ बनाते हैं.
6-स्थूल शरीर - प्राणमय और अन्नमय शरीर - यह शरीर दिखाई देता है. यही जन्म लेता हुआ और मृत्यु को प्राप्त होता है.
सामान्य मनुष्य तामस शरीर, त्रिगुणात्मक शरीर औरस्थूल शरीर (प्राणमय और अन्नमय शरीर) का ही अनुभव करता है. परममात्मा मूल प्राकृत शरीर के साथ सदा रहता है. परमात्मा का ईश्वरीय रूप सतोमय शरीर राजस शरीर और तामस शरीर में से किसी एक शरीर के साथ रहता है.
सामान्य मनुष्य या किसी भी जीव की गति तामस शरीर तक ही होती है, जिसे वह कुछ समय तक गहरी नींद में अनुभव करता है परन्तु अज्ञान के कारण उसे कुछ भी याद नहीं रहता.मृत्यु के बाद भी वह इस तामस शरीर को ही प्राप्त होता है और नींद जैसा अनुभव करता है.
प्रश्न- मृत्यु किस शरीर की होती है.
उत्तर- मृत्यु केवल अन्नमय और प्राणमय जिसे हम स्थूल शरीर कहते हैं की होती है.
प्रश्न-क्या मनुष्य को सतोमय या राजस शरीर प्राप्त नहीं होता है.
उत्तर- सामान्य मनुष्य को सतोमय या राजस शरीर प्राप्त नहीं होता है. उच्चस्तर के योगी अपनी तप से इन शरीरो में स्थित होते हैं उन्हीं को हम सिद्ध या ईश्वर कहते हैं. मृत्यु से पहले आप जिस अवस्था में होते हैं मृत्यु के बाद भी उसी अवस्था को प्राप्त होते हैं. उसी अवस्था को प्राप्त कर अगले जन्म का प्रारम्भ होता है.
Very enlightening.
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