प्रश्न- मंत्र का जाप किस प्रकार करना चाहिए?
उत्तर- मंत्र का जाप तोते की तरह करना उचित नहीं है. इससे कोई फायदा नहीं होता. मंत्र का जाप उसके भाव को समझते हुए करना चाहिए तभी मंत्र आत्मसात होता है.
प्रश्न-ध्यान में नींद आ जाती है. क्या ध्यान में नींद का आना अच्छा है?
उत्तर- ध्यान में नींद का आना सबसे बड़ी बाधा है. दिमाग के शांत होने पर तमोगुण के प्रभाव से आनंदमय कोश की वृद्धि होने से ज्यादातर साधकों को नींद आ जाती है या वे जड़ समाधि में चले जाते हैं जिसे आजकल एक उपलब्धि माना जाता है. परंतु इससे कुछ भी लाभ नहीं होता. आप जैसे थे वैसे ही रहते हैं. हां नींद की अवस्था में या जड़ समाधि में एक स्वाभाविक शांति जो प्रकृति ने दी है वह आपको उपलब्ध होती है परंतु उसके टूटते ही सब कुछ पहले जैसा ही हो जाता है. ध्यान की उपलब्धि ज्ञान है अर्थात अर्थात अविद्या का नाश, अज्ञान का नाश और आपको अपनी अनुभूति होती है अपने स्वरूप का यथार्थ ज्ञान होता है. इसलिए किसी भी स्थिति में नींद से बचें. सावधान रहें, होश में रहें और अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ होकर प्रयास करते रहें.
प्रश्न -वैज्ञानिक भाषा में बताएं समाधि में क्या उपलब्ध होता है?
उत्तर- समाधि में आपका डॉर्मेंट माइंड खुलने लगता है और खुल जाता है. सामान्यतः मनुष्य का 3 से लेकर 5% तक ही मस्तिष्क क्रियाशील होता है शेख शेष मस्तिष्क डॉर्मेंट होता है. जितना डॉर्मेंट माइंड क्रियाशील होता जाता है आप उतने दिव्य होते जाते हैं और एक सीमा से अधिक डॉर्मेंट माइंड के क्रियाशील होने पर आपको अपने पिछले जन्मों का और इस जीवन के बाद आने वाले जन्मों का ज्ञान हो जाता है. इसी को ही अपना ज्ञान कहा गया है.
प्रश्न-मनुष्य को अपना डॉर्मेंट माइंड खोलने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर- प्रत्येक जिज्ञासु साधक को सर्वप्रथम सावधान होना है. बिना सावधान हुए साधना नहीं हो सकती. सावधानी के लिए जीवन में अनुशासन आवश्यक है. इसके अलावा चिंतन, मनन, निधिध्यासन, ऑब्जरवेशन, कंसंट्रेशन, मेडिटेशन आवश्यक है.यह सब एक दूसरे से जुड़े हैं इनका निरंतर अभ्यास करना है. निरंतर अभ्यास ही वैराग्य प्रदान करता है. अभ्यास करते-करते साधक ध्यान सिद्ध हो जाता है और परिणाम स्वरूप उसे समाधि प्राप्त होती है या कहें उसका डॉर्मेंट माइंड अधिक क्रियाशील हो जाता है और वह परम स्थिति को प्राप्त होता है जिसको जानने के बाद जीवन और मृत्यु की डोर खत्म हो जाती है. वह अपना नियंता हो जाता है. उसके लिए शरीर वस्त्र के समान हो जाता है. वह अपनी इच्छा से शरीर धारण करता है और अपनी इच्छा से शरीर त्यागता है. इसी को बोध, जाग्रति, awakening, enlightenment या आत्मज्ञान कहते हैं.
उत्तर- मंत्र का जाप तोते की तरह करना उचित नहीं है. इससे कोई फायदा नहीं होता. मंत्र का जाप उसके भाव को समझते हुए करना चाहिए तभी मंत्र आत्मसात होता है.
प्रश्न-ध्यान में नींद आ जाती है. क्या ध्यान में नींद का आना अच्छा है?
उत्तर- ध्यान में नींद का आना सबसे बड़ी बाधा है. दिमाग के शांत होने पर तमोगुण के प्रभाव से आनंदमय कोश की वृद्धि होने से ज्यादातर साधकों को नींद आ जाती है या वे जड़ समाधि में चले जाते हैं जिसे आजकल एक उपलब्धि माना जाता है. परंतु इससे कुछ भी लाभ नहीं होता. आप जैसे थे वैसे ही रहते हैं. हां नींद की अवस्था में या जड़ समाधि में एक स्वाभाविक शांति जो प्रकृति ने दी है वह आपको उपलब्ध होती है परंतु उसके टूटते ही सब कुछ पहले जैसा ही हो जाता है. ध्यान की उपलब्धि ज्ञान है अर्थात अर्थात अविद्या का नाश, अज्ञान का नाश और आपको अपनी अनुभूति होती है अपने स्वरूप का यथार्थ ज्ञान होता है. इसलिए किसी भी स्थिति में नींद से बचें. सावधान रहें, होश में रहें और अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ होकर प्रयास करते रहें.
प्रश्न -वैज्ञानिक भाषा में बताएं समाधि में क्या उपलब्ध होता है?
उत्तर- समाधि में आपका डॉर्मेंट माइंड खुलने लगता है और खुल जाता है. सामान्यतः मनुष्य का 3 से लेकर 5% तक ही मस्तिष्क क्रियाशील होता है शेख शेष मस्तिष्क डॉर्मेंट होता है. जितना डॉर्मेंट माइंड क्रियाशील होता जाता है आप उतने दिव्य होते जाते हैं और एक सीमा से अधिक डॉर्मेंट माइंड के क्रियाशील होने पर आपको अपने पिछले जन्मों का और इस जीवन के बाद आने वाले जन्मों का ज्ञान हो जाता है. इसी को ही अपना ज्ञान कहा गया है.
प्रश्न-मनुष्य को अपना डॉर्मेंट माइंड खोलने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर- प्रत्येक जिज्ञासु साधक को सर्वप्रथम सावधान होना है. बिना सावधान हुए साधना नहीं हो सकती. सावधानी के लिए जीवन में अनुशासन आवश्यक है. इसके अलावा चिंतन, मनन, निधिध्यासन, ऑब्जरवेशन, कंसंट्रेशन, मेडिटेशन आवश्यक है.यह सब एक दूसरे से जुड़े हैं इनका निरंतर अभ्यास करना है. निरंतर अभ्यास ही वैराग्य प्रदान करता है. अभ्यास करते-करते साधक ध्यान सिद्ध हो जाता है और परिणाम स्वरूप उसे समाधि प्राप्त होती है या कहें उसका डॉर्मेंट माइंड अधिक क्रियाशील हो जाता है और वह परम स्थिति को प्राप्त होता है जिसको जानने के बाद जीवन और मृत्यु की डोर खत्म हो जाती है. वह अपना नियंता हो जाता है. उसके लिए शरीर वस्त्र के समान हो जाता है. वह अपनी इच्छा से शरीर धारण करता है और अपनी इच्छा से शरीर त्यागता है. इसी को बोध, जाग्रति, awakening, enlightenment या आत्मज्ञान कहते हैं.
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