Friday, May 15, 2020

क्या मन नष्ट हो सकता है ?

प्रश्न- क्या मन नष्ट हो सकता है ?
उत्तर- मन नष्ट नहीं हो सकता. यह कमजोर हो सकता है. बदल सकता है. इसका रूपांतरण हो सकता है. 

प्रश्न -क्या बुद्धि नष्ट हो सकती? 
उत्तर -बुद्धि नष्ट नहीं हो सकती. पहले बुद्धि क्या है उसे समझिए. मन भी बुद्धि का ही एक अंग है बुद्धि के हजारों में अंग हैं बुद्धि अनेक प्रकार की हो सकती है. आपकी जानकारी के लिए  बुद्धि के कुछ प्रकार प्रस्तुत हैं.
1-संशयात्मक बुद्धि-  संशयात्मक बुद्धि मन कहलाती है 
2- अहंकारअभिनात्मक बुद्धि अहंकार कहलाती है.
3-विवेक बुद्धि-  सामान्यतः हम विवेक बुद्धि को ही बुद्धि कहते हैं  
4-प्रज्ञा- जो चिंतन मनन द्वारा सत्य की अनुभूति करती है. पर यहाँ गलती हो सकती है.
5- बोध- जो सत्य को जानती है, पहचानती है, अनुभव करती है. 
6- ऋतंभरा- जो सत्य को स्पष्ट देखती है.

प्रश्न क्या अहंकार नष्ट हो सकता है? 
उत्तर-अहंकार नष्ट नहीं हो सकता उसके स्वरूप में परिवर्तन होता है जीव अहंकार ईश्वरी अहंकार हो सकता है वैकारिक अहंका सात्विक अहंकार से रूपांतरित किया जा सकता है.
आप मन बुद्धि अहंकार की बात छोड़िये आप धूल के एक कण को भी नष्ट नहीं कर सकते. केवल स्वरुप परिवर्तन होता है.

प्रश्न-फिर गहरी नींद में क्या होता है?
उत्तर- मन, बुद्धि,अहंकार अज्ञान में बीज रूप में स्थित हो जाते हैं. पुनः जागने पर पूर्व अवस्था में प्रकट होते हैं. यदि नष्ट हो गए थे तो फिर कहाँ से आये.

प्रश्न - ध्यान मेडिटेशन आदि द्वारा मन को नष्ट करने की बात और साधना क्यों की जाती है?
उत्तर- मन को नष्ट करने के लिए जो ध्यान, मेडिटेशन बता रहा है  वह मूर्खता सिखा रहा है और जो कर रहा है वह मूर्खता कर रहा है. हां ध्यान मेडिटेशन द्वारा मन का रूपांतरण किया जाता हैऔर यह हो सकता है और यही इसका उद्देश्य है. मन का निग्रह और मन को नष्ट करना दोनों अलग अलग बात हैं. मन का निग्रह हो सकता है परंतु मन नष्ट नहीं हो सकता. मन के  निग्रह से मतलब है संशयात्मक बुद्धि पर विवेक बुद्धि द्वारा अंकुश लगाना. बुद्धि से मन को वश में करना. जिसकी बुद्धि के द्वारा मन का निग्रह किया जाता है उसे ही योग का फल प्राप्त होता है, वही सत्य को जान पाता है. पतंजलि योग और श्रीमद्भगवद्गीता मन के निग्रह की बात करते हैं. मन परमात्मा की शक्ति है. परमात्मा की प्रकृति है. उसे कोई किसी भी अवस्था में कैसे नष्ट कर सकता है. शक्ति का केवल रूपांतरण होता है. वह सदा रहती है और समयानुसार भिन्न-भिन्न रूपों में परिलक्षित होती है.

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