प्रश्न- हमारे अन्दर आत्मा पूर्ण चेतन्य और परम ज्ञानवान है फिर वह अज्ञान से कैसे बंधता है.
उत्तर- आत्मा जब प्रकृति में आता है तो वह प्रकृति के गुणों से मोहित हो जाता है और उसके अन्दर यह भाव आ जाता है कि यह गुण मेरे हैं और वह गुणों की ओर आकर्षित हुआ उनसे बंधता जाता है.सत्व गुण उसे ज्ञान से आकर्षित करता है और वह ज्ञान के अहंकार में बंध जाता है.
(यहाँ ज्ञान को समझना आवश्यक है. ज्ञान का अर्थ है-
१-पूर्ण बोध अर्थात जानना - अपने को जानना, सब कुछ जानना.
२- किसी विषय अथवा वस्तु के ज्ञान से है. इसे पदार्थ ज्ञान कहते है जो प्रकृति में चेतन आत्मा की उपस्थिति से उत्पन्न होता है. यह बुद्धि का ज्ञान है.)
सत्व गुण ज्ञान सुख और ज्ञान देता है. इस विषय और पदार्थ ज्ञान के अहंकार से वह मिथ्या सुख में आत्मा को फंसाता है और आत्मा वास्तविकता को भूल कर प्रकृति की चाल में बंध जाता है. वह नहीं समझ पाता कि यह वास्तविक ज्ञान (बोध) न होकर छाया ज्ञान है.
इसी प्रकार रज जो कामना और आसक्ति से पैदा होता है आत्मा को कामना और आसक्ति में फंसाता है. पहले थोड़ा मिला उसका सुख उठाया फिर अधिक की इच्छा हुयी,आसक्ति बड़ी कर्म बड़े. तमोगुण अज्ञान से पैदा होता है यह आत्मा को पूर्ण भ्रम में डाल देता है और वह अपना शुद्ध स्वरुप भूल जाता है.
संक्षेप में प्रकृति को स्वेच्छा से अंगीकार करना आत्मा का बंधन है इसे ही जीव भाव कहा गया है.
प्रश्न- कृपया इसे अधिक सरलता से बताएं.
उत्तर- जब ज्ञान में अस्मिता बोध होता है तो स्वयं, स्वयं में स्थित होता है पर प्रकृति में होने के कारण उसे प्रकृति में अपने भिन्न भिन्न रूप दिखाई देते हैं. वह कभी एक रूप में कभी दूसरे रूप में जाकर स्वयं प्रसन्न होता है वहां पहले सुख का अनुभव करता है उस प्रकृति में सुख के कारण उसे आसक्ति हो जाती है. यह आसक्ति बडती जाती है परन्तु प्रकृति नित्य परिवर्तनशील है अतः प्रक्रति के बदलने से उसे दुःख होता है. जैसे एक स्त्री और पुरुष एक दूसरे के रूप एवं गुणों को देख कर आकर्षित होते हैं परन्तु समय के साथ वह आकर्षण बदल जाता है परिस्थितिवश गुण भी बदल जाते हैं. अब जिस आकर्षण से सुख था वह दुःख का कारण बन जाता है. फिर देह प्रकृति को नष्ट होना है इस कारण आसक्ति के कारण जीव अपार दुःख झेलता है. इसी प्रकार सर्वप्रथम वह अपनी देह (प्रकृति) जो उसका मकान है उससे आकर्षित होता है जीवन भर उसकी देखभाल करता है पर वह देह को रोगी, बूड़ा होने अथवा मरने से नहीं बचा सकताहै. देह में प्रबल आसक्ति के कारण जीव देह को अपना समझकर सर्वाधिक दुःख पाता है. देह आसक्ति ही उसे नाते रिश्ते में बांधती हैं और इन सब का अंतिम परिणाम दुःख है.इस दुःख के कारण को ही अज्ञान कहा गया है..
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