प्रश्न- सार शब्द क्या है ?
उत्तर- सार शब्द की चर्चा से पहले श्री भगवान द्वारा भगवद्गीता के पन्द्रहवें अध्याय में कहे वचनों का स्मरण आवश्यक है.
द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च ।
क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते ।16।
इस संसार में दो प्रकार के पुरुष हैं एक क्षर अर्थात नाशवान दूसरा अक्षर अविनाशी। इनमें जो भूत हैं जो देह है जो जड़ प्रकृति है वह नाशवान पुरुष है क्षर है। जो जीव है वह अविनाशी है।
उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः ।
यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः ।17।
इसमें भी अधिक आश्चर्य की बात यह कि इन क्षर अक्षर दो पुरुषों के अलावा एक तीसरा पुरुष भी है। यह पुरुष अत्यन्त श्रेष्ठ है और जब यह होता है तो दोनों पुरुष क्षर और अक्षर के अस्तित्व को समाप्त कर देता है. सर्वत्र यही उत्तम पुरुष व्याप्त हो जाता है। जब द्रष्टा भाव और दृश्य का लोप हो जाता है तो यह पुरुषोत्तम ही रहता है। यह पुरुषोत्तम तीनों लोकों में अर्थात सृष्टि के कण कण में व्याप्त होकर सृष्टि को एक अंश से धारण किये है। यह उत्तम पुरुष ही अव्यक्त परमात्मा अथवा विशुद्ध आत्मा है।
अब उक्त वचनों को लेते हुए सार शब्द की चर्चा करते हैं.
जब सार शब्द -ज्ञान प्रगट होने लगता है तो जीव स्वभाव और अज्ञान सब नष्ट होने लगता है और यह ज्ञान फैलता हुआ पूर्ण हो जाता है तब न अज्ञान रहता है न जीव. सृष्टि पूर्ण रूप से ज्ञान के परमाणुओं से बनी है शुद्ध व पूर्ण रूप में परमात्मा है. जड़ रूप में पदार्थ है और बीच की मिलीजुली स्थिति जीव है.
इस पूर्ण व शुद्ध ज्ञान - सार शब्द की अनुभूति होनी आवश्यक है. यह ईश्वरी आवाज है जिसमें कोई ध्वनि नहीं है. किसी भी मन्त्र द्वारा आप ईश्वर को पुकारते हैं, याद करते हैं, सुमिरन करते हैं पर जब इसका उलटा हो जाय प्रभु तुम्हारा सुमिरन करने लगें तब जानो तुम्हारी प्रार्थना, सुमिरन कबूल होने लगा है. प्रभु के सुमिरन का आभास मात्र होते ही आप आनंद में आने लगते हो. अब सुमिरन जो तुम करते थे वह उलट गया. अब प्रभु सुमिरन करने लगे हैं.
इसलिए बाल्मीकि जी के लिए कहा जाता है-
उलटा नाम जपत जग जाना बाल्मीकि भये ब्रह्म समाना.
मरा मरा की तो कहानी बना दी लोगों ने.
अब उलटे सुमिरन की स्थिति बडती जाती है तब अपने मजे का मजा आता है. इस स्थिति में कबीर कहते हैं-
सुमिरन मेरा प्रभु करें मैं पाऊं विश्राम.
अब आपको स्पस्ट हो गया होगा सार शब्द क्या है जिसके लिए कबीर कहते हैं-
सार शब्द जाने बिना कागा हंस न होय.
कोवा अज्ञान और जीव का प्रतीक है, हंस ज्ञान का. इसलिए हंस वही हो सकता है जिसे महसूस होने लगे की उसके अन्दर बैठकर परमात्मा उसे सुमिरन करने लगे हैं. अब यह उलटा सुमिरन बड़ने लगता है और आप की असली आध्यात्मिक यात्रा प्रारम्भ हो जाती है.
इस सुमिरन का ज्ञान कराने के लिए श्री भगवान् कृष्ण चन्द्र जी ने उद्धव जी को ब्रज में गोपियों के पास भेजा था. यही असल में सुरत की धार है जिसे पाकर जीव आनंदित हो उठता है.
हनुमान जी के ह्रदय में बैठ कर श्री राम का हनुमान जी का सुमिरन ही सार शब्द है. यह सार शब्द सबके लिए है. इसका कोई नाम नहीं है. बिना ध्वनि के अन्दर प्रगट होता है. इसी के कारण आपके जीवन में रोनक है. बस आपको पता नहीं है. आपके छोटे से छोटे कार्य में वह परमात्मा आपसे बात करते हैं. अभी आपको पता नहीं है. उलटा सुमिरन होते ही आपकी परमात्मा से बात होने लगेगी. कोशिश करें. यह रहस्य आपको स्वयं अनुभूत होगा.
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