प्रश्न- धर्म क्या है ?
उत्तर- धर्म शब्द के दो अर्थ हैं-
1-जिसने धारण किया है.
2-जिसको धारण किया है.
1-जिसने धारण किया है- जिसने सृष्टि को धारण किया है, जिसने शरीर को धारण किया है, इस सृष्टि को धारण करनेवाला जो है वह विशुद्ध पूर्ण ज्ञान आत्मा अथवा परमात्मा कहा जाता है.
2-जिसको धारण किया है- आत्मा प्रकृति को धारण करता है .जब वह प्रकृति को अपना लेता है तो उसे जीव कहते हैं क्योंकि वह एक निश्चित स्वभाव अपना लेता है. इसलिए जीव स्वभाव ही धर्म कहा गया है.
स्त्रियों के रजस्वला स्वभाव को मासिक धर्म कहा जाता है क्योकि वह एक उम्र के पश्चात स्त्री का प्राकृतिक स्वाभाव है. धर्म जो आपको स्वभाव से मिला है जो जन्म से मिला है जो आपका प्राकृतिक ज्ञान है जिसे आपने सीखा नहीं है जो आपके अन्दर बसा हुआ है जीव धर्म है.
इसलिए समझ लीजिये की धर्म आपको स्वाभाविक रूप से मिला है. वह न केवल आपको अपितु सभी जड़ चेतन को समान रूप से मिला है.
प्रश्न- अधर्म क्या है?
उत्तर-तत्त्व दृष्टि से गुणों का असंतुलन अधर्म है. तमोगुण और रजोगुण का संग अधर्म है. इस कारण दंभ, कपट,पाखंड बड़ते हैं. अपने लाभ के लिए दूसरे प्राणी को मारना, सताना अधर्म है. अज्ञान अधर्म का कारण है. अज्ञान जब शक्ति से संयुक्त हो जाता है तो शक्ति की मात्रानुसार अधर्म बड़ता है.
यह नियम सभी प्राणीमात्र अथवा जड़ चेतन पर लागू होते हैं. अब आप समझ गए होंगे कि सबका धर्म एक है.क्योकि धारण करनेवाला जो है वह सब में एक है और स्वभाव जिसे आपने जन्म के साथ प्राप्त किया है वह आपका निज (अपना) धर्म है.
प्रश्न- धर्म के विषय में जो बताया जा रहा है वह क्या है?
उत्तर- श्री भगवान् भग्वद गीता में कहते हैं=
अज्ञानेन आवृतः ज्ञानम् तेन मुह्यन्ति जन्तवः
ज्ञान अज्ञान से ढका हुआ है इस कारण सब जीव मोहित हो रहे हैं. यही अधर्म का कारण है.
प्रश्न- हम मनुष्यों के धर्म का क्या सही नाम होना चाहिए?
उत्तर- मानवता. यदि सोच बड़ी रक्खें तो जीव धर्म हमारा धर्म है.
प्रश्न- हमारी जाति क्या है?
उत्तर- जीव
अंत में एक बात समझ लीजिये कि जितने दर्शन और तथाकथित धर्म हैं यह सब धर्म को जानने का प्रयास है.
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