प्रश्न-हम बैचेन क्यों रहते हैं.
उत्तर-आप की स्थिति उस गिलास की तरह है जो जल से आधा भरा हुआ है. पानी का श्रोत आपके अन्दर बंद है फिर वह गिलास कैसे भर सकता है. इसी के कारण बैचनी है. इस बैचनी को दूर करने के लिए हम बाहरी श्रोतों को ढूँढ़ते हैं, हम प्रतिस्पर्धा करते हैं और ज्यादा बैचेन होते जाते हैं. हमने इस प्रतिस्पर्धा के कारण अपने बच्चों का बचपन छीन लिया है. हम उन्हें बैचनी दे रहे हैं.
आपको अपने अन्दर विश्राम खोजना होगा, विश्राम पाना होगा. कभी भी आपको आपसे बाहर आराम नहीं मिल सकता है. आप कहीं बाहर जाते हैं, अच्छे से अच्छे होटल में रहते हैं पर अपने घर लोटकर ही आराम मसूस करते हैं. इसी प्रकार आप कितना ही संसार को खोजें, क्रिया प्रतिक्रिया करें और कितनी ही सम्पन्नता जुटा लें पर आराम आपको अपने अन्दर ही मिलेगा. जितना बाहर की और फैलेंगे उतनी बैचेनी जीवन में आती जायेगी.
श्री भगवान् भग्वद गीता में कहते है तू स्वयं अपना मित्र है तू स्वयं अपना शत्रु है इसलिए अपनी आत्मा में रमण कर. आत्मा क्या है ? वह स्वयं आप हैं इसलिए स्वयं से स्वयं में रमण करना है.
प्रश्न-अपने अन्दर हम कैसे जाएँ? अपने में कैसे रमण करें?
उत्तर- इस सृष्टि में तीन शक्तियाँ सदा कार्य करती है. यथार्थ ज्ञान, विचार और आसक्ति.
यह तीनों एक दूसरे के कारण है. आप आसक्ति कम करते जाएँ और जब आसक्ति पूर्ण रूप से समाप्त हो जायेगी तो यथार्थ ज्ञान स्वतः ही आप में होगा. इसी प्रकार विचार शून्य होने पर आसक्ति समाप्त हो जायेगी और यथार्थ ज्ञान हो जाएगा. तब चाह और चिंता समाप्त हो जायेगी तथा मन बेपरवाह हो जाएगा. आप अपने में स्थित हो जायेंगे.
आप घबड़ाइये नहीं आप प्रयोग कीजिये आसक्ति को कम करते जाएँ अथवा विचार पहले अच्छे और शुभ बनाएं फिर उनको कम करें या फिर यथार्थ ज्ञान की और अग्रसर होने के लिए स्वयं से स्वयं को देखें.
प्रश्न-जब सृष्टि का अंत हो जाता तब क्या होता है?
उत्तर- सृष्टि का कभी भी अंत नहीं होता है. सम्पूर्ण अंत भी एक सृष्टि की ही प्रक्रिया है. इसी प्रकार जीवन और मृत्यु एक लगातार होने वाली घटना हैं, एक प्रक्रिया है. यह सब आपके ही अन्दर आपके द्वारा ही घटित हो रही है क्योकि आपके सिवाय दूसरा कोई नहीं है. श्री कृष्ण के वचन हैं-एको अस्मि द्वितीयो नास्ति. इसे आप स्वयं अनुभव कर सकते हैं. इस आप को जानना आपके सभी प्रश्नों का उत्तर है.
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