प्रश्न- यह प्रकृति हमारे अन्दर किस रूप में रहती है और क्या क्या करती अथवा कर सकती है. इसकी महत्ता क्या है? क्या प्रकृति से परमात्मा को जान सकते हैं?
उत्तर- केनोपनिषद के तीसरे और चौथे खंड में एक रोचक कथा कही गयी है. देवासुर संग्राम में असुरों पर देवताओं द्वारा विजय प्राप्त करने के पश्चात देवता अभिमान वश उसे अपनी विजय मानने लगे तब देवताओं के सामने एक यक्ष प्रकट हुआ. वार्तालाप के पश्चात यक्ष ने एक सूखा तिनका डाल दिया. अग्नि देव उस तिनके को सारी ताकत लगाकर जला नहीं पाये. वायु देव उड़ा नहीं सके. फिर देवराज इन्द्र वहाँ पहुंचे. उनके पहुँचते ही यक्ष अन्तर्धान हो गया. इन्द्र वहीं खड़े रहे. यक्ष के स्थान पर भगवती उमा प्रगट हुयीं. तब इन्द्र के पूछने पर भगवती उमा ने बताया.
परमात्मा यक्ष रूप धारण करके आये थे. उन्होंने तुम्हें अहसास कराया कि इस संसार में जिस किसी में जितना भी बल, विभूति है वह उन परमात्मा का तेज है. अग्नि, वायु, इन्द्र आदि की जो भी शक्ति है वह उनके कारण ही है.
उनके बिना अग्नि देव अपनी पूरी शक्ति लगाने पर भी एक सूखे तिनके को नहीं जला सके. वायु देव उस सूखे तिनके को उड़ा न सके.
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है, परमात्मा का बोध ज्ञान शक्ति द्वारा ही हो सकता है. यही भगवती उमा हैं.
इन्द्र देवताओं के राजा है अर्थात सभी ज्ञानेन्द्रियों के ज्ञान का प्रतीक इंद्र देव हैं. यह ज्ञानेन्द्रियों का ज्ञान जब मूल प्रकृति शुद्ध बुद्धि भगवती उमा के दर्शन करता है तब परमात्मा को जान पाता है. उससे पहले सभी ज्ञानेन्द्रियों के ज्ञान से भी परमात्मा को नहीं जाना जा सकता है. सभी ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा बुद्धि को देखना पड़ता है यही भगवती उमा के दर्शन हैं. यही साक्षी होने की क्रिया और परिणाम है.
मनुष्य में यह ज्ञान शक्ति बुद्धि के रूप में विराजमान है. यह बुद्धि ही त्रिगुणात्मक प्रकृति है. मनुष्य की बुद्धि जैसा निश्चय कर लेती है मनुष्य वैसा हो जाता है. अपनी बुद्धि के निश्चय से वह देव, दानव, राक्षस, असुर, पिशाच, सिद्ध ज्ञानी, ध्यानी, कामी , भोगी, अपराधी, आतंकी, नेता,अभिनेता, साधू, महात्मा, संत आदि कुछ भी हो सकता है. जैसी बुद्धि होती है वैसा मनुष्य आचरण करता है. बुद्धि सात्विक, राजस और तामसिक अथवा इन के मिले जुले होने और मात्रा के प्रभाव से भिन्न भिन्न व्यक्तियों का भिन्न भिन्न आचरण होता है. इसलिए सदबुद्धी, कुबुद्धि, निर्बुद्धि, पर बुद्धि, शुद्ध बुद्धि आदि शब्द प्रयोग में लाये जाते हैं.
एक सत्य घटना आपको बताता हूँ. एक व्यक्ति को बुद्धि भ्रम हो गया कि जो बुद्धिमान हैं उनके दिमाग का सूप पीकर वह दुनिया का परम बुद्धिमान बन सकता है. इस मतिभ्रम के कारण उसने कई बुद्धिमान लोगों की ह्त्या की और उनके दिमाग का सूप पी गया और अपराधी बन गया. घोर तमस के कारण उसकी बुद्धि में भ्रम पैदा हो गया, उसका विवेक समाप्त हो गया और जघन्य अपराधी बन गया. प्रश्न उपस्थित होता है कि उसे अपराधी किसने बनाया तो उत्तर सरल है बुद्धि ने.
बुद्ध को बोध हुआ बुद्धि के कारण और अंगुलिमाल अंगुली काटता था बुद्धि के कारण.
आयंसटीन, डॉ वास्टन, विवेकानंद ,महात्मा गांधी, हिटलर, मैं और आप, अच्छा बुरा सब बुद्धि का परिणाम हैं .
जिस प्रकार तामसी और राजसी बुद्धि मनुष्य को दुष्कर्म की और ले जाती है उसी प्रकार सात्विक बुद्धि के द्वारा मनुष्य जीव मात्र का भला करता है और बोध को प्राप्त होता है. इसी कारण भगवद्गीता में श्री भगवान द्वारा बुद्धि योग को ही अंतिम और एकमात्र उपाय बताया है. यहाँ यह भी जान लें कि कोई भी कर्म बिना बुद्धि के नहीं हो सकता है अतः कर्म योग भी बुद्धि योग ही है.
प्रकृति जीवित मनुष्य में आठ प्रकार से विराजमान है. यह आठ प्रकार अहंकार,मन, बुद्धि, आकाश, वायु , अग्नि, जल, पृथ्वी हैं. अहंकार, मन और बुद्धि, यह तीनों बुद्धि के रूप हैं. आकाश से पृथ्वी तत्त्व क्रमशः जड़ होते जाते है. अहंकार अभिमान करने वाली बुद्धि है, मन संशय करने वाली बुद्धि है और बुद्धि का अर्थ है जो यथार्थ का ज्ञान करा दे अर्थात दूध का दूध और पानी का पानी कर दे.
अब मूल बात यह है-
१- हम पृथ्वी और जल तत्त्व से परमात्मा को नहीं जान सकते.
२- हम अग्नि और वायु और आकाश तत्त्व से भी परमात्मा को नहीं जान सकते.
३- केवल बुद्धि द्वारा ही परमात्मा को को जाना जा सकता है.
४.अभिमान करने वाली बुद्धि देव, दानव, राक्षस, असुर, पिशाच, सिद्ध ज्ञानी, ध्यानी, कामी , भोगी, अपराधी, आतंकी, नेता,अभिनेता, साधू, महात्मा बना सकती है पर इससे परमात्मा को नहीं जान सकते.
५-संशय करने वाली बुद्धि को कभी भी यथार्थ का ज्ञान नहीं करा सकती अतः इससे परमात्मा को नहीं जान सकते.
६-बुद्धि का अर्थ है जो यथार्थ का ज्ञान करा दे इसलिए परमात्मा को जाना जा सकता है. इस बुद्धि को ही लोग शुद्ध बुद्धि ,प्रज्ञा, ऋतम्भरा कहते हैं. यही भगवती उमा हैं, यही प्रकृति की मूल अवस्था है, जिन के द्वारा इन्द्र को बताया गया. जैसा ऊपर कथा में यक्ष का रूप धारी ही परम चेतन्य परमात्मा हैं जिनका बल सब देव, दानव, राक्षस, असुर, पिशाच, सिद्ध ज्ञानी, ध्यानी, कामी , भोगी, अपराधी, आतंकी, नेता,अभिनेता, साधू, महात्मा में है.
अब आप सभी समझ गए होंगे की आपकी बुद्धि ही आपका स्वभाव है, आपकी प्रकृति है और यह जैसी होगी वैसे आप होंगे. इसी प्रकार जैसा और जितना द्रड़ निश्चय आपकी बुद्धि का होगा उतना और वैसा परिणाम आपको प्राप्त होगा. यदि निश्चय पूर्ण है तो परम चेतन्य परमात्मा का लाभ आपको प्राप्त होगा.
यहाँ यह भी जान लीजिये की यह बुद्धि तभी तक आपके लिए है जब तक जीवन है. जीवन के बाद यह बुद्धि बीज रूप में ज्ञान में समाहित हो जाती है और जीवात्मा का कारण बनती है. इसी के कारण जीव कर्म करने और फल भोगने के लिए विवश है. जीवित अवस्था में ही ही बुद्धि द्वारा चेतन्य और जड़ चेतन के कारण को जाना जा सकता है.
ॐ तत् सत्
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