प्रश्न- संन्यास क्या है?
उत्तर- संन्यास केवल वस्त्रों को त्यागना और बदलना नहीं है. इसी प्रकार अग्नि को त्यागना भी संन्यास नहीं है.
सभी संकल्पों का त्याग संन्यास कहलाता है. जो पुरुष न किसी से द्वेष करता है न किसी फल की इच्छा करता है वह सन्यासी है.
आपको ज्ञात होगा भारत में जब बोद्ध धर्म अपने प्रचार प्रसार में तेजी से फेल रहा था उस समय एक कथन प्रचलित हुआ - मूड़ (बाल) मुड़ाय भये सन्यासी.
आजकल यह हो रहा है -मूड (बाल) बड़ाय भये सन्यासी.
प्रश्न-अग्नि को त्यागना क्या है?
उत्तर-घर के चुल्हा चोके के झंझट से परेशान होकर घर त्याग देना अग्नि को त्यागना है.
प्रश्न - कई लोग की वर्षों तक एक हाथ खड़ा रखते हैं, उनका हाथ उसी अवस्था में रहता है.इसी प्रकार कोई सर के बल खड़े रहते हैं, कोई एक टांग में खड़े रहते हैं, इनके विषय में आपका क्या कहना है?
उत्तर- यह सब तामसिक तप है जिसमें न वर्त्तमान में आनंद और सुख है तो फिर परलोक कैसे सुखी हो सकता है.
प्रश्न- कई लोग जमीन के अन्दर घुस कर, कई जल में घुस कर ,कई मचान में बैठकर तप करते हैं, इनके विषय में आपका क्या कहना है?
उत्तर- यह सब भी तामसिक तप है जिसमें न आनंद है और न सुख है. इन सभी की बुद्धि अज्ञान से घिरी हुयी है.
प्रश्न- कुछ लोग दाड़ी, बाल नोचते है आदि आदि..?
उत्तर- यह सब भी तामसिक तप है, इन तपों से कोई लाभ नहीं है.यह सब ताप हैं.
प्रश्न- तो फिर क्या आचरण होना चाहिए?
उत्तर श्री भगवान् भगवद्गीता में कहते हैं, जिसका आहार विहार ठीक है ,जिसकी चेष्टा और कर्म ठीक हैं जिसका सोना और जागना ठीक है उसका योग सिद्ध होता है. पतंजलि ने सुख पूर्वक स्थिर बैठने को योगासन कहा है.
प्रश्न - शनिवार को तेल दान, मंगल को गुड़ चना आदि दान क्या हैं?
उत्तर- यहाँ भी तामसी वृत्ति कार्य करती है, इसलिए कुछ लाभ नहीं है. बस इतना अवश्य होता है कि कुछ जरूरत मंद मनुष्यों और पशु पक्षियों को भोजन लाभ मिल जाता है.
प्रश्न- धर्म के नाम पर ईश्वर अथवा देवता को पशु बलि क्या है?
उत्तर- यह घोर तामसिक कार्य है. अपने लाभ, भय और भोजन के लिए इस प्रकार जीव ह्त्या नितांत अधम कार्य है.
यदि ईश्वर को बलि देनी है तो अपने अहंकार की बलि दो. श्री भगवान् भगवद्गीता में कहते हैं, जो भी मनुष्य मुझे प्रेम से जल ,पत्ता, फूल, फल अर्पण करता है मैं उसे अत्यंत प्रेम से स्वीकार करता हूँ.
प्रश्न- धर्मशाला, स्कूल, मंदिर, आश्रम, च्कित्सालय बनाना, भंडारा करना, प्याऊ लगाना ,कुआं, तालाब बनाना, सामाजिक सेवा आदि क्या हैं.
उत्तर - यदि यह कार्य निस्वार्थ भाव से किये जाएँ तो सात्विक तप है और अपनी बड़ाई, सम्मान, लोग मेरी बड़ाई करें, अभिमान और अहंकार की तुष्टि के लिए किया जाता है तो वह रजोगुणी तप है. यदि दुसरे को पीड़ा पहुंचाकर, या पीड़ा देने के उद्देश्य से किया जाता है तो वह कार्य तामसिक है.
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