प्रश्न- वेद का क्या अर्थ है?
उत्तर- वेद शब्द का अर्थ है जानना. वेद शब्द का अर्थ है ज्ञान.
प्रश्न-वेद और वेदान्त में क्या अंतर है?
उत्तर- वेद का अर्थ है जानने का प्रारम्भ और वेदान्त का अर्थ है जानने का अंत, ज्ञान की अंतिम सीमा- पूर्णता अर्थात जिसको जानकार कुछ भी शेष न रह जाय.
प्रश्न- हिन्दूओं के वेद क्या हैं?
उत्तर- हिन्दूओं के चार वेद ज्ञान की खोज अलग अलग तरीके से करते है और अपने अंत में एक ही निष्कर्ष देते है की पूर्णता किस प्रकार पायी जा सकती है.इस निष्कर्ष के भाग को ही वेदान्त कहा जाता है.
प्रश्न-क्या वेद को कर्म को प्रमुखता देते है?
उत्तर- हाँ
प्रश्न-भगवद्गीता और वेद के कर्म सिद्धांत में क्या अंतर है?
उत्तर- वेद सकाम कर्म को महत्व देते है. साधारण मनुष्य जीवन सुख पूर्वक जीना चाहता है और मृत्यु के बाद भी सुख चाहता है इसी कारण शुभ और श्रेष्ठ कर्मो का प्रतिपादन वेद करते हैं जिससे उसे इस जीवन में और मृत्यु के बाद सुख मिले, स्वर्ग मिले, फिर जन्म हो तो सुख मिले. भगवद्गीता के कर्म का सिद्धांत साधारण मनुष्य और पूर्णता के खोजी मनुष्य के लिए अलग अलग है. अतः साधारण मनुष्य को स्वाभाविक कर्म करने की बात श्री कृष्ण कहते हैं जो वेद का मार्ग है और पूर्णता के खोजी मनुष्य को निष्काम कर्म का उपदेश देतें हैं. इसी प्रकार वेदान्त भी भगवद्गीता की तरह निष्काम कर्म का उपदेश देते हैं.
भगवद्गीता का कर्म का सिद्धांत बुद्धि योग का हिस्सा है. श्री भगवान् कर्म करते हुए बुद्धि को निष्काम रखने को कहते हैं.
वेद जीवन को प्रमुखता देते हैं वेद कहते हैं की मनुष्य को सुख पूर्वक अधिक से अधिक जीवन जीने की कोशिश करनी चाहिए. 'जीवेत शरदम शतः'. भगवद्गीता आत्मा के जीवन की बात करती है. वह देह की आयु को महत्व नहीं देती. भगवद्गीता.कहती है तू आत्मा है देह नहीं इसलिए अपने नित्य और अविनाशी स्वरुप को जान वही तू है. इस प्रकार भगवद्गीता देह को महत्त्व नहीं देती. इस अंतर का कारण है कि हिन्दूओं के चार वेद ज्ञान की खोज का प्रारम्भ करते हैं और गीता ज्ञान का अमृत देती है. इसलिए हम देखते है कि वेदों में सिद्धांत बदलते हैं, देवता बदलते हैं क्योंकि ज्ञान की वृद्धि के साथ मान्यता बदलती हैं परन्तु भगवद्गीता ज्ञान की पूर्णता का ग्रन्थ है. अब यहाँ मान्यता बदलने की गुंजाइश नहीं है. यहाँ सिद्धांत अकाट्य हैं.
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