Thursday, October 3, 2013

तेरी गीता मेरी गीता - त्रिदेव का रहस्य -101 - बसंत

प्रश्न - परमात्मा के त्रिदेव रहस्य को एक बार फिर से समझाने का कष्ट करें?

\उत्तर- आपसे इस विषय में कई बार चर्चा हुई है, इस विषय को ध्यान पूर्वक फिर से सुनिए. परमात्मा जो विशुद्ध ज्ञानस्वरुप  है वह और उसकी शक्ति जिसे माया कहा जाता है उसी प्रकार अभिन्न हैं जिस प्रकार आप और आप की शक्ति. ब्रह्म की शक्ति के तीन स्वरुप हैं ज्ञान शक्ति जो शुद्ध मैं है, अज्ञान शक्ति जो जड़ है और इन दोनों को जोड़ने वाली, सतत गतिमान क्रिया शक्ति है. शुद्ध मैं को ही विराट ईश्वर, नारायण अथवा श्री हरि विष्णु कहा जाता है. अज्ञान को महादेव शंकर और क्रिया को ब्रह्मा जी कहा गया है. यह तीनों ब्रह्म शक्ति के तीन स्वरुप हैं इसलिए सदा परमात्म स्वरुप हैं.

इन तीन शक्तियों की भिन्न भिन्न मात्रा के मिलने से देव,यक्ष.गंधर्व,अप्सरा,राक्षस,पिशाच,भूत ,प्रेत, मनुष्य और पशु.पक्षी,कीट, वनस्पति. खनिज, पत्थर आदि भिन्न भिन्न योनियों का सृजन होता है.

एक बड़ा विवाद है कोई कहते हैं महादेव शंकर सर्व श्रेष्ठ हैं वही आदि देव हैं कोई श्री हरि विष्णु  को सर्व श्रेष्ठ कहते हैं उन्हीं को आदि देव मानते हैं. इस विषय में भी निश्चित मत  सुन लीजिये. जो जैसा होता है उसकी मूल शक्ति भी उसी की भांति होती है.परमात्मा जो विशुद्ध ज्ञान स्स्वरूप है उनकी ज्ञान शक्ति ही मूल शक्ति है जिसका प्रतिनिधत्व श्री हरि विष्णु करते हैं. दूसरा ज्ञान ही अज्ञान में बदल सकता है और बदलता है. अज्ञान ज्ञान के बिना ज्ञान में नहीं बदल सकता. क्रिया स्वाभाविक है, ज्ञान और अज्ञान के प्रतिनिधि श्री हरि विष्णु और महादेव हैं. शाक्तों ने इसे भगवती के तीन रूपों से जोड़ दिया, उद्भव, स्तिथ, संहारकारिणी. सब कुछ एक ही है. एक ही देव सब में भिन्न भिन्न रूप में परिलक्षित होता है. परन्तु उपलब्धि का विषय ज्ञान है, शुद्ध मैं है जो नारायण है. नारायण ही शिव  हैं वही ब्रह्माजी के पिता हैं. वही विराट पुरुष हैं.

BHAGAVAD-GITA FOR KIDS

    Bhagavad Gita   1.    The Bhagavad Gita is an ancient Hindu scripture that is over 5,000 years old. 2.    It is a dialogue between Lord ...