Friday, September 6, 2013

तेरी गीता मेरी गीता / TERI GITA MERI GITA - मैं – 100 - बसंत

शून्य परे ही मैं सदा
मैं ही विश्व परिपूर्ण
आदि देव सब देव का
स्वयं सदा परिपूर्ण
मैं अविनाशी नित्य निरंजन
एक अखंड समर्थ जनार्दन
खुद ही उपजा खुद उपजाया
मैं से मैं का लघुतर रूप
मैं अनंत तो सीमित हूँ मैं
सब ही हैं मैं के प्रतिरूप
मैं ही बंधता मुक्त सदा मैं
मुक्ति बंध से सदा विमुक्त
मैं अज्ञान ज्ञान भी मैं हूँ
मैं ही जीवन मैं ही मृत्यु
भिन्न भिन्न जीवन के पहलू
सब होते मैं से परिपूर्ण.


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