Saturday, March 28, 2020

ध्यान द्वारा यदि तुम्हारा लक्ष आनंद को उपलब्ध होना है तो तुम मूर्खता कर रहे हो.

प्रश्न-क्या ध्यान का लक्ष आनंद या शांति को उपलब्ध होना है.

उत्तर- ध्यान द्वारा यदि तुम्हारा लक्ष आनंद को उपलब्ध होना है तो तुम मूर्खता कर रहे हो. तुम तो रोज नींद में आनंद और शांति को उपलब्ध होते है. क्या उससे कुछ उपलब्ध हुआ? पहले समझो. जीव में आनंद तीन  प्रकार का होता है.
१-होश का आनंद
२-बेहोशी का आनंद
३-कम होश और बेहोशी का आनंद

बेहोशी का आनंद तुम नींद में, जड़ समाधी में और बेहोशी में अनुभव करते हो.

कम होश और बेहोशी का आनंद - यह आंनद आता और जाता रहता है. मनुष्य और प्रत्येक जीव इस आंनद को प्रति दिन स्वप्न और जागृति में क्षणिक रूप से अनुभव करते हैं.

पहले यह समझें की आनंद क्यों होता है.
आंनद चित्त या मस्तिष्क की तमोगुणी अवस्था है. यह किसी भी तरह अधिक सघन होने पर जीव को आंनद देती है. तमस जितना अधिक गहराता है जीव उतना आनंदित होता है.
आप किसी एक इंद्री के विषय में जब केंद्रित होते हैं तो मस्तिष्क उसमें मगन होने लगता है और  संकल्प विकल्प कम हो जाते हैं. इसलिए आप आंनद अनुभव करते हैं. आप मन पसंद कोई पुस्तक पड़ते हैं और उसमें डूबने लगते हैं. आप पुस्तक में डूबते डूबते नींद में चले जाते है. इसी प्रकार कोई मन पसंद गाना, भजन सुनते हुए, खेलते हुए, सेक्स आदि अवस्थाओं में आप होश बेहोशी मिश्रित आंनद अनुभव करते हैं और बार बार ऐसा प्रयास अलग अलग तरीकों से करते हैं क्योंकि एक क्रिया से आप कुछ समय बाद ऊब जाते हैं. फिर आनंद को कुछ अन्य तरीके से ढूँढ़ते हैं 
ध्यान में भी यही होता है. जब आप किसी भी विधि से ध्यान करते हैं तो ध्यान के गहराने पर आप आंनद में मग्न होने लगते हैं और इसको उपलब्धि मान बैठते हैं. सारा जीवन निष्फल हो जाता है.

प्रश्न - फिर ध्यान का क्या प्रयोजन है.

उत्तर- ध्यान का प्रयोजन है होश में आना, न कि आनंद में खोना. होश में आने पर ही यथार्थ सत्य को जाना जाता है.

प्रश्न-ध्यान में करना क्या चाहिए?

उत्तर- ध्यान में जब और जैसे आनंद आना , एक रस आना शरू होता है आप तत्काल सावधान हो जाएँ. आनद आपको बेहोशी की ओर, शान्ति की ओर, अज्ञान की ओर, नींद की ओर ले जाता है. आपको अपना ध्यान होश पूर्वक आनंद को अनुभव करते हुए अपने में स्थित करना है.
आनद एक पड़ाव है जो अवश्य आएगा. इस आनंद के साथ आप मगन होकर बेहोशी की ओर चल दिए तो सब बेकार हो गया. हाँ यदि आप ने अपना होश नहीं खोया और आप आंनद अनभूत करते हुए अपने में स्थित रहने में सफल रहे, आनंद द्वारा बहाये नहीं गए तो अमृत का द्वार आपके लिए खुल जाएगा.
स्पष्ट है आपको अपने यथार्थ की अनुभूति होनी है, बोध होना है, बुद्धि सत्य को जानने वाली होनी है. तब आनंद और शान्ति आपके पीछे पीछे दौड़ी  चली आयेंगी. यह आनंद शाश्वत होगा . यह शान्ति शाश्वत होगी.

प्रश्न-पहले आंनद और दूसर आंनद में क्या फर्क है.

उत्तर-पहला आनंद तमोगुण से उत्त्पन्न होता है और बोध की बाद आनंद सत् से उत्त्पन्न होता है इसलिए सदा रहता है. यही पूर्ण होश का आंनद है.

प्रश्न- कम होश और अधिक बेहोशी से आपका क्या तात्पर्य है?

उत्तर- आप का मस्तिष्क केवल 5% क्रिया शील है और 95% अवचेतन है. यह 5%आपका होश है और 95% हिस्सा बेहोश है. यदि कोई मनुष्य 15% भी अपने मस्तिष्क को क्रियाशील बना ले या कहें 15% होश में आ जाए तो एक अद्धभुत क्रान्ति घटित हो जायेगी. वह दिव्य हो जाएगा. उसमें ईशत्व आ जाएगा. ध्यान का यही प्रयोजन है. परन्तु आपको होश पूर्वक ध्यान करना होगा और बेहोशी से बचना होगा.

Friday, March 13, 2020

तीन प्रकार का होश- (चैतन्य और चेतना)


चैतन्य और चेतना के लिए अंग्रेजी में consciousness एक ही शब्द प्रयुक्त होता है. जिससे बड़ी भ्रान्ति उत्त्पन्न हो गयी है.
चैतन्य सम्पूर्ण नित्य होश है जो किसी शरीर के रहने अथवा न रहने पर सदा एक सा रहता है.
चेतना एक प्राकृत होश है. प्रकृति का एक विकार है जो शरीर में उत्पन्न होती है. इसके दो भाग हैं
1-  मस्तिष्क की चेतना जिससे हम चिंतन मनन आदि सभी कार्य करते है.जो नींद में समाप्त हो जाती है. 
2-  शरीर के आतंरिक अंगों की चेतना जो नींद में बनी रहती है पर मृत्यु के बाद समाप्त हो जाती है. कुछ अंगों की चेतना मृत्यु के बाद कुछ समय तक बनी रहती है. यदि उनको किसी शरीर में नित्य चेतना का संसर्ग या किसी अन्य प्राकृत ढंग से अनुकूल स्थिति मिल जाती है तो वह चेतन रहते हैं.

तात्पर्य है चेतना स्थायी नित्य तत्त्व नहीं है जबकि चैतन्य स्थायी नित्य तत्त्व है. इसे अहम् या स्वयॅ ( Self ) कहना उचित होगा. यह हर अवस्था में जीव के साथ नित्य है. यह सामान चैतन्य रूप में एक और सर्वत्र है और विशेष चैतन्य रूप में प्रत्येक जीव के साथ हर अवस्था में है. कहना उचित होगा यह हर अवस्था में जीव के साथ नित्य है.

आइये इसे सरल रूप से समझते  हैं. मनुष्य या किसी भी जीव के पास, चाहे उसे पता हो या पता न हो तीन प्रकार का होश होता है.
1- होश जो सदा हर अवस्था में बना रहता है

2- होश जिससे हमारा मस्तिष्क - मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार  ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ कार्य करती है जो नींद, बेहोशी और मृत्यु में समाप्त हो जाता है.

3- होश  जो हमारे शरीर के आतंरिक अंगों का है जो जाग्रत, नींद और बेहोशी में बना रहता है पर मृत्यु में समाप्त हो जाता है.

Wednesday, March 11, 2020

हम अज्ञानी क्यों हैं.

प्रश्न-ज्ञान क्या है
उत्तर-जिससे सत्य को बोध हो. जिससे यथार्थ (वास्तविकता) दिखाई दे.

प्रश्न- अज्ञान क्या है
उत्तर-जिससे अवास्तविकता सत्य भासित हो.
अज्ञान का अर्थ मूर्खता नहीं होता. अ + ज्ञान  जो ज्ञान नहीं है. जो सत्य नहीं है. जिसकी सत्ता शास्वत नहीं है.

प्रश्न-हम अज्ञानी क्यों हैं.
उत्तर-क्योकि हमारा जन्म अज्ञानं के गर्भ से होता है. जड़ता से होता है. जड़ में प्रस्फुरण जीवन है.

प्रश्न- मनुष्य के अंदर अविद्या (अज्ञान ) की शक्तियां कौन कौन सी है.
उत्तर- मन, बुद्धि, अहंकार, और पांच भूत आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी.

प्रश्न - मन, बुद्धि, अहंकार और पांच भूत आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी से बना देह जड़ है. इसमें चैतन्यता कहाँ से आयी.

उत्तर- परा प्रकृति जो चैतन्य है जिसे जीव कहते हैं इस जड़ त्रिगुणात्मक प्रकृति के साथ सदा संयुक्त रहता है. उसी के कारण इस जड़ प्रकृति में चेतना दिखाई देती है.
यहाँ यह जानना भी आवश्यक है कि मन, बुद्धि, अहंकार और पांच भूत आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी  त्रिगुणात्मक प्रकृति के सूक्ष्म और स्थूल अंग है. त्रिगुणात्मक प्रकृति की तमोगुणी अज्ञान शक्ति मनुष्य या किसी भी जीव में एक पर्दा दाल देती है जिससे वह अपना स्वरुप भूल जाता है. इसी प्रकार रजोगुणी शक्ति उसे अधिक से अधिक जड़ता में रस प्रदान करती है. यह एक विक्षेप शक्ति उसे सदा विक्षिप्त रखती है. इन दोनों का नाश अस्त्तिव बोध होने पर ही होता है. जब तक मनुष्य को जन्म जन्मान्तरों की याद नहीं आती तब तक अज्ञान नष्ट नहीं होता .

Sunday, March 8, 2020

क्या मरने के बाद मोक्ष हो जाता है?

प्रश्न - क्या मरने के बाद मोक्ष हो जाता है?
उत्तर- नहीं

प्रश्न - क्या श्राद्ध, तर्पण, पिंड दान से दिवंगत  लोगों की मुक्ति हो जाती है .
उत्तर- नहीं.

प्रश्न -क्या मोक्ष की कोई अवधि होती है?
उत्तर- नहीं.

प्रश्न- क्या मोक्ष कोई लोक है जहाँ मुक्त व्यक्ति रहते हैं?
उत्तर- नहीं.

प्रश्न- क्या मोक्ष आत्मा का होता है?
उत्तर- नहीं.

प्रश्न- क्या मोक्ष शरीर का होता है?
उत्तर- नहीं.

प्रश्न- क्या मोक्ष में स्वर्ग से ज्यादा सुख होता है.
उत्तर- नहीं.

प्रश्न- क्या मोक्ष गया व्यक्ति वहां से हमको देख सकता है?
उत्तर- नहीं. मोक्ष कोई स्थान नहीं है.

प्रश्न- फिर मोक्ष क्या है?
उत्तर- मोक्ष जिसे मुक्ति, कैवल्य, निर्वाण भी कहते हैं के विषय में बड़ी भ्रांतिया पैदा हो गयी हैं. जिन्होंने  मोक्ष पाया वहां भ्रान्ति नहीं है पर जिन्होंने कहा और लिखा वह ढंग से न समझ पाए न कह पाए. सरल बात को क्लिष्ट कर दिया.
मोक्ष का अर्थ है अज्ञान से मुक्ति. अविद्या का नाश. केवल ज्ञान (सत्य बोध).

प्रश्न- अविद्या का नाश कैसे होता है?
उत्तर- जब  मनुष्य को अपने जन्म जन्मान्तरों की याद आजाती है और भविष्य स्पष्ट हो जाता है.

प्रश्न- मोक्ष में होता क्या है?
उत्तर- मेरा भाव समाप्त हो जाता है. मेरा शरीर, मेरा देश, मेरा धर्म, मेरा ज्ञान, मेरी विद्या, मेरी संपत्ति, मेरा पद, मेरी पत्नी, मेरा पुत्र, मेरे माता पिता आदि भाव नष्ट हो जाता है.दूसरे शब्दों में मोह नष्ट हो जाता है.

प्रश्न- मोक्ष  किसे प्राप्त होता है
उत्तर- मोक्ष जीव का होता है. या  कहें मोक्ष स्वभाव का होता है. मोक्ष में जीव स्वभाव नष्ट हो जाता है और उसकी जगह ईश्वरी स्वभाव आ जाता है.

प्रश्न- मोक्ष प्राप्त जीव का क्या जन्म मरण होता है?
उत्तर- हाँ और नहीं. मोक्ष प्राप्त व्यक्ति सामान्य लोगों को मरते और जन्म लेते दिखाई देते है. इसलिए हाँ.
मोक्ष प्राप्त व्यक्ति अपनी इच्छा से जन्म लेते है और अपनी इच्छा से देह छोड़ते हैं. इस कारण उनका न जन्म है न मृत्यु.

Tuesday, March 3, 2020

क्या ईश्वर अवतार लेते हैं ?


प्रश्न- क्या ईश्वर अवतार लेते हैं ?

उत्तर- अवतरण केवल ईश्वर का ही होता है. शेष जीव जन्म और पुनर्जन्म लेते हैं

प्रश्न - अवतरण और पुनर्जन्म में क्या अंतर है?

उत्तर- त्रिगुणात्मक प्रकृति को आधीन कर जो जन्म लेता है वह अवतरण है इसलिए अवतार कहा जाता  है. ईश्वर का अवतरण होता है. जो त्रिगुणात्मक प्रकृति के आधीन होकर जन्म लेते हैं वह जन्म और पुनर्जन्म है सामान्य मनुष्य या जीव का जन्म अथवा पुनर्जन्म होता है.

प्रश्न  -  कई लोगों को पिछले जन्म की याद होती है क्या वह अवतरण नहीं है?


उत्तर- नहीं वह अवतरण नहीं है. अवतरण का अर्थ है अपनी इच्छा से अपनी प्रकृति को आधीन कर जन्म लेना. कुछ मनुष्यों के अवचेतन मन का कुछ भाग अधिक सक्रिय होता है इसलिए उनको अपने पिछले जन्म की कुछ या अधिक जानकारी याद रहती है. 

प्रश्न- त्रिगुणात्मक प्रकृति को किस प्रकार आधीन किया जा सकता है?

उत्तर- अज्ञान को नष्ट कर त्रिगुणात्मक प्रकृति को आधीन किया जा सकता है. जो पूर्ण चैतन्य हो गया हो, जिसकी बेहोशी नष्ट हो गयी हो. जो सदा होश में रहता हो. ऐसा बोध युक्त पुरुष ईश्वर हो जाता है. वह अपनी इच्छा से देह त्याग करता है और अपनी इच्छा से जन्म लेता है. उसके ऊपर प्रकृति का प्रभाव नहीं पड़ता है.

प्रश्न- क्या बोध ही  ईशत्व का मार्ग  है.

उत्तर- हाँ बोध ही ईशत्व का मार्ग  है. बोध के बाद ही सत्य को देखने वाली बुद्धि प्रकट होती है.

Monday, March 2, 2020

परमात्मा का क्या स्वरुप है?

प्रश्न - परमात्मा का क्या स्वरुप है?

उत्तर- परमात्मा के स्वरूप
परमात्मा जो सबका मूल है जो सबकी आत्मा है, इस सृष्टि का मूल तत्व है वह किसी के द्वारा न जाना जा सकता है न जाना गया है. यहां तक कि परमात्मा और उसकी मूल प्रकृति को भी कोई नहीं जानता इन स्थितियों के बाद तीसरी स्थिति में परमात्मा और प्रकृति में अहम उत्पन्न होता है जिसे हम शब्द ब्रह्म कहते हैं. चौथी स्थिति में  अहम त्रिगुणात्मक प्रकृति के माध्यम से स्पष्ट होता है, पांचवीं स्थिति में अहम् पुरुष (जीव ) रूप में प्रकृति को स्वीकार कर लेता है. यह पाँचों  स्थितियां अनादि हैं. इसका तात्पर्य है की पहली स्थिति से लेकर पांचवीं स्थिति सब  एक साथ ही उत्पन्न होती हैं.
इसके बाद सृष्टि उत्त्पन्न होती है.
सृस्टि त्रिगुणात्मक है और सदा जीव युक्त है. सृष्टि के प्रत्येक अणु-परमाणु में जीव विद्यमान है.
इस जीव के साथ जैसी त्रिगुणात्मक प्रकृति है यह वैसा है. यह जीव सदा बढ़नेवाला और फैलने वाला है. इसलिए अपने विशुद्ध रूप में ब्रह्म कहलाता है और प्रकृति को स्वीकार कर जीव कहलाता है.यह जीव ही सृष्टा है, पालन कर्ता है और संहारक है. यह जैसी इच्छा करता है वैसा हो जाता है. यह प्रकृति को स्वीकार कर सृष्टि उत्त्पन्न करता है और फिर सृष्टि में जन्म लेता है. यह जड़ चेतन सब में,सब जगह  व्याप्त है.परमात्मा इसी रूप में सर्वत्र व्याप्त है.
जड़ से यह चेतन हो जाता है और निरंतर विकास करता हुआ एक कोशीय जीव से बहु कोशीय जीवक्रमशः विभिन्न योनियों से गुजरता हुआ मनुष्य हो जाता है. फिर शुरू होती है मनुष्य की विकास यात्रा. यहाँ जो जितना बेहोश  है वह उतना नीचे जो जितना होश  में है वह उतना ऊपर. मनुष्य - श्रेष्ठ मनुष्य - महा मानव - अधि मानव-  देवत्त्व -  सिद्ध - ईश्वर जो कालान्तर में अवतरित होकर इस धरती में आता है जैसे श्री राम, श्री कृष्ण आदि. इस प्रकार सुगुण और साकार ईश्वर में ही हम परमात्मा की दिव्यता पाते हैं. परमात्मा को त्रिगुणात्मक प्रकृति द्वारा ही जा जा सकता है और मानव देह में वह अपनी दियताओं के साथ चमकता है. यही सत्य है.

BHAGAVAD-GITA FOR KIDS

    Bhagavad Gita   1.    The Bhagavad Gita is an ancient Hindu scripture that is over 5,000 years old. 2.    It is a dialogue between Lord ...