Friday, June 27, 2014

तेरी गीता मेरी गीता – 106 - बुद्ध - बसंत

आत्मा, परमात्मा, धर्म चर्चा पर उनका विशवास नहीं था. वह धर्म पालन पर जोर देते थे. साधना करते करते स्वयं सत्य अनुभूत करना उनका मार्ग था.
प्रश्न-बुद्ध और बौद्ध दर्शन के विषय में आप का क्या अभिमत है?
उत्तर- बुद्ध और बौद्ध दर्शन के विषय में आप क्या जानना चाहते हैं.
प्रश्न-क्या बुद्ध, भगवान अथवा परमात्मा को मानते थे? 
उत्तर- बौद्ध दर्शन के अनुसार नहीं.
प्रश्न- क्या बुद्ध आत्मा को मानते थे? 
उत्तर - बौद्ध दर्शन के अनुसार नहीं. बौद्ध दर्शन के अनुसार आत्मा के विषय में उनका मत अनात्मवाद कहलाता है. बौद्ध ग्रंथों में यह भी प्रसंग है कि जब उनसे पूछा गया क्या आत्मा है वह चुप रहे. फिर पूछा गया क्या आत्मा नहीं है वह फिर चुप रहे. फिर पूछा गया क्या आत्मा है भी और नहीं भी है. वह फिर भी चुप रहे.
प्रश्न- धर्म सिद्धांतों के विषय में आप क्या कहते हैं?
उत्तर- धर्म साधना हेतु बुद्ध ने सम्यक मार्ग दिया. इसे सम्यक अष्टांगिक मार्ग कहते हैं.
वह है सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाणी, सम्यक कर्म, सम्यक व्यायाम, सम्यक आजीवका सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि.
बौद्ध दर्शन इसे नया मार्ग कहता है. वास्तव में यह प्राचीन पद्धति है. बुद्ध से कई हजार वर्ष पूर्व भगवदगीता में श्री भगवान कृष्ण कहते है-
नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः ।
न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ।16।

यह योग न बहुत खाने वाले का और न बिल्कुल खाने वाले का तथा न बहुत शयन करने वाले का न अधिक जागने वाले का सिद्ध होता है। अर्थात सोना जागना, खाना पीना नियमित और सम्यक होना चाहिए तभी योग का अधिकारी होता है।

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु ।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा ।17।

जिसका आहार विहार, चेष्टाएं, कर्म, जागना सोना सभी यथायोग्य अर्थात सम्यक हैं, ऐसे संयमित पुरुष का दुखों का नाश करने वाला योग सिद्ध होता है।
प्रश्न- क्या बुद्ध भगवान् थे?
उत्तर- बौद्ध दर्शन के अनुसार नहीं. हिन्दुओं के अनुसार भगवान् थे और हैं.
प्रश्न- आपके अनुसार क्या थे?
उत्तर- मेरे अभिमत में ज्ञानी मुक्त पुरुष थे जिसने अपनी वासनाओं को क्षय कर दिया था.
प्रश्न- क्या बुद्ध को बोध प्राप्त हुआ था?
उत्तर- बोध सभी मनुष्यों में होता है. अंतर केवल मात्रा का है. बुद्ध ने किस मात्रा में बोध प्राप्त किया यह वही अनुभव कर सकते हैं. यह गूंगे का गुड़ है.
प्रश्न- बुद्ध ने निर्वाण के विषय में क्या कहा था?
उत्तर- बुद्ध ने वास्तव में क्या कहा था यह तो बताया नहीं जा सकता परन्तु जैसा बौद्ध ग्रंथों में वर्णित है यदि वह निर्वाण है तो उसे प्राप्त करने से कोइ लाभ नहीं.
प्रश्न- ऐसा क्या लिखा है?
उत्तर-  बौद्ध ग्रंथों के अनुसार बुद्ध आत्मा को नहीं मानते व परमात्मा को भी नहीं मानते. वह संस्कारी मनुष्य का जन्म और पुनर्जन्म मानते है.
निर्वाण प्राप्त व्यक्ति मृत्यु के बाद यदि संसार में विलीन हो जाता तो फिर इस निर्वाण से क्या लाभ.
ग्रन्थों में यह भी उल्लेख है कि निर्वाण प्राप्त मृत्यु के बाद शरीर में रहते हैं.
बुद्ध दर्शन चार तत्त्वों से बना शरीर मानता है जो मृत्यु के बाद नष्ट हो जाता है. चारों तत्त्व अपने अपने स्थान में विलीन हो जाते हैं. फिर किस शरीर में रहते हैं?
यह भी वृत्तांत है कि जब बुद्ध से पूछा गया म्रत्यु के बाद वह कहाँ रहंगे?
बुद्ध का ऊतर था मौन.
सारिपुत्र ने महाकाश्यप से पूछा. क्या तथागत मरणांतर रहते हैं?
बुद्ध ने यह व्याकृत नहीं किया 
क्या तथागत मरणांतर नहीं रहते हैं?
बुद्ध ने यह भी व्याकृत नहीं किया 
क्या तथागत मरणांतर रहते भी हैं और नहीं भी? 
रहते हैं.
बुद्ध ने यह भी व्याकृत नहीं किया.
अंबेडकर बुद्ध दर्शन की व्याख्या करते हुए लिखते हैं. 
परा प्राकृतिक में विश्वास अधर्म है. 
ईश्वर में विश्वास अधर्म है.
आत्मा में विश्वास अधर्म है.
यज्ञं में विश्वास अधर्म है.
कल्पनाश्रित विश्वास अधर्म है.
धार्मिक पुस्तकों का वाचन अधर्म है.
धर्म की पुस्तकों को गलती से परे मानना अधर्म है.
प्रश्न – बुद्ध के विषय में आप अपना मत बताएं?
उत्तर-मेरा कहना है बौद्धों ने बुद्ध के साथ नाइंसाफी की है और उनके मार्ग को इस प्रकार रख दिया है कि लगता है बुद्ध चार्वाक, सांख्य दर्शन और वेदान्त का मिलाजुला रूप हैं. उनका अनात्मवाद चार्वाक दर्शन का प्रभाव है तो साधन मार्ग भगवद्गीता से प्रभावित है. वास्तविक सत्य यह है कि बुद्ध एक महान ज्ञानी पुरुष थे. वह साधना पर जोर देते थे. आत्मा, परमात्मा, धर्म चर्चा पर उनका विशवास नहीं था. वह धर्म पालन पर जोर देते थे. साधना करते करते स्वयं सत्य अनुभूत करना उनका मार्ग था. इसलिए किसी के द्वारा आत्मा, ईश्वर, निर्वाण म्रत्यु के बाद की स्थिति पर वह चुप हो जाते थे जिसे उनके अनुयाइयों ने गलत समझ लिया.  

Friday, February 21, 2014

गीता- तेरी गीता मेरी गीता - 105 - समाधि - बसंत

प्रश्न- समाधि क्या है ? क्या यह प्राप्त की जा सकती है? इसके लक्षण क्या हैं?

उत्तर-  समाधि दो शब्दों से मिलकर बना है सम और धी अर्थात बुद्धि का सम हो जाना. किसी भी जीव की बुद्धि तीन अवस्थाओं में  रहती है १- क्रियाशील अवस्था  २-सम अथवा स्थिर अवस्था ३- मृत अवस्था. सामान्यतः जीव में गर्भावस्था से ही बुद्धि क्रियाशील होती है और जीवन पर्यन्त रहती है. मृत्यु होते ही यह मृत हो जाती है.
इन दोनों के बीच की अवस्था है सम अथवा स्थिर बुद्धि. यह  सतत साधना से प्राप्त की जा सकती है. पूर्ण स्थिर बुद्धि पूर्ण समाधि है . यदि बुद्धि स्थिर कम है तो बुद्धि की स्थिरता के आधार पर समाधि. यह समाधि  भिन्न भिन्न साधकों में अलग अलग स्थिति की होती है. इसे  मात्रात्मक  समाधि कह सकते हैं. लगभग 50% बुद्धि स्थिर हो जाने पर साधक की स्वास गहरी और मंद हो जाती है. साधक आनंद में मगन रहता है. कोई दूसरा व्यक्ति साधक को हिलाकर, उसके कान में उसका नाम लेकर अथवा ॐ का उच्चारण कर उसे सामान्य स्थिति में ला सकता है. इसके बाद बुद्धि जितनी अधिक स्थिर होने लगती है स्वास उतना मंद हो जाता है और साधक उतना अधिक स्थिर और निश्चल हो जाता है.
पूर्ण समाधि में बुद्धि पूर्ण रूपेण रुक जाती है. साधक  पूर्ण स्थिर और निश्चल हो जाता है. स्वास बंद हो जाती है. नाड़ी और ह्रदय की गति बंद हो जाती है. इस स्थिति में शरीर के सभी हिस्से जीवित और स्थिर रहते हैं. केवल वह अपना कार्य बंद कर देते हैं. शरीर के अंगों का क्षय नहीं होता. वह समाधि से पूर्व स्थिति की तरह स्थिर हालत में रहते हैं.
इसे हम गहरी नीद जिसे सुसुप्ति कहते हैं से समझ सकते हैं. सुसुप्ति में मस्तिष्क न क्रियाशील होता है न मृत होता है. इसी प्रकार पूर्ण समाधि में शरीर के सभी अंग न क्रियाशील होते हैं न मृत होते हैं. सभी अंग स्थिर दशा में रहते हैं.
पूर्ण समाधि दो प्रकार की होती है.संकल्प समाधि और निर्विकल्प समाधि. संकल्प समाधि में साधक अपने संकल्प के साथ पुनः चेतन और सक्रिय हो जाता है. निर्विकल्प समाधि.में साधक दूसरे के शास्त्र सम्मत प्रयासों द्वारा पुनः चेतन और सक्रिय होता है. इसमें मुख्यतः समाधिस्थ पुरुष को प्रार्थना द्वारा जगाने का प्रयास किया जाता है.

प्रश्न- समाधि से क्या लाभ हैं ?
उत्तर- समाधि की स्थिति के अनुसार साधक दिव्यता प्राप्त कर लेता है, उसका रूपांतरण हो जाता है, वह बोध स्वरुप हो जाता है. यदि समाधि के पश्चात उक्त स्थिति न दिखाई दे तो समझना चाहिए कि वह मात्र कोई शारीरिक क्रिया कर रहा था. इसे जड़ समाधि कहते हैं. यह एक प्रकार से नीद अथवा मूर्छा के सामान स्थिति है.

प्रश्न- नींद और समाधि में क्या अंतर है?
उत्तर- नीद, मूर्छा अथवा जड़ समाधि के बाद व्यक्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता है. वह जैसा कल था वैसा ही रहता है. क्रोधी व्यक्ति क्रोधी,लालची व्यक्ति लालची, कामी व्यक्ति कामी, सज्जन व्यक्ति सज्जन रहता है. उसकी बुद्धि में कोई परिवर्तन नहीं आता. वास्तविक समाधिस्थ पुरुष का समाधि की स्थिति के अनुसार रूपांतरण हो जाता है. पूर्ण समाधि प्राप्त व्यक्ति सृष्टि के सभी रहस्यों को जान लेता है. सभी तत्त्वों पर उसका अधिकार हो जाता है. उसका मस्तिष्क 100% क्रियाशील हो जाता है.

BHAGAVAD-GITA FOR KIDS

    Bhagavad Gita   1.    The Bhagavad Gita is an ancient Hindu scripture that is over 5,000 years old. 2.    It is a dialogue between Lord ...