Sunday, February 24, 2013

तेरी गीता मेरी गीता -उस पूर्ण पुरुष को किस प्रकार कहा जा सकता है?

प्रश्न - उस पूर्ण पुरुष को किस प्रकार कहा जा सकता है?

उत्तर-
मैं चेतन का कारण हूँ
मैं विचार का कारण हूँ.
मैं धारण करने की शक्ति का कारण हूँ.
मैं मृत्यु का कारण हूँ.
मैं जीवन का कारण हूँ.
मैं स्थिति का कारण हूँ.
मैं ज्ञान और अज्ञान का कारण हूँ.
मैं सृष्टि का कारण हूँ.
मैं प्रकृति का कारण हूँ.
मैं पदार्थ का कारण हूँ.
मैं समय का कारण हूँ..
मैं वेद का कारण हूँ.
मैं शरीर का कारण हूँ.
मैं ब्रह्माण्ड का कारण हूँ.
मैं अन्तरिक्ष का कारण हूँ.
मैं बीज का कारण हूँ.
मैं बुद्धि का कारण हूँ.
मैं स्मृति का कारण हूँ.
मैं क्रिया का कारण हूँ.
मैं प्रत्येक अणु-परमाणु का कारण हूँ.
मैं कारण का भी कारण हूँ.
सबका कारण होते हुए भी मैं उनमें नहीं हूँ.
मैं पूर्ण होते हुए पूर्णता का कारण हूँ.
मैं विशुद्ध, शांत और पूर्ण ज्ञान हूँ.

तेरी गीता मेरी गीता - 23 - बसंत

प्रश्न- आप कहते हैं प्रत्येक प्राणी अथवा पदार्थ की प्रकृति उसका स्वभाव है फिर मुक्ति कैसे संभव है?

यह प्रकृति, पुरुष की निस्वार्थ सेवा और भोग के लिए सदा तत्पर रहती है. इसके पुरुष के साथ सम्बन्ध को उस सांसारिक स्त्री के आचरण से समझाया जा सकता है जो अपने पति अथवा प्रेमी को तन मन धन से चाहती है. जो अपने पति अथवा प्रेमी के गुण दोष नहीं देखती. वह अच्छा हो या बुरा उसे अपना ईश्वर अथवा स्वामी मानकर सदा उसकी सेवा और उसके भोग के लिए तत्पर रहती है. सदा उसका कल्याण चाहती है. इसी कारण प्रकृति पुरुष के भोग के लिए भिन्न भिन्न गुण के पदार्थ और साधन नित जुटाती है. वह पुरुष के गुण दोष पर विचार नहीं करती. वह उसके  संकल्प और इच्छा के अनुसार पदार्थ और परिस्थिति जुटाती  है जैसे प्रेम के लिए प्रेमी, वासना के लिए नारी अथवा नर, शराबी के लियए शराब, जुआरी के लिए जुआ, किसान के लिए खेत और बीज, लोभी के लिए धन, सन्यासी के लिए वैराग्य, योगी के लिए योग, बच्चे के लिए माता, पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति आदि.यह त्रिगुणात्मक प्रकृति ही पंच भूत होते हुए पुरुष के लिए लिंग (सूक्ष्म शरीर ) और देह का पदार्थ बनती है.
इसी प्रकार पुरुष का कल्याण चाहते हुए उसके मोक्ष के लिए उसे दुःख-सुख, कष्ट, हानि-लाभ महसूस कराती है और रोग, शोक, यश, अपयश, जीवन मरण का खेल रचती है. संसार के दुःख  निवृत्ति के लिए बार बार इन परिस्थितियों को पैदा करती है जिससे पुरुष खिन्न होकर संसार से वैराग्य को प्राप्त हो और आत्मज्ञान प्राप्त कर सके.

प्रश्न - प्रकृति पुरुष का कल्याण क्यों चाहती  है और क्यों उसके भोग के लिए भिन्न भिन्न गुण के पदार्थ और साधन नित जुटाती है?

उत्तर-पूर्ण विशुद्ध ज्ञान की शांत अवस्था को अव्यक्त कहा गया है. इस अव्यक्त अवस्था में शब्द (विचार ) पैदा हुआ . इस शब्द - अस्मिता बोध जो बिना किसी आधार के स्वयं पैदा हुआ था ने अनंत निराकार आकार ग्रहण किया. यह विराट पुरुष कहलाया. अस्मिता बोध के समय उत्पन्न क्रिया शक्ति भिन्न भिन्न ज्ञान की मात्रा के कारण तीन गुणों में बदल गयी. यह तीन गुण सत्व, रज, तम कहलाते है. सम्पूर्ण सृष्टि त्रिगुणात्मक है. किसी भी प्राणी अथवा पदार्थ में ज्ञान सत्व, क्रिया रज, जड़ता अथवा अज्ञान तम जाने जाते हैं.
अव्यक्त अवस्था में शब्द (विचार - अस्मिता बोध)  होते ही चेतन्य का जन्म हुआ. विराट चेतन्य  के परमाणुओं में बंट जाने से जीव (विराट पुरुष का अंश होने से यह भी पुरुष कहलाता है) सृष्टि हुई और त्रिगुणात्मक प्रकृति के मिलने से भिन्न भिन्न गुण विचार के अनुसार प्राणी और पदार्थ उत्पन्न हुए.
अतः स्पष्ट है कि पुरुष की प्रकृति पुरुष का कल्याण इसलिए चाहती  है कि विशुद्ध ज्ञानमय  पुरुष  की क्रिया शक्ति पुरुष का अनादि और स्वाभाविक उत्पन्न गुण हैं जो सदा पुरुष के लिए ही है.
इसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि ज्ञान अज्ञान एक ही तत्त्व के  दो रूप हैं इस कारण प्राणी और पदार्थ में यह एक दूसरे की पूर्ती करते हैं एक दूसरेका साधन बनते है जैसे अज्ञान ज्ञान का ही एक रूप है और अज्ञान ज्ञान के लिए साधन बनता है.

Wednesday, February 20, 2013

तेरी गीता मेरी गीता- 22- बसंत



प्रश्न- कृपया एक लाइन में बताने का कष्ट करें कि ईश्वर क्या है?
उत्तर- पूर्ण विशुद्ध ज्ञान जो जड़ को चेतन और चेतन को जड़ करने में समर्थ है.
प्रश्न- सृष्टि क्या है?
उत्तर-जड़ और चेतन का संयोग सृष्टि है.
प्रश्न- चेतन क्या है?
उत्तर-ज्ञान के साथ क्रिया शक्ति.
प्रश्न- जड़ क्या है?
उत्तर-- क्रिया शक्ति का अभाव अथवा न्यूनता जड़ है.
प्रश्न-.अभाव अथवा न्यूनता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- सृष्टि में पूर्ण जड़ कुछ है ही नहीं, इसलिए प्राणी अथवा पदार्थ सापेक्ष रूप से जड़ होते हैं.
प्रश्न- मोक्ष क्या है?
उत्तर- अपना नियंता हो जाना मोक्ष है.
प्रश्न- ईशत्व क्या है?
उत्तर- सृष्टि की सम्पूर्ण दिव्यताओं का एक साथ होना ईशत्व  है.
प्रश्न- धर्म क्या है?
उत्तर-धर्म  का अर्थ है जिसने धारण किया है और जिसको धारण किया जाता है.
प्रश्न- जिसने धारण किया है वह कोन है?
उत्तर- विशुद्ध ज्ञान स्वरुप परमात्मा ने सृष्टि को धारण किया है अतः परमात्मा ही धर्म है.
प्रश्न- जिसको धारण किया जाता है वह कोन है?
उत्तर- स्वभाव.
प्रश्न- स्वभाव क्या है?
उत्तर- प्रत्येक प्राणी अथवा पदार्थ की प्रकृति उसका स्वभाव है.
प्रश्न- फिर हिन्दू, मुसलमान, ईसाई क्या हैं?
उत्तर- उनसे जाकर पूछो.
प्रश्न- आप क्या हैं?
उत्तर- यह आप की खोज का विषय है.

Monday, February 18, 2013

तेरी गीता मेरी गीता - 21- बसंत



प्रश्न -कृपया उदाहरण के साथ अपने निमालिखित कथन को स्पष्ट करें.
आस्मिता अथवा जीवात्मा जिस जिस पदार्थ का जो भाव है उसमें स्थित होकर उसी आकार का भासित होता है.
जीवात्मा जब जिस का संकल्प करता है वैसा आकार धारण कर लेता है.
यह पञ्च भूत नहीं है पर पंचभूतात्मक भासित होता है.
यह न स्थूल है न सूक्ष्म है अज्ञान अथवा भ्रम से जहाँ जिस कल्पना का विस्तार होता है वहां वैसा तत्काल अनुभव होने लगता है.

उत्तर- एक प्रो मीनाक्षी नाम की स्त्री है. वह एक जगह बेटी है, दूसरी जगह बहन, तीसरी जगह माँ, चौथी जगह प्रोफेसर, पांचवी जगह मित्र, छठी जगह शत्रु,  सातवीं जगह उदासीन, आठवीं जगह पत्नी  आदि. एक शरीर में अनेक भाव रूप, तदनुसार कार्य और व्यवहार जिसके कारण हो रहा है वह जीवात्मा है. जीवात्मा को भ्रम हो गया है कि वह मीनाक्षी है. वह मीनाक्षीमय  हो गया है. जीवात्मा के अज्ञान  के कारण प्रो मीनाक्षी का भ्रम होने से उसके भाव और विचार के अनुसार शरीर और इन्द्रियाँ,भिन्न भिन्न भूमिका कर रहे है. मीनाक्षी हुआ जीवात्मा जन्म से लेकर अब तक यह  क्षण क्षण में भिन्न भिन्न आकार ले रहा है. इसके कार्य को देखकर ऐसा लगता है की जो कुछ कर रहा है हमारा पंचभूतात्मक शरीर कर रहा है. पर क्या पंचभूतात्मक मृत देह ऐसा कर पाती है?
अब इसे और बड़े रूप में देखते हैं, यह जो मीनाक्षी की देह में है वह  कहीं अन्य देह में कोई  विशेष नाम का नर है कहीं नारी है, कहीं गाय है, कहीं मच्छर है, कहीं तितली बन कर उड़ रहा है, कहीं पेड़ बन कर खड़ा है. भ्रम वश उसे भिन्न भिन्न अस्मिता की प्रतीति हो रही है. वह अपना वास्तविक स्वरुप भूल गया है. यह जैसा जैसा  संकल्प करता है, भ्रम से जैसी कल्पना का विस्तार होता है वहां वैसा अनुभव होने लगता है. मच्छर के रूप में यह अपने को मच्छर समझता है तो गाय की देह में गाय. इसी प्रकार माता ,पिता, पुत्र ,पुत्री ,पति, पत्नी बन जाता है
अतः आप को स्पष्ट हो गया होगा कि यह न स्थूल है न सूक्ष्म है अज्ञान अथवा भ्रम से जहाँ जिस कल्पना का विस्तार होता है वहां वैसा तत्काल अनुभव होने लगता है.

Sunday, February 17, 2013

तेरी गीता मेरी गीता -20- बसंत




प्रश्न- सृष्टि का मूल तत्व क्या है?
उत्तर - विज्ञान मानता है की पदार्थ से सृष्टि हुई है पर  उसके  पास  इस  बात  का  उत्तर नहीं है कि इस जड़ पदार्थ में ज्ञान और चैतन्य कहाँ से आया. इसलिये सृष्टि का कारण न पदार्थ है न हो सकता है.
पूर्ण ज्ञान किसी भी स्वरुप में बदलने का स्वाभाविक गुण रखता है, वह जड़ हो सकता है, चेतन हो सकता है और दोनों का मिला जुला रूप हो सकता है. सरल और संक्षेप में पूर्ण विशुद्ध ज्ञान के अस्मिता बोध से ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति का जन्म हुआ. चेतन का अस्मिता बोध तदन्तर विचारो का घनीभूत होना पदार्थ का कारण है. इन के मात्रा परिणाम से जड़ चेतन की सृष्टि हुई है. पदार्थ से सृष्टि आधुनिक विज्ञान पूर्ण रूप से सुस्पष्ट करता है, परन्तु उसे इस अंतिम सत्य को स्वीकार करना होगा कि पदार्थ और उसका प्रत्येक परमाणु ज्ञानमय है.

प्रश्न- जीवात्मा का क्या स्वरुप है.
उत्तर- अस्मिता की प्रतीति जीव भाव है. अस्मिता की प्रतीति एक निराकार आकार ले लेती है जो जीवात्मा कही गयी है. अज्ञान (जड़त्व) के कारण इस अस्मिता की प्रतीति का शरीर से अलग हो जाना मृत्यु है. ज्ञान के कारण इस जन्म जन्मान्तर  की अस्मिता का बोध होना मोक्ष है.

प्रश्न-  कृपया इसे विस्तार से बताएं?
उत्तर-एक सामान्य व्यक्ति या प्राणी की जब मृत्यु होती  है तो उसकी अस्मिता अज्ञान के कारण खो जाती है, उसे अपनी अस्मिता की सुध नहीं रहती है. अज्ञान के कारण उसका अस्मिता बोध समाप्त हो जाता है. कालांतर में ज्ञान के प्रस्फुरण से उसे अपनी प्रकृति और वासना का आभास होता है, इसकी पूर्ती के लिए उसका जन्म होता है.
पूर्ण बोध प्राप्त व्यक्ति की जब मृत्यु होती है या वह देह त्यागता है तो वह ज्ञान के साथ देह से अलग होता है उसका अस्मिता बोध बना रहता है, यही नहीं उसे जन्म जन्म का अस्मिता बोध रहता है. वह अपनी देह में देखता है कि ज्ञान के परमाणु किस प्रकार अपना स्वरुप बदल रहे हैं, शरीर जड़ हो रहा है. अस्मिता बोध के कारण वह अपनी इच्छा से जन्म लेता है.
जिस व्यक्ति को अल्प व मध्यम बोध हुआ है, उसको अल्प अस्मिता बोध कुछ समय तक रहता है जो समय के साथ खो जाता है. कालांतर में ज्ञान के प्रस्फुरण से उसे अपनी प्रकृति और वासना का आभास होता है, इसकी पूर्ती के लिए उसका विद्यावान लक्ष्मीवान अथवा योगियों के घर में जन्म होता है. यहाँ वह पुनः बोध की प्राप्ति के लिए अनायास अग्रसर होता है.

प्रश्न- पशु, वृक्ष आदि की अस्मिता के विषय में क्या कहंगे?
उत्तर- अज्ञान (जड़त्व) के कारण जितना अस्मिता का प्रस्फुरण कम होगा उतना जड़त्व दिखाई देता है. पशु, कीट, वृक्ष,पत्थर आदि में जड़त्व क्रमश अधिक होता जाता है. ज्ञान के कारण जितना अस्मिता बोध होगा उतनी दिव्यता होगी.

प्रश्न- जीवात्मा और सृष्टि की उत्पत्ति को विस्तार से बताएं.
उत्तर- जीवात्मा को जानने  के लिए सृष्टि की उत्पत्ति को जानना आवश्यक है. सृष्टि  का मूल तत्त्व ज्ञान है इस ज्ञान में चेतन पैदा हुआ इसे अस्मिता की प्रतीति हुई अस्मिता की प्रतीति फैलती गयी इसे शब्द कहा गया है. यह शब्द (विचार) फैलता  गया और इसके फैलने के साथ साथ आकाश बनता और बढता गया. इसलिए शब्द आकाश की तन मात्रा है. अस्मिता की प्रतीति के साथ भिन्न भिन्न विचार पैदा होते गए और भिन्न भिन्न शब्दों के विस्तार के साथ अनंत आकाश का जन्म हुआ. इस समय एक तत्त्व तीन तत्त्वों में विभक्त हो गया. एक मूल तत्त्व पूर्ण विशुद्ध ज्ञान (परमात्मा) दूसरा शब्द (ज्ञान शक्ति) तीसरा क्रिया शक्ति.
अस्मिता  और  विचारों   के  घनीभूत  होने से पदार्थ  का निर्माण  हुआ.
ज्ञान और क्रिया शक्ति की दो अंतिम परिणित हुई एक चेतन दूसरा जड़ (जहाँ चेतन अनुपस्थित है और क्रिया शक्ति शून्यवत है.) चेतन दूसरा जड़ इन दोनों का संयोग प्राणी  हैं.
प्राणी में (प्राज्ञ ज्ञान- ज्ञान शान्त रूप से स्थित केवल आनन्द स्वरूप), तेजस ज्ञान-(स्वप्नवतज्ञान), वैश्वानर ज्ञान उतरोतार अवस्था में दिखाई देता है, मृत्यु में जड़ और चेतन अलग हो जाते है परन्तु मूल अवस्था विशुद्ध ज्ञान जो अव्यक्त है दोनों में सदा रहता है, बस अंतर केवल इतना है की जड़ देह चेतन रहित हो जाती है और चेतन अव्यक्त हो जाता है, चेतन में स्व बोध के कारण उत्पन्न क्रिया शक्ति और ज्ञान शक्ति की मात्रा ही जीवात्मा का कारण है. इसे इन तीन तत्वों को हिन्दू दर्शन ब्रह्म, जीव और माया अथवा प्रकृति कहता है. यह विचार ही जीव है. भिन्न भिन्न  विचार उठते गए भिन्न जीव (शब्द बीज) बनते गए.

प्रश्न- मृत्यु क्या है?
उत्तर- अज्ञान के कारण अस्मिता युक्त ज्ञान का देह से बीज रूप में अलग हो जाना जिसमें अस्मिता का भान खो जाता है मृत्यु है. ज्ञान के परमाणु जो चैतन्य थे, जड़ में बदलने लगते हैं.

प्रश्न- मोक्ष क्या है”
उत्तर- ज्ञान के कारण जन्म जन्मान्तर  की अस्मिता का बोध का हो जाना मोक्ष है. व्यक्ति अपना नियंता हो जाता है.

प्रश्न- ज्ञानी अज्ञानी की मृत्यु क्या एक सी है?
उत्तर- ज्ञानी अज्ञानी  की सुषुप्ति और मृत्यु एक सी दिखाई देती है परन्तु ज्ञानी जन्म जमांतर की अस्मिता का आभास नहीं खोता.ज्ञानी की अस्मिता सदा बोध के साथ बीज रूप में जाग्रत रहती है.
प्रश्न- क्या देह ज्ञान का विस्तार है?
उत्तर- ज्ञानी अज्ञानी की देह भी ज्ञान का विस्तार है, अस्मिता के अलग हो जाने पर जड़त्व के कारण यह कार्य नहीं कर सकती. यह समझ लीजिये कि मरा शरीर, सूक्ष्म शरीर, चेतना, मृत्यु, जीवन, जीवात्मा सभी ज्ञान का विस्तार हैं. मृत्यु देह में भी सभी ज्ञान के परमाणु मोजूद  रहते  हैं परन्तु वह मृत्यु के स्वभावानुसार शरीर को जड़ करने अथवा स्वरुप परिवर्तन का कार्य करते हैं.

संक्षेप में कुछ मत्वपूर्ण बातें समझ लीजिये.

सूक्ष्म शरीर जिसका कारण अस्मिता है ज्ञान के साथ एक बीज जो निराकार आकार वाला है का परिणाम है.
ज्ञान के परमाणु ही मृत्यु, जन्म, जीवन, स्थिति का कारण हैं.
यह ज्ञान व्यक्त रूप में दिखाई देता है और अव्यक्त  रूप में दिखाई नहीं  देता है.
आस्मिता अथवा जीवात्मा जिस जिस पदार्थ का जो भाव है उसमें स्थित होकर उसी आकार का भासित होता है.
जीवात्मा जब जिस का संकल्प करता है वेसा आकार धारण कर लेता है.
यह पञ्च भूत नहीं है पर पंचभूतात्मक भासित होता है.
यह न स्थूल है न सूक्ष्म है अज्ञान अथवा भ्रम से जहाँ जिस कल्पना का विस्ताएर होता है वहां वेसा तत्काल अनुभव होने लगता है.

प्रश्न- आत्म ज्ञान की क्या पहिचान है?
जन्म जन्म की अस्मिता का बोध हो जाता है.

प्रश्न- आत्म ज्ञान  केसे प्राप्त करें?
स्वयं प्रयास करना होगा. सदग्रंथ और ज्ञानी केवल मार्ग दर्शक हो सकते हैं. तुम्हारा केवल तुम ही उद्धार कर सकते हो. भगवद्गीता भी यही कहती है-
उद्धरेतआत्मनाआत्मनम
उपाय भी केवल दो ही है-
बुद्धि योग और अष्टांग योग. शेष सब इनके ही मिले जुले रूप हैं.बुद्धि योग में भी दृष्टा हो जाना सर्वोत्तम है.
स्वरुप की खोज में लग जाएँ.
          परमात्मा कल्याण करें.

Wednesday, February 6, 2013

तेरी गीता मेरी गीता -19- बसंत




प्रश्न- मैं की खोज क्यों जरूरी है?
उत्तर- मैं हूँ इसलिए स्वास अंदर जा रही है, बाहर आ रही है.
मैं हूँ इसलिए हृदय धक धक कर रहा है.
मैं हूँ इसलिए बुद्धि काम कर रही है.
मैं हूँ इसलिए आँख देख पा रही हैं, कान सुन पा रहे हैं, सुख दुःख शरीर और बुद्धि को अनुभव हो रहे हैं.
मैं हूँ इसलिए शरीर के अंग काम कर रहे हैं.
मैं हूँ इसलिए मैं ओर मेरा का भाव पैदा हो रहा है.
मैं हूँ इसलिए अनेकानेक विचार उत्पन्न हो रहे हैं.
मैं हूँ इसलिए मैं पिता हूँ.
मैं हूँ इसलिए मैं माता हूँ.
मैं हूँ इसलिए मैं पुत्र हूँ.
मैं हूँ इसलिए मैं पुत्री हूँ.
मैं हूँ इसलिए मैं पति हूँ.
मैं हूँ इसलिए मैं पत्नी हूँ.
मैं हूँ इसलिए संसार है.
मैं हूँ इसलिए सूर्य है.
मैं हूँ इसलिए ब्रह्माण्ड है.
मैं हूँ इसलिए मेरे द्वारा प्रति क्षण हजारों क्रियाएँ हो रही हैं.
यह मैं क्या है, कोन  है?
विचार करते रहिये, लग जाइए खोज में. उत्तर स्वयं मिलेगा.
  





Friday, February 1, 2013

तेरी गीता मेरी गीता - 18 - बसंत



प्रश्न - आप किस आधार पर  ब्रह्माजी को  पूर्ण ज्ञानमय पुरुष परमात्मा का 6.25 % कहते हैं.

उत्तर -श्रीमद भगवद्गीता का अध्याय दस का अंतिम श्लोक देखें. अपनी विभूतियों को बताते हुए श्री भगवान् कहते है-
अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन ।
विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत्‌ ।42-10।

है अर्जुन मेरी विभूतियों का अन्त नहीं है, मुझ अव्यक्त परमात्मा के एक अंश ने सम्पूर्ण जगत को धारण किया है। विश्व के कण कण में मैं आत्म रूप में स्थित हूँ, सभी विभूति मेरा ही विस्तार हैं। चर अचर में मैं ही व्याप्त हूँ। सबका कारण भी मैं ही परमात्मा हूँ।।42-10।
यहाँ  एकांशेन शब्द विशेष महत्व का है.
एकांशेन स्थितो जगत्‌
मेरे एक अंश  ने सम्पूर्ण जगत को धारण किया है। परम पूर्ण विशुद्ध ज्ञानमय परमात्मा को 16 कलाओं का मान गया है और उसके एक अंश ने सम्पूर्ण जगत अर्थात सृष्टि को को धारण किया है। 16 का एक अंश 6.25 % होता है.
अब इसी सन्दर्भ में श्रीमद भगवद्गीता का आठवाँ अध्याय देखें.  यहाँ श्री भगवान् कहते है-

अव्यक्ताद्व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे ।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके ।18-8।

भूतग्रामः स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते ।
रात्र्यागमेऽवशः पार्थ प्रभवत्यहरागमे ।19-8।

ब्रह्मा जी के दिन के प्रारम्भ होते ही अव्यक्त अर्थात निराकार सूत्रात्मा से चराचर भूत गण उत्पन्न होते हैं और जब रात्रि होती है तब उसी अव्यक्त सूत्रात्मा में सभी भूत लीन हो जाते हैं, पुनः माया (प्रकृति) के वश हुए रात्रि में प्रवेश तथा दिन के आगमन पर पुनः उत्पन्न होते हैं अर्थात परमात्मा की जीव शक्ति ही जन्म और लय का कारण है।

परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः ।
यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ।20-8।

परन्तु जो उस अव्यक्त जीवात्मा से भी अव्यक्त परब्रह्म परमात्मा है, वह समस्त भूतों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता अर्थात सभी जीवात्मा सहित ब्रह्मा जी भी उसी अव्यक्त परमात्मा में समा जाते हैं।

BHAGAVAD-GITA FOR KIDS

    Bhagavad Gita   1.    The Bhagavad Gita is an ancient Hindu scripture that is over 5,000 years old. 2.    It is a dialogue between Lord ...