Thursday, December 8, 2011

वेदान्त-vedant-अध्याय -17-विज्ञानमय कोश- मन बुद्धि चित्त अहँकार-Prof. Basant


विज्ञानमय कोश- मन बुद्धि चित्त अहँकार-Prof. Basant

मन बुद्धि चित्त अहँकार यह चारों अन्तःकरण के ही रूप हैं, दूसरे शब्दों में यह बुद्धि की अथवा ज्ञान की चार भिन्न भिन्न अवस्थाएँ हैं.
संशयात्मक बुद्धि मन कहलाती है.
निश्चयात्मक बुद्धि -बुद्धि है.
स्मरणात्मिका बुद्धि  चित्त है.
अभिमानात्मिका बुद्धि को  अहँकार कहते हैं.
आकाश वायु अग्नि जल और पृथ्वी के सात्विक अर्थात ज्ञानमय अंशों से मन बुद्धि चित्त अहँकार की उत्पत्ति बतायी गयी है.आकाश सात्विक अर्थात ज्ञानमय अंश  से श्रवण ज्ञान, वायु से स्पर्श ज्ञान, अग्नि से दृष्टि ज्ञान जल से रस ज्ञान और  पृथ्वी से गंध ज्ञान उत्पन्न होता है.
ये मन बुद्धि चित्त अहँकार चारों ज्ञान स्वरूप हैं इन्हें देव स्वरूप माना गया है.
पांच ज्ञानेन्द्रियों समेत बुद्धि के मिल जाने से विज्ञानमय कोश बनता है. मनुष्य के cns के अंदर विज्ञानमय कोश है. यह विज्ञानमय कोश ही व्यवहार करनेवाला है. यह अहं स्वाभव वाला  विज्ञानमय कोश जीव और संसार के समस्त व्यवहारों को करने वाला है. अच्छा बुरा सब यही करता है, यही सुख दुःख भोगता है. भिन्न भिन्न योनियों में जाता है. आत्मा की निकटता के कारण अत्यंत प्रकाशमय है. धर्म, कर्म, गुण, अभिमान एवम ममता आदि इस विज्ञानमय कोश में रहते हैं.

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