Sunday, February 17, 2013

तेरी गीता मेरी गीता -20- बसंत




प्रश्न- सृष्टि का मूल तत्व क्या है?
उत्तर - विज्ञान मानता है की पदार्थ से सृष्टि हुई है पर  उसके  पास  इस  बात  का  उत्तर नहीं है कि इस जड़ पदार्थ में ज्ञान और चैतन्य कहाँ से आया. इसलिये सृष्टि का कारण न पदार्थ है न हो सकता है.
पूर्ण ज्ञान किसी भी स्वरुप में बदलने का स्वाभाविक गुण रखता है, वह जड़ हो सकता है, चेतन हो सकता है और दोनों का मिला जुला रूप हो सकता है. सरल और संक्षेप में पूर्ण विशुद्ध ज्ञान के अस्मिता बोध से ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति का जन्म हुआ. चेतन का अस्मिता बोध तदन्तर विचारो का घनीभूत होना पदार्थ का कारण है. इन के मात्रा परिणाम से जड़ चेतन की सृष्टि हुई है. पदार्थ से सृष्टि आधुनिक विज्ञान पूर्ण रूप से सुस्पष्ट करता है, परन्तु उसे इस अंतिम सत्य को स्वीकार करना होगा कि पदार्थ और उसका प्रत्येक परमाणु ज्ञानमय है.

प्रश्न- जीवात्मा का क्या स्वरुप है.
उत्तर- अस्मिता की प्रतीति जीव भाव है. अस्मिता की प्रतीति एक निराकार आकार ले लेती है जो जीवात्मा कही गयी है. अज्ञान (जड़त्व) के कारण इस अस्मिता की प्रतीति का शरीर से अलग हो जाना मृत्यु है. ज्ञान के कारण इस जन्म जन्मान्तर  की अस्मिता का बोध होना मोक्ष है.

प्रश्न-  कृपया इसे विस्तार से बताएं?
उत्तर-एक सामान्य व्यक्ति या प्राणी की जब मृत्यु होती  है तो उसकी अस्मिता अज्ञान के कारण खो जाती है, उसे अपनी अस्मिता की सुध नहीं रहती है. अज्ञान के कारण उसका अस्मिता बोध समाप्त हो जाता है. कालांतर में ज्ञान के प्रस्फुरण से उसे अपनी प्रकृति और वासना का आभास होता है, इसकी पूर्ती के लिए उसका जन्म होता है.
पूर्ण बोध प्राप्त व्यक्ति की जब मृत्यु होती है या वह देह त्यागता है तो वह ज्ञान के साथ देह से अलग होता है उसका अस्मिता बोध बना रहता है, यही नहीं उसे जन्म जन्म का अस्मिता बोध रहता है. वह अपनी देह में देखता है कि ज्ञान के परमाणु किस प्रकार अपना स्वरुप बदल रहे हैं, शरीर जड़ हो रहा है. अस्मिता बोध के कारण वह अपनी इच्छा से जन्म लेता है.
जिस व्यक्ति को अल्प व मध्यम बोध हुआ है, उसको अल्प अस्मिता बोध कुछ समय तक रहता है जो समय के साथ खो जाता है. कालांतर में ज्ञान के प्रस्फुरण से उसे अपनी प्रकृति और वासना का आभास होता है, इसकी पूर्ती के लिए उसका विद्यावान लक्ष्मीवान अथवा योगियों के घर में जन्म होता है. यहाँ वह पुनः बोध की प्राप्ति के लिए अनायास अग्रसर होता है.

प्रश्न- पशु, वृक्ष आदि की अस्मिता के विषय में क्या कहंगे?
उत्तर- अज्ञान (जड़त्व) के कारण जितना अस्मिता का प्रस्फुरण कम होगा उतना जड़त्व दिखाई देता है. पशु, कीट, वृक्ष,पत्थर आदि में जड़त्व क्रमश अधिक होता जाता है. ज्ञान के कारण जितना अस्मिता बोध होगा उतनी दिव्यता होगी.

प्रश्न- जीवात्मा और सृष्टि की उत्पत्ति को विस्तार से बताएं.
उत्तर- जीवात्मा को जानने  के लिए सृष्टि की उत्पत्ति को जानना आवश्यक है. सृष्टि  का मूल तत्त्व ज्ञान है इस ज्ञान में चेतन पैदा हुआ इसे अस्मिता की प्रतीति हुई अस्मिता की प्रतीति फैलती गयी इसे शब्द कहा गया है. यह शब्द (विचार) फैलता  गया और इसके फैलने के साथ साथ आकाश बनता और बढता गया. इसलिए शब्द आकाश की तन मात्रा है. अस्मिता की प्रतीति के साथ भिन्न भिन्न विचार पैदा होते गए और भिन्न भिन्न शब्दों के विस्तार के साथ अनंत आकाश का जन्म हुआ. इस समय एक तत्त्व तीन तत्त्वों में विभक्त हो गया. एक मूल तत्त्व पूर्ण विशुद्ध ज्ञान (परमात्मा) दूसरा शब्द (ज्ञान शक्ति) तीसरा क्रिया शक्ति.
अस्मिता  और  विचारों   के  घनीभूत  होने से पदार्थ  का निर्माण  हुआ.
ज्ञान और क्रिया शक्ति की दो अंतिम परिणित हुई एक चेतन दूसरा जड़ (जहाँ चेतन अनुपस्थित है और क्रिया शक्ति शून्यवत है.) चेतन दूसरा जड़ इन दोनों का संयोग प्राणी  हैं.
प्राणी में (प्राज्ञ ज्ञान- ज्ञान शान्त रूप से स्थित केवल आनन्द स्वरूप), तेजस ज्ञान-(स्वप्नवतज्ञान), वैश्वानर ज्ञान उतरोतार अवस्था में दिखाई देता है, मृत्यु में जड़ और चेतन अलग हो जाते है परन्तु मूल अवस्था विशुद्ध ज्ञान जो अव्यक्त है दोनों में सदा रहता है, बस अंतर केवल इतना है की जड़ देह चेतन रहित हो जाती है और चेतन अव्यक्त हो जाता है, चेतन में स्व बोध के कारण उत्पन्न क्रिया शक्ति और ज्ञान शक्ति की मात्रा ही जीवात्मा का कारण है. इसे इन तीन तत्वों को हिन्दू दर्शन ब्रह्म, जीव और माया अथवा प्रकृति कहता है. यह विचार ही जीव है. भिन्न भिन्न  विचार उठते गए भिन्न जीव (शब्द बीज) बनते गए.

प्रश्न- मृत्यु क्या है?
उत्तर- अज्ञान के कारण अस्मिता युक्त ज्ञान का देह से बीज रूप में अलग हो जाना जिसमें अस्मिता का भान खो जाता है मृत्यु है. ज्ञान के परमाणु जो चैतन्य थे, जड़ में बदलने लगते हैं.

प्रश्न- मोक्ष क्या है”
उत्तर- ज्ञान के कारण जन्म जन्मान्तर  की अस्मिता का बोध का हो जाना मोक्ष है. व्यक्ति अपना नियंता हो जाता है.

प्रश्न- ज्ञानी अज्ञानी की मृत्यु क्या एक सी है?
उत्तर- ज्ञानी अज्ञानी  की सुषुप्ति और मृत्यु एक सी दिखाई देती है परन्तु ज्ञानी जन्म जमांतर की अस्मिता का आभास नहीं खोता.ज्ञानी की अस्मिता सदा बोध के साथ बीज रूप में जाग्रत रहती है.
प्रश्न- क्या देह ज्ञान का विस्तार है?
उत्तर- ज्ञानी अज्ञानी की देह भी ज्ञान का विस्तार है, अस्मिता के अलग हो जाने पर जड़त्व के कारण यह कार्य नहीं कर सकती. यह समझ लीजिये कि मरा शरीर, सूक्ष्म शरीर, चेतना, मृत्यु, जीवन, जीवात्मा सभी ज्ञान का विस्तार हैं. मृत्यु देह में भी सभी ज्ञान के परमाणु मोजूद  रहते  हैं परन्तु वह मृत्यु के स्वभावानुसार शरीर को जड़ करने अथवा स्वरुप परिवर्तन का कार्य करते हैं.

संक्षेप में कुछ मत्वपूर्ण बातें समझ लीजिये.

सूक्ष्म शरीर जिसका कारण अस्मिता है ज्ञान के साथ एक बीज जो निराकार आकार वाला है का परिणाम है.
ज्ञान के परमाणु ही मृत्यु, जन्म, जीवन, स्थिति का कारण हैं.
यह ज्ञान व्यक्त रूप में दिखाई देता है और अव्यक्त  रूप में दिखाई नहीं  देता है.
आस्मिता अथवा जीवात्मा जिस जिस पदार्थ का जो भाव है उसमें स्थित होकर उसी आकार का भासित होता है.
जीवात्मा जब जिस का संकल्प करता है वेसा आकार धारण कर लेता है.
यह पञ्च भूत नहीं है पर पंचभूतात्मक भासित होता है.
यह न स्थूल है न सूक्ष्म है अज्ञान अथवा भ्रम से जहाँ जिस कल्पना का विस्ताएर होता है वहां वेसा तत्काल अनुभव होने लगता है.

प्रश्न- आत्म ज्ञान की क्या पहिचान है?
जन्म जन्म की अस्मिता का बोध हो जाता है.

प्रश्न- आत्म ज्ञान  केसे प्राप्त करें?
स्वयं प्रयास करना होगा. सदग्रंथ और ज्ञानी केवल मार्ग दर्शक हो सकते हैं. तुम्हारा केवल तुम ही उद्धार कर सकते हो. भगवद्गीता भी यही कहती है-
उद्धरेतआत्मनाआत्मनम
उपाय भी केवल दो ही है-
बुद्धि योग और अष्टांग योग. शेष सब इनके ही मिले जुले रूप हैं.बुद्धि योग में भी दृष्टा हो जाना सर्वोत्तम है.
स्वरुप की खोज में लग जाएँ.
          परमात्मा कल्याण करें.

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