Wednesday, January 23, 2013

तेरी गीता मेरी गीता -12- बसंत



प्रश्न -क्या विशुद्ध ज्ञान और आत्मा एक ही हैं?

उत्तर -आप आत्मा को समझिये. आत्मा का अर्थ है स्वयं अथवा आप. इसलिए आत्मज्ञान स्वयं का ज्ञान है. इसे आप शुद्ध मैं कह सकते हैं. शुद्ध मैं आप की वास्तविकता है. आप जिस मैं का सदा प्रयोग करते हैं, जिस नाम से जाने जाते हैं वह समयबद्ध है. केवल आपके इस शरीर तक ही सीमित है. आपका मैं संसार से बद्ध है,

आप ज्ञान और अज्ञान के पुंज हैं. आप का ज्ञान अज्ञान के कई आवरणों से ढका हुआ है. इसे अधिक  गहराई  से समझने  के लिए पत्थर, बीज, पेड़, पशु और मनुष्य को देखें. इन पाँचों स्थिति मैं अज्ञान और ज्ञान है पर उतरोत्तर विकासक्रम मैं ज्ञान बढ़ता गया है और अज्ञान कम होता गया है. अज्ञान जड़त्व अथवा पदार्थ का कारण है और ज्ञान चेतना का कारण है. इस विषय में यह भी जानना महत्वपूर्ण है कि अज्ञान, ज्ञान का ही रूपान्तरित स्वरुप है अतः यह स्थाई नहीं है.

आप अथवा आपकी आत्मा जो है उसका वास्तविक स्वरुप शुद्ध और पूर्ण ज्ञान है. इसे ऐसे भी जान सकते हैं  कि बिना हलचल हुए  मन में जो आपका अपना बोध है वह आत्मा है. जब उस शुद्ध बोध को  सृष्टि के कण कण में भासित देखता है तो वह विराट होकर परमात्मा के दर्शन करता है. आपकी अस्मिता ही विराट हो जाती है. यह निश्चय पूर्वक जान लीजिये कि विशुद्ध ज्ञान ही आप सभी का कारण है. इसे ही आत्मा  कहा जाता है.

अज्ञान अथवा जड़त्व जितना कम होता जाता है उतनी दिव्यता आती जाती है. अज्ञान का पूर्ण रूप से नष्ट होना पूर्णता है.

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